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Kanjak Pujan Bhog: आखिर क्यों अष्टमी और नवमी को खाया जाता है पूरी, हलवा और चना का प्रसाद

पौराणिक मान्यता है कि नवरात्रों के उपवास के बाद भक्तजन अष्टमी या नवमी को अपना व्रत खोलते हैं. हालांकि, व्रत किसी भी दिन खोलें लेकिन प्रसाद एक ही होता है- पूड़ी, हलवा और काले चने.

Pui, Halwa and Chana (Photo: Youtube) Pui, Halwa and Chana (Photo: Youtube)

नवरात्रि में व्रत-उपवास के बाद अष्टमी और नवमी के दिन लोग हलवा, पूरी और चना के साथ अपना व्रत खोलते हैं. मंदिरों में होने वाले भंडारों से लेकर घरों में बनने वाले प्रसाद तक, हर कोई पूरी, हलवा और चना बनाता है. लेकिन क्या आपने सोचा है कि आखिर नवरात्रि में हलवा, चना और पूरी से ही व्रत क्यों खोला जाता है और ये तीन चीजें ही प्रसाद में क्यों बनती हैं. 

देवी भागवत पुराण के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन जिन कन्याओं की पूजा की जाती है वे देवी दुर्गा का रूप होती हैं. उन्हें अच्छा भोजन कराया जाता है, जिसे कंजक पूजा या कन्या पूजन के रूप में भी जाना जाता है.

एक्सपर्ट्स का क्या है कहना
न्यूट्रिशन एक्सपर्ट्स के अनुसार, पूरी, हलवा और चने, इन तीनों डिशेज से हमारे शरीर को वह सभी आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं जो 7-8 दिनों तक सात्विक आहार का पालन करने के बाद पाचन तंत्र को संतुलित करने में मदद करते हैं. साथ ही, पूरी, हलवा और काले चनों को बनाने में काफी मात्रा में देसी घी का इस्तेमाल होता है और यह हमारे शरीर के लिए अच्छा रहता है. चने में प्रोटीन, विटामिन और फाइबर होता है. ये सभी चीजें शरीर के लिए जरूरी हैं और इसलिए लंबे समय तक सात्विक भोजन करने के बाद, ये डिश हमारे शरीर को सही ऊर्जा देना का काम करती हैं. 

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विशेषज्ञों के अनुसार, चना और सूजी डाइटरी फाइबर से भरपूर होते हैं और इसलिए ब्लड शुगर के स्तर को बेहतर बनाने में योगदान करते हैं. वे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखने और संतुलित करने में भी मदद करते हैं. ऐसा पाया गया है कि काले चने में सैपोनिन होता है, जो कैंसर सेल्स को शरीर में बढ़ने और फैलने से रोकता है.

कंजक पुजन की मान्यता 
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कंजक पूजा की शुरुआत छोटी लड़कियों (2-10 वर्ष की आयु के बीच) के पैर धोने से होती है. इसके बाद उनके माथे पर तिलक लगाया जाता है और हाथों में कलावा बांधा जाता है. उसके बाद, उन्हें पहले नारियल का प्रसाद दिया जाता है और फिर पूरी, हलवा और सूखे काले चने का प्रसाद दिया जाता है.

उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में कई लोग चने के साथ सात्विक आलू गोभी या आलू टमाटर भी बनाते हैं. पूजा के अंत में, उन्हें पैसे, आभूषण, कपड़े, खिलौने आदि के रूप में उपहार भी दिए जाते हैं. अंत में, उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है और उनके जाने के बाद, भक्त इसी भोग के साथ अपना व्रत खोलते हैं.