इजरायल और हमास के बीच जंग लगातार जारी है. इजरायल ने गाजा में ताबड़तोड़ हमले किए है. इस हमले में इजराइल में तकरीबन 1,300 लोगों की मौत हुई है. जबकि इजराइल की जवाबी कार्रवाई में गाजा में 1,400 से अधिक लोग मारे गए हैं. इजरायल के यरूशलम शहर में भी फायरिंग की खबरें सामने आ रही हैं.
इजराइलियों और फिलिस्तीनियों के बीच यरूशलम को लेकर विवाद भी काफी पुराना है. इजराइल और फिलिस्तीन दोनों यरूशलम को अपनी राजधानी मानते हैं. यह समझने के लिए कि इस समय यरूशलम में क्या चल रहा है, यह समझना जरूरी है कि ये शहर मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के लिए इतना जरूरी क्यों है.
प्रचीन शहरों में से एक है यरूशलम
हिब्रू में येरुशलायिम और अरबी में अल-कुद्स के नाम से जाना जाने वाला यह शहर दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है. इसे कई बार नष्ट किया गया और इसका पुनर्निर्माण किया गया. कईयों ने इसपर विजय प्राप्त करने की कोशिश की है. इसे पवित्र शहर भी माना जाता है. ये शहर इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों में बेहद अहम स्थान रखता है. इस शहर की वजह से इन मजहबों के लोगों के बीच संघर्ष हुआ तो इसी ने उन्हें जोड़ा भी है.
तीन प्रमुख पवित्र स्थलों का केंद्र है यरूशलम
यरूशलम के केंद्र में तीन प्रमुख पवित्र स्थल हैं. पहला अल-अक्सा मस्जिद जोकि मुसलमानों के लिए दुनिया का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है. दूसरा- यहूदी इलाकडे में ही कोटेल या पश्चिमी दीवार है. कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर था. यहूदियों का विश्वास है कि यही वो स्थान है जहां से विश्व का निर्माण हुआ. तीसरा- ईसाई इलाके में 'द चर्च आफ़ द होली सेपल्कर' है. ये दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र है. कई ईसाई मानते हैं कि यीशु को इसी जगह पर क्रूस पर चढ़ाया गया था.
ये सभी पवित्र स्थल एक ही जगह पर कैसे?
यहूदी: यरूशलम हिब्रू बाइबिल के भूगोल और घटनाओं का केंद्र है. हिब्रू बाइबिल ने विभिन्न तरीकों से यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम पर गहरा प्रभाव डाला है. 587 ई.पू. और 70 ई. के बीच यहूदियों ने यरूशलम में दो मंदिर (सोलोमन मंदिर) बनाए और फिर उन्हें टूटते होते देखा. इस मंदिर के अवशेष आज भी वहां मौजूद हैं. लगभग 2,000 साल बाद भी यरूशलम प्रार्थना के केंद्र बने हुए हैं. दुनिया भर में यहूदी यरूशलेम की तरफ मुंह करके प्रार्थना करते हैं. यहूदियों का मानना है कि जब मसीहा आएंगे तब मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाएगा.
ईसाई: ईसाइयों के लिए यरूशलम वो स्थान भी है जहां यीशु ने उपदेश दिया था, उनकी मृत्यु हुई थी और वे पुनर्जीवित हुए थे. कई लोग शहर को यीशु के दूसरे आगमन के केंद्र के रूप में भी देखते हैं. येरूशलम अब दुनिया भर के ईसाइयों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है. ईसा मसीह का मकबरा 'द चर्च ऑफ द होली सेपल्कर' के भीतर है. हर साल लाखों लोग ईसा मसीह के मकबरे पर आकर प्रार्थना करते हैं.
मुसलमान: मुसलमानों के लिए यरूशलम वो जगह है जहां से पैगंबर मुहम्मद स्वर्ग गए थे. कुरान के अनुसार मोहम्मद को मक्का से यरूशलम ले जाया गया और फिर यरूशलम से स्वर्ग में ले जाया गया. जहां उन्होंने पृथ्वी पर लौटने से पहले पैगंबरों से बातचीत की. यरुशलम में ही प्राचीन अल अक्सा मस्जिद है. इस पवित्र स्थल में हर दिन हजारों की संख्या में लोग आते हैं और प्रार्थना करते हैं.
इस पवित्र स्थल को कौन नियंत्रित करता है?
1948 में इजराइल की स्थापना के बाद इसराइली संसद को यरूशलम के पश्चिमी हिस्से में स्थापित किया गया था. 1967 में इजराइल ने पश्चिमी यरूशलेम को और जॉर्डन ने पूर्वी यरूशलम को नियंत्रित किया,जिसमें पुराने शहर के प्रमुख पवित्र स्थल भी शामिल थे. 1967 में, जॉर्डन, मिस्र, सीरिया और अन्य अरब देशों के साथ युद्ध के बाद इजराइल ने यरूशलेम के पूर्वी आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया और पश्चिमी दीवार के सामने की इमारतों को तोड़ दिया और पर्यटकों और उपासकों के लिए एक प्लाजा बनाया.
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस क्षेत्र पर इजराइल के अधिकार क्षेत्र को मान्यता नहीं देता है क्योंकि इस शहर की अधिकांश आबादी फिलिस्तीनी है. फिलहाल इसका नियंत्रण इजराइल के पास है. अल-अक्सा मस्जिद को यरूशलम की इस्लामिक वक्फ संभालती है. इसकी देखरेख जॉर्डन की सरकार करती है. ये ही यहां के सुरक्षा मामलातों को भी संभालती है और क्षेत्र पर काफी अधिकार रखती है. इजराइली सरकार पश्चिमी दीवार पर सीधा नियंत्रण रखती है. ईसाई समूहों का एक ग्रुप पवित्र सेपल्कर चर्च की देखरेख करता है.