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औरतों ने बदलकर रख दी पूरे गांव की तस्वीर! गलीचे बुनाई से लिख रहीं आत्मनिर्भरता की नई कहानी 

यहां की महिलाओं को सिर्फ गलीचे बुनाई के अलावा, तकनीकी और डिजिटल साक्षरता का भी प्रशिक्षण दिया गया. उन्हें मोबाइल चलाना, इंटरनेट का उपयोग करना, डेटा ट्रांसफर करना और ऑनलाइन लेन-देन जैसी बातें सिखाई गईं. यह प्रशिक्षण उन्हें न केवल उनके काम में सहायक बना, बल्कि उनकी व्यक्तिगत सक्षमता को भी बढ़ाया.

औरतों ने बदलकर रख दी पूरे गांव की तस्वीर औरतों ने बदलकर रख दी पूरे गांव की तस्वीर
हाइलाइट्स
  • गलीचे बुनाई ने बनाया आत्मनिर्भर

  • महिलाएं संभाल रहीं अपना घर 

राजस्थान के विराटनगर तहसील के मासिंघका बास गांव की एक दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी सामने आई है. यह कहानी एक ऐसे गांव की है, जहां की महिलाएं न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में सफल हुईं, बल्कि उन्होंने अपने जीवन के रास्ते को भी पूरी तरह से बदल दिया है. मासिंघका बास में महिलाओं ने न सिर्फ अपने संघर्षों को पार किया, बल्कि वे आज पूरे समाज के लिए एक उदाहरण बन गई हैं. इस गांव में गलीचे बुनाई के काम के जरिए महिलाओं ने न सिर्फ खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों, खासकर अपने पतियों और बच्चों का भविष्य भी संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

गलीचे बुनाई ने बनाया आत्मनिर्भर
मासिंघका बास में महिलाओं की आत्मनिर्भरता का एक बड़ा कारण यहां की प्राचीन कला, यानी गलीचे बुनाई है. यहां की महिलाएं सालों से इस कला में माहिर हो चुकी हैं और इसे अपना मुख्य स्रोत आय बना चुकी हैं. जयपुर रग्स, जो इस क्षेत्र में एक प्रसिद्ध नाम है, ने यहां लूम्स लगवाई हैं, जिनका इस्तेमाल महिलाएं गलीचे बनाने में करती हैं. इन लूम्स की मदद से महिलाओं ने न सिर्फ गलीचे बनाना सीखा, बल्कि इसके जरिए अपने परिवार के लिए एक स्थिर आर्थिक आधार भी तैयार किया है.

गांव में 30 से अधिक लूम्स स्थापित किए गए हैं, जहां महिलाएं इस पारंपरिक काम को करने में लगी हैं. ये महिलाएं न केवल गलीचे बुनने का काम करती हैं, बल्कि अब उन्होंने इसे एक रोजगार के रूप में अपनाया है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है. गलीचे बनाने का यह काम इन्हें न केवल आत्मनिर्भर बनाता है, बल्कि यह काम इनकी पहचान भी बन चुका है.

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महिलाएं संभाल रहीं अपना घर 
गांव की महिला मंजू देवी कहती हैं, "मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है कि मैं अपनी मेहनत से घर चला रही हूं. मैं बहुत छोटी थी जब मैंने गलीचा बुनाई का काम सीखा था. मेरे माता-पिता गरीब थे और मुझे शिक्षा के ज्यादा अवसर नहीं मिले. लेकिन मुझे खुशी है कि मैंने गलीचे बनाने का काम सीखा, क्योंकि आज मैं इस काम से परिवार की आर्थिक मदद कर पा रही हूं. जयपुर रग्स ने यहां लूम्स लगवाईं और हमें इस काम के लिए प्रशिक्षित किया. अब मैं सिर्फ घर की जिम्मेदारियां ही नहीं निभाती, बल्कि अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए भी काम कर रही हूं."

मंजू देवी की कहानी का एक और पहलू है, जो इस गांव की महिलाओं की सफलता की और भी गहरी समझ देता है. यह सिर्फ एक काम करने की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस शिक्षा और प्रशिक्षण की भी कहानी है, जो इन महिलाओं को मिला और जिसके कारण उन्होंने अपने काम को और भी बेहतर और आधुनिक बनाया.  इन महिलाओं को काम के साथ-साथ शिक्षा भी दी गई, ताकि वे न केवल अपने काम में माहिर हो सकें, बल्कि तकनीकी रूप से भी सशक्त बन सकें. 

तकनीकी समझ भी की विकसित 
यहां की महिलाओं को सिर्फ गलीचे बुनाई के अलावा, तकनीकी और डिजिटल साक्षरता का भी प्रशिक्षण दिया गया. उन्हें मोबाइल चलाना, इंटरनेट का उपयोग करना, डेटा ट्रांसफर करना और ऑनलाइन लेन-देन जैसी बातें सिखाई गईं. यह प्रशिक्षण उन्हें न केवल उनके काम में सहायक बना, बल्कि उनकी व्यक्तिगत सक्षमता को भी बढ़ाया. इस सशक्तिकरण के कारण आज ये महिलाएं न केवल अपने काम में दक्ष हैं, बल्कि वे अपने परिवार के हर सदस्य को एक नया रास्ता दिखाने में सक्षम हैं.

मासिंघका बास में महिलाओं को यह भी मौका मिला कि वे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलवाएं, क्योंकि वे जानती थीं कि अगर बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलती है तो उनका भविष्य और परिवार दोनों बेहतर होंगे. यहां कई महिलाओं ने अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपनी मेहनत और कमाई को इस्तेमाल किया. यही नहीं, उन्होंने अपने पतियों का भी मार्गदर्शन किया और उनके लिए एक बेहतर भविष्य बनाने में सहायता की.

बच्चों की पढ़ाई में कर रहीं खर्च 
मंजू देवी ने गलीचे बुनाई के काम से जो भी कमाई की, वह उन्होंने अपने बेटे की शिक्षा पर खर्च की. उनका बेटा, जो आईआईटी की तैयारी कर रहा था, अपनी मेहनत से आखिरकार आईआईटी में चयनित हो गया. इस सफलता का श्रेय मंजू देवी को जाता है, जिन्होंने अपनी सारी मेहनत और समर्पण अपने बेटे के भविष्य के लिए लगा दिया. यह उदाहरण उन महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो कभी अपने सपनों को पूरा करने की उम्मीद खो बैठती हैं.

यहां की महिलाओं का कहना है कि "हमारी जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी है. पहले हम सिर्फ घर के काम करते थे, लेकिन अब हम अपनी मेहनत से परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं. हम न केवल अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पा रहे हैं, बल्कि हम अपने पति की भी मदद कर रहे हैं, ताकि वे अपने काम में सफल हो सकें.”

(रिद्म जैन की रिपोर्ट)