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Legal Rights of Women: महिला कर्मचारियों को हैं ये अधिकार, आज ही जानें

बहुत सी महिलाओं को अपने दफ्तर में भी यौन उत्पीड़न या किसी अन्य परेशानी को झेलना पड़ता है. ऐसे में, उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए बने कानूनों का जानकारी होनी चाहिए.

Women Rights at Workplace (Photo: Pixabay) Women Rights at Workplace (Photo: Pixabay)
हाइलाइट्स
  • बहुत जरूरी है कि महिलाएं हमेशा अलर्ट रहें और अपने अधिकारों के बारे में जानें

  • ये कानून ऑफिस या वर्कप्लेस पर भी महिलाओं को सुरक्षा देते हैं

भारत में हर मिनट महिलाओं के खिलाफ कोई न कोई अपराध हो रहा होता है. आज के जमाने में महिलाएं बाहर तो क्या अपने घर-दफ्तर में भी सुरक्षित नहीं हैं. ऐसे में, बहुत जरूरी है कि महिलाएं हमेशा अलर्ट रहें और अपने अधिकारों के बारे में जानें. महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को देखते हुए, उनके हित में बहुत से कानून बनाए गए हैं. 

ये कानून ऑफिस या वर्कप्लेस पर भी महिलाओं को सुरक्षा देते हैं. एक महिला कर्मचारी के रूप में अपनी सुरक्षा के लिए निर्धारित अधिकारों के बारे में सभी महिलाओं को जानकारी होनी चाहिए. 

1. प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 (Maternity Benefit Act, 1961)

अक्सर मां बनते ही महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे नौकरी छोड़ दें. ताकि वे अपने बच्चे का ख्याल रख सकें. लेकिन ऐसा करना जरूरी नहीं है. क्योंकि कानून ने महिलाओं के लिए प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 बनाया हुआ है. 

जिसके तहत, मां बनने वाली महिलाओं को 26 सप्ताह का सवैतनिक मातृत्व अवकाश मिलता है. गर्भावस्था या गर्भपात के कारण किसी बीमारी के लिए एक महीने की सवैतनिक छुट्टी का भी प्रावधान है. अगर कंपनी/नियोक्ता प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर (Pre and Post Natal Care) देखभाल प्रदान करता है तो 2,500 रुपये से 3,500 रुपये का मेडिकल बोनस भी महिला कर्मचारी को मिलता है. 

वहीं जब महिला कर्मचारी डिलीवरी प्रूफ दिखाती हैं तो मैटरनिटी बेनेफिट्स 48 घंटे पहले भुगतान किए जाने चाहिए. और अगर कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है और कोई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं है, तो नामांकित लाभार्थी को मैटरनिटी बेनेफिट्स मिलते हैं. इसके अलावा, इस अधिनियम के तहत, कोई भी संस्थान/संगठन आपको प्रसव, गर्भपात, या मेडिकली प्रेग्नेंसी खत्म करने के बादछह सप्ताह के लिए काम पर नहीं रख सकता है. साथ ही, मैटरनिटी लीव के दौरान भी कोई आपको नौकरी से नहीं निकाल सकता है.

2. महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 (Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013)

कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, यह अधिनियम उन्हें उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए है. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न में किसी का भी आपसे सेक्सुअल ओवरटोन में बात करना, किसी पुरुष सहकर्मी का आपके साथ बदतमीजी करना, जैसे आपके बहुत करीब आना, आपको बहाने से छूना आदि शामिल है. आप ऐसे किसी भी व्यवहार के लिए शिकायत कर सकती हैं. 

3. समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 (Equal Remuneration Act, 1976)

यह अधिनियम कार्यस्थल पर सैलरी के मामले में भेदभाव को रोकता है. यह पुरुष और महिला कर्मचारियों को समान सैलरी देने का प्रावधान करता है.
महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए ऐसेकानूनों को जानना आवश्यक है. अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने पर ही आप अपने साथ घर, कार्यस्थल या समाज में होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ सकते हैं. 

4. कारखाना अधिनियम, 1948 (The Factories Act, 1948)

अगर आप किसी कारखाने में काम करते हैं और वहां काम करने की स्थिति खराब है तो आपके नियोक्ता को दंडित किया जा सकता है. कारखाना अधिनियम, 1948 के तहत, नियोक्ता को कर्मचारियों के लिए उचित कामकाजी परिस्थितियों में स्वास्थ्य, सुरक्षा, कल्याण, उचित काम के घंटे, छुट्टी और अन्य लाभ सुनिश्चित करने होते हैं.  

अगर महिला कर्मचारियों की शिफ्ट के समय में कोई बदलाव होता है तो उन्हें 24 घंटे का नोटिस मिलना चाहिए. यदि किसी कारखाने में 30 से अधिक महिला कर्मचारी हैं, तो वहां छह साल या इससे कम उम्र के बच्चों के लिए एक क्रे᠎श्‌ (Creche) होना चाहिए.