
वैसे तो मिट्टी के बर्तन की खासियत ही कुछ और होती है. चाहे मिट्टी के घड़े में पानी पीना हो, या मिट्टी के बर्तन का पका खाना खाना हो.. उसका सोंधापन और मिठास सबसे खास होता है. लेकिन क्या हो अगर आप टैंक के बराबर का कोई मिट्टी का घड़ा देख लें. दरअसल ये घड़ा कन्नौज में रखा है. 'खुशबू' के लिए मशहूर इत्रनगरी के म्यूजियम में रखे इस घड़े में दो हजार लीटर पानी आ सकता है. इस घड़े को करीब दो हजार साल पहले कुषाण वंश का बताया जा रहा है. ये घड़ा 40 साल पहले शहर के शेखपुरा मोहल्ले में खुदाई के दौरान मिला था. इस जिले में समय-समय पर खुदाई के दौरान कई नायाब चीजें निकलती हैं. ये घड़ा उन्हीं नायाब नमूनों में से एक है.
1500 ईसा पूर्व के भी बर्तन हैं
इस खुदाई में कनिष्क के शासन के समय के छोटे-बड़े 40 से ज्यादा बर्तन के साथ गुप्त काल के दौर में इस्तेमाल होने वाले बर्तन भी मिले हैं. यहां कुषाण वंश से भी पहले यानी 1500 ईसा पूर्व के बर्तनों के अवशेष मिले हैं. पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि कन्नौज में पेंटेड ग्रे वेयर और नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड वेयर कल्चर था. जिससे जाहिर है यहां 3500 साल पूर्व भी मानव सभ्यता मौजूद थी.
गंगा का पानी इसी घड़े में सहेज कर रखा जाता था
इतिहास के जानकार एवं राजकीय म्यूजियम के अध्यक्ष दीपक कुमार बताते हैं कि अब तक कहीं भी इससे बड़े और पुराने घड़े होने का सुबूत नहीं मिलता है. काफी शोध के बाद ये पता चला है कि यह घड़ा करीब दो हजार साल पहले कुषाण वंश के दौरान 78 ई. से 230 ई. के बीच का है. तब गंगा शहर के करीब गुजरती थी. तब लोग इसी तरह के घड़ों में पानी सहेज कर रखते थे.
कन्नौज के म्यूजियम में जमा हैं कई अजूबे
कन्नौज में पिछले पांच दशक से भी ज्यादा समय से पुरातत्व विभाग की खुदाई में कई नायाब चीजें सामने आई हैं. इसमें टेराकोटा की मूर्तियो से लेकर एक हजार साल से भी ज्यादा पुरानी मुद्राएं शामिल हैं. तमाम धर्मों से जुड़ी हुई चीजें जैसे भगवान शिव की कई अलग-अलग मुद्राओं की प्राचीन मूर्तियां और अलग-अलग सदी के शिलालेख, मूर्तियां, सिक्के, बर्तन, पत्थर भी निकलते रहे हैं. हिन्दु, जैन और बौद्ध धर्म से जुड़ी कई विरासत इस म्यूजियम में सहेज कर रखी गई हैं.
घड़े की खासियतें
40 साल पहले खुदाई में मिले इस घड़े में 2000 लीटर पानी रखने की क्षमता है, इसकी ऊंचाई 5.4 फीट है और चोड़ाई 4.5 फीट है.