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World Poetry Day: जिंदगी से हो रही है निराशा तो पढ़ें ये कविताएं, मन में भर जाएगा उत्साह

World Poetry Day: 21 मार्च को हर साल दुनिया भर में 'विश्व कविता दिवस' मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देना है.

World Poetry Day World Poetry Day

हर साल 21 मार्च को दुनियाभर में World Poetry Day मनाया जाता है. यह दिन कविताओं को समर्पित है. कविताएं तो जीवन के किसी भी पहलू में आपको दिख जाएंगी. सजीव तो सजीव, लोग तो निर्जीव चीजों से भी कविताएं निकाल लेते हैं. आपको सड़क पर चलते हुए, मेट्रो में फोन स्क्रॉल करते हुए, पड़ोस की औरतों की बातों में, समाज के छोटे-बड़े मुद्दों में या राजनीति की लड़ाई में, कहीं भी कविता मिल जाएगी. 

कविताएं इतने रसों में लिखी जाती हैं कि अगर आपको प्यार न हो तो भी प्यार महसूस करा दें. हंसते इसान को रुला दें और रोते हुए को हंसा दें..... कविताओं की न तो शुरुआत है न ही अंत. बस हैं तो कविताएं. इसलिए आज इस खास मौके पर हम आपके लिए लाए कुछ ऐसी कविताएं जो आपको उत्साह देंगी, उमंग देंगी. निराशा भरे जीवन को आशा से भर देंगी. 

1. कविता- घास (पाश)
मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा

बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर

मेरा क्‍या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा

बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है

मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूँगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा.

2. कविता- अग्निपथ (हरिवंश राय बच्चन)

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

3. कविता- कोशिश करने वालों की हार नहीं होती (सोहनलाल द्विवेदी)

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

4. कविता- तोड़ती पत्थर (सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला")
वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।

कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।

चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गई,
प्रायः हुई दुपहर :-
वह तोड़ती पत्थर।

देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।

एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
"मैं तोड़ती पत्थर।"

5. कविता- मैंने उसको... (केदारनाथ अग्रवाल)
मैंने उसको

जब-जब देखा,
लोहा देखा,
लोहे जैसा--
तपते देखा,
गलते देखा,
ढलते देखा,
मैंने उसको

गोली जैसा
चलते देखा!

(कविता साभार: कविता कोष)