साल 1947 में देश के बंटवारे का दर्द आज भी कई बूढ़ी आंखों से छलकते है. आज भी बहुत से परिवार अपनी आने वाली पीढ़ियों को वह घर, मोहल्ला और वह जमीन दिखाना चाहते हैं जो एक झटके में उनसे छिन गई. रातों-रात उन्हें अपने घर-कारोबार को छोड़ना पड़ा.
बंटवारे के दौरान लाखों लोग अपने घर और शहर से दूर होकर अलग-अलग जगहों पर बस गए. जहां उन्होंने अपनी शुरुआत नए सिरे से की. तिनका-तिनका करके खुद को खड़ा किया और आज कई लोग ऐसे हैं जो भारत का मान दुनियाभर में बढ़ा रहे हैं. आज World Refugee Day है. हर साल 19 जून को यह दिन मनाया जाता है ताकि दुनियाभर के रिफ्यूजी लोगों के अधिकारों के बारे में जागरुकता फैलाई जा सके.
क्योंकि रिफ्यूजी आपके देश में आकर सिर्फ सुविधाएं नहीं लेते हैं बल्कि देश को आगे बढ़ाने में भी मदद करते हैं. आज इस खास दिन पर हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे ही रिफ्यूजी हीरोज के बारे में, जिन्होंने कड़ी मेहनत करके न सिर्फ अपना नाम बनाया बल्कि भारत का नाम दुनिया में बढ़ाया है.
1. रौनक सिंह, अपोलो टायर्स लिमिटेड और रौनक ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज
बंटवारे से पहले, रौनक सिंह ने लाहौर में पाइप बेचते थे. जिंदगी ठीक चल रही थी लेकिन विभाजन ने सब बदल दिया. वह और उनका परिवार भारत भाग गए और यहां उन्हें हर दिन मुश्किल से 1 पैसा मिल पाता था. उन्होंने दिल्ली के गोल मार्केट में एक ही कमरे में 13 अन्य शरणार्थियों के साथ डेरा डाला और पेट भरने के लिए एक मसाले की दुकान पर काम किया. लेकिन यह वह जिंदगी नहीं थी जो वह चाहते थे.
रौनक के पास सिर्फ कुछ गहने थे जिन्हें उन्होंने बेचकर अपना पहला व्यवसाय शुरू किया. योर स्टोरी के मुताबिक, उन्होंने कोलकाता में मसाला व्यापार की दुकान खोली. एक उद्यमी के रूप में उनके शुरुआती दिन संघर्ष से भरे रहे और कई बार वह असफल हुए. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी किस्मत आजमाते रहे.
आखिरकार उन्होंने भारत स्टील पाइप्स की स्थापना की. क्योंकि पाइप बेचने का काम वह पहले करते थे. और उन्हें इस बार सफलता मिली. भारत स्टील की सफलता के बाद, रौनक ने 1975 में केरल में एक छोटी कंपनी अपोलो टायर्स की स्थापना की. आज यह सौ अरब से अधिक के सालाना रेवेन्यू के साथ यह दुनिया का 15वां सबसे बड़ा टायर निर्माता है.
रौनक ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज इन्फोटेक, फार्मास्यूटिकल्स, फाइनेंस और ऑटोमोटिव जैसे क्षेत्रों में काम करता है. 2002 में उनकी मृत्यु के समय इसके पेरोल पर $ 525 मिलियन और 9,000 लोगों का कारोबार हुआ था.
2. दीना नाथ कपूर और सेवा राम कपूर, हितकारी पॉटरी
दीना नाथ कपूर और सेवा राम कपूर जब पाकिस्तान से भारत आए तो वहां वे अपना अच्छा-खासा कारोबार चला रहे थे. उन्होंने झेलम में एक छोटी-सी साइकिल मरम्मत की दुकान से अपनी शुरुआत की थी और इसे एक समृद्ध व्यापार में बदल दिया जो लंदन से साइकिलों का आयात करता था.
पर रातोंरात उन्हें अपना सबकुछ छोड़ना पड़ा. वे बिना कोई रुपया-पैसे लिए भारत आए और जेब में कुछ था तो सिर्फ एक शिपमेंट की रसीद. भारत आकर उन्होंने तरह-तरह के काम किए. लेकिन उनके मन बिजनेस में थे और उन्होंने अपना आइडिया ढूंढ लिया. उन्होंने देखा कि भारतीय घरों में बोन चाइना का चलन बढ़ रहा है और इसलिए उन्होंने सिरेमिक पर काम करने का फैसला किया.
इस तरह शुरुआत हुई उनके उद्यम हितकारी पॉटरी की. समय के साथ कंपनी आगे बढ़ी और इस क्षेत्र में अच्छा नाम बना लिया. 1970 के दशक में, इसका वार्षिक कारोबार लगभग 6 करोड़ रुपये था. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका और यहां तक कि इंग्लैंड को निर्यात करना शुरू कर दिया.
हालाकि समय के साथ, साल 2000 तक हितकारी पॉटरी का बिजनेस कम होने लगा. क्योंकि मार्केट में और भी कपनियां आ गई थीं. फ्यूचर ग्रुप ने 2012 में इस ब्रांड को फिर से लॉन्च किया. आज भी बहुत से घरों में आपको इस कंपनी की क्रॉकरी मिल जाएगी.