क्या आपको पता है कि हमारे देश में 760 लाख लोगों के पास आज भी पीने योग्य सुरक्षित पानी नहीं है. भारत में लगभग 21% बिमारियां गंदे पानी के कारण होती हैं. इसके बावजूद हम सिर्फ पानी बचाओ के नारे देते हैं. असल में पानी के संरक्षण के लिए कुछ करते नहीं हैं.
प्रशासन और नागरिकों की लापरवाही के कारण हमारे प्राकृतिक जल-स्त्रोत भी खत्म होने लगे हैं. जिसके कारण पर्यावरण भी प्रदुषित हो रहा है. महानगरों की बड़ी-बड़ी सोसाइटी में रहने वाले लोग भी इस समस्या पर चुप हैं.
ऐसे में एक प्राइवेट स्कूल के शिक्षक ने कुछ करने का बीड़ा उठाया है. यह कहानी है छत्तीसगढ़ के वीरेंद्र सिंह की, जो पिछले 22 सालों जल-संरक्षण और पर्यावरण के लिए काम कर रहे हैं. Good News Today से बात करते हुए वीरेंद्र ने अपने सफर के बारे में बताया.
22 साल पहले शुरू की मुहिम:
बालोद जिला के दल्लीराजहरा गांव में एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे वीरेंद्र सिंह ने बचपन से हरियाली देखी. उन्होंने हमेशा अपने गांव के तालाब में पानी देखा था. हर घर में पेड़-पौधे और गांव के आस-पास घना जंगल. पर फिर स्थिति एकदम बदलने लगी. वीरेंद्र को समझ आने लगा कि अगर अपने प्राकृतिक साधनों की रक्षा नहीं की गई तो समस्या का हल असंभव हो जाएगा.
एम.कॉम, एम.ए. अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल में जॉब ले ली. साथ ही प्रकृति के लिए अपना अभियान शुरू किया. उन्होंने अपने छात्रों के साथ मिलकर गांव में जगह-जगह पौधरोपण शुरू किया.
पौधे लगाने के साथ-साथ उन्होंने गांव के नदी-नालों और तालाबों की सफाई का काम शुरू किया. पहले लोग उनके काम को मजाक बनाते थे लेकिन उनके छात्रों ने उनका साथ दिया. वह बताते हैं कि बालोद, भिलाई, दुर्ग, बेमेतरा और कांकेर जिले में अब तक वह 20 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं. इनमें आम, गुलमोहर सहित अन्य छायादार व फलदार पौधे शामिल हैं.
साफ किए 35 तालाब:
वह अपने वेतन का एक हिस्सा पर्यावरण संरक्षण के लिए खर्च करते हैं. छुट्टी का दिन उनके अभियानों के लिए है और वह बहुत ही रचनात्मक तरीकों से अपना संदेश देते हैं. कभी अपने शरीर पर पेंटिंग कराकर तो कभी जोश भर देने वाले नारे लगाकर.
उन्होंने बताया कि 15 साल पहले हमने गांव के एक कुंड की सफाई करके इसे सहेजा था और फिर इस पर सरकार के सहयोग से घाट बन गया. आज सभी लोग इस घाट का आनंद लेते हैं. उस कुंड से शुरू हुआ जल-स्त्रोतों को सहेजने का काम लगातार चलता रहा है.
वीरेंद्र ने अब तक 35 तालाबों, 2 कुंड, तन्दला नदी और कई नालों की सफाई की है. अभी भी वीरेंद्र लोगों के साथ मिलकर कांकेर और बालोद में तालाबों और कुओं के संरक्षण कार्य में जुटे हुए हैं. उनका कहना है कि अगर अपने पारंपरिक जल-स्त्रोतों को नहीं बचाया गया तो भूजल खत्म हो जाएगा और चंद सालों में भारत प्यासा मरने लगेगा.
मिले जल-स्टार और ग्रीन कमांडो जैसे नाम:
वीरेंद्र को उनके कार्यों के लिए लोगों के समर्थन के साथ सरकार की सराहना भी मिल रही है. उन्हें अब तक कोई छोटे -बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिसमें, तरु भूषण, छत्तीसगढ़ जल-स्टार अवॉर्ड आदि शामिल हैं.
‘ग्रीन कमांडो’ और ‘जल स्टार’ जैसे नामों से प्रसिद्ध वीरेंद्र सिंह का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण की देखभाल करने के लिए प्रेरित करना है. पर्यावरण बचाने की उनकी इस लगन के चलते ही केंद्र सरकार ने उन्हें वाटर हीरो के सम्मान से नवाजा है.
देश के सभी नागरिकों को वीरेंद्र से शिक्षा लेनी चाहिए कि हर कोई अपने स्तर पर देश के विकास में सहयोग कर सकता है. जरूरत है तो बस एक अच्छा कदम उठाने की.