गूगल डूडल आज (16 जुलाई) एक महान भारतीय-अमेरिकी कलाकार और प्रिंटमेकर जरीना हाशमी का 86वां जन्मदिन मना रहा है. इस डूडल को न्यूयॉर्क की चित्रकार तारा आनंद ने डिजाइन किया है. आइए जानते हैं कौन थीं जरीना हाशमी और कैसे देश-दुनिया में लहराया अपना परचम.
यूपी के अलीगढ़ में हुआ था जन्म
जरीना का जन्म 16 जुलाई 1937 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था. विभाजन से पहले, वह और उनके चार भाई-बहन एक खुशहाल जीवन जी रहे थे, लेकिन जैसे ही भारत-पाकिस्तान विभाजन हुआ, जरीना और उनके परिवार को पाकिस्तान में कराची जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. जरीना न्यूनतम शैली में अपने प्रमुख व्यक्तित्वों के लिए काफी प्रसिद्ध थीं.
21 साल की उम्र में की थी शादी
जरीना महज 21 साल की थीं जब उनका विवाह एक युवा राजनयिक से हुआ. शादी के बाद वह दुनिया घूमने निकल पड़ी थीं. अपने सफर के दौरान जरीना ने बैंकॉक, पेरिस और जापान की यात्रा की. यहीं उन्हें प्रिंटमेकिंग और मॉडर्निस्ट और एब्स्ट्रैक्ट आर्ट प्रवृत्तियों से अवगत कराया गया.
नारीवादी आंदोलन में लिया हिस्सा
1977 में जरीना न्यूयॉर्क शहर में रहने के लिए चली गई थीं. यहां वह महिला कलाकारों की जबरदस्त समर्थक बन गईं. देखते ही देखते वह हेरिसीज कलेक्टिव की मेंबर भी बन गईं. हेरिसीज कलेक्टिव की एक नारीवादी पत्रिका थी और इसी ने पॉलिटिक्स, आर्ट और सोशल जस्टिस के बीच संबंधों की जांच की थी. कुछ ही समय बाद जरीना न्यूयॉर्क फेमिनिस्ट आर्ट इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर बन गईं. प्रोफेसर बनने के बाद उन्होंने महिला कलाकारों को बराबर पढ़ाई के अवसर प्रदान किया.
महिला कलाकारों को दी गई अहम जगह
1980 में जरीना ने एआईआर में प्रदर्शनी के को-ऑपरेशन में सहयोग किया. इस गैलरी का नाम अलगाव की द्वंद्वात्मकता: संयुक्त राज्य अमेरिका की तीसरी दुनिया की महिला कलाकारों की एक प्रदर्शनी रखा गया था. इस प्रदर्शनी में विभिन्न कलाकारों के कामों को प्रदर्शित किया गया और इसमें महिला कलाकारों को भी काफी अहम जगह दी गई.
महिलाओं के हक के लिए उठाई आवाज
1980 में जरीना को न्यूयॉर्क फेमिनिस्ट आर्ट इंस्टिटट के एक बोर्ड मेंबर बनाया गया था. उसके बाद उनका जीवन एक फेमिनिस्ट कलाकार जर्नलिस्ट के तौर पर शुरू हुआ था. इस विभाग के लिए उन्होंने काफी लंबे समय तक काम किया. हाशमी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने आकर्षक वुडकट्स और इंटैग्लियो प्रिंट के लिए जानी जाती हैं, जो उन घरों और शहरों की अर्ध-अमूर्त छवियों को जोड़ते हैं जहां वह रहती थीं. उनके काम में अक्सर उनकी मूल उर्दू में शिलालेख और इस्लामी कला से प्रेरित ज्यामितीय तत्व शामिल होते थे. दुनिया भर के लोग सैन फ्रांसिस्को म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट, व्हिटनी म्यूजियम ऑफ अमेरिकन आर्ट, सोलोमन आर. गुगेनहेम म्यूजियम और मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट सहित अन्य प्रतिष्ठित दीर्घाओं में रखे गए हाशमी के कला संग्रहों का अवलोकन करते हैं. संघर्षों के बीच महिलाओं के हक के लिए आवाज उठाने वाली जरीना हाशमी का निधन अल्जाइमर के चलते 25 जुलाई साल 2020 को हुआ था.