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Zombies Course: अमेरिका की इस यूनिवर्सिटी से जॉम्बीज़ पर हो रहा है अंडरग्रेजुएट कोर्स, अधमरे लोगों के ऊपर पढ़ाई करके ले सकते हैं डिग्री

कोर्स की डिटेल के अनुसार, इसका उद्देश्य एथ्नोहिस्ट्री, मेडिकल एंथ्रोपोलॉजी, और रिलिजन की एंट्रोपोलोजी के दृष्टिकोण से जॉम्बीज़ को समझना है. इन टॉपिक्स से छात्रों को अलग-अलग संस्कृतियों में जॉम्बीज़ को लेकर जो कहानियां हैं, उनके बारे में पता चलेगा.

Zombie under graduation course (Representative Image/Canva) Zombie under graduation course (Representative Image/Canva)
हाइलाइट्स
  • जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में करवाया जा रहा है कोर्स 

  • जॉम्बीज़ के बारे में होती है पढ़ाई

आपने वो फिल्म देखी है जिसमें मरे हुए लोग अचानक उठ जाते हैं और चलने लगते हैं, धीरे-धीरे वे जिन्दा लोगों को भी अपने जैसा ही बना देते हैं. ये जॉम्बीज़ होते हैं. एक यूनिवर्सिटी ने इनपर कोर्स भी शुरू कर दिया है.

दरअसल, जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में, हैलोवीन का मतलब केवल डरावने कपड़े या सजावट नहीं है. यह मरे हुए लोगों के ऊपर स्टडी करने का भी समय है. अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी जॉम्बीज़ पर अंडर ग्रेजुएट कोर्स करवा रही है. यह समझने के लिए कि जॉम्बीज़ हमारी दुनिया को कैसे प्रभावित करते हैं और वे दुनिया से कैसे प्रभावित होते हैं, ये कोर्स शुरू किया गया है.  

जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में करवाया जा रहा है कोर्स 
अमेरिका के वर्जीनिया में जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में ये कोर्स करवाया जा रहा है. यूनिवर्सिटी का सोशियोलॉजी और एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट  इस कोर्स को करवाता है. जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इसमें 140 से ज्यादा छात्र भाग ले सकते हैं. कोर्स में केवक ज़ॉम्बी फिल्मों और टीवी शो पर चर्चा नहीं की जाती है बल्कि उनके पूरे अस्तित्व को समझने पर बात होती है. 

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कोर्स की डिटेल के अनुसार, इसका उद्देश्य एथ्नोहिस्ट्री, मेडिकल एंथ्रोपोलॉजी, और रिलिजन की एंट्रोपोलोजी के दृष्टिकोण से जॉम्बीज़ को समझना है. इन टॉपिक्स से छात्रों को अलग-अलग संस्कृतियों में जॉम्बीज़ को लेकर जो कहानियां हैं, उनके बारे में पता चलेगा. साथ ही ये भी पता चलेगा कि आज का समाज जिंदगी, मौत, स्वास्थ्य और बीमारी को किस तरह देखता है. 

इस कोर्स को करवाने वाली टेरीली एडवर्ड्स-ह्यूइट (Edwards-Hewitt) हैं, जो एक एक डॉक्टरेट छात्रा. टेरीली को इस क्षेत्र में 15 साल का अनुभव है.टेरीली एडवर्ड्स के मुताबिक, यह सिलेबस ज़ॉम्बी लोककथाओं के बारे में पढ़ाता है. विशेष रूप से जॉम्बीज़ और अफ्रीकी डायस्पोरा के बीच क्या संबंध है. 

आपको बता दें, जॉम्बीज़ की अवधारणा, कैरेबियन में दास बनाए गए पश्चिमी अफ्रीकियों की कहानियों से निकली है. कहा जाता है कि इनकी आत्मा को कैद किया जाता था, यही बाद में जाकर कैरेबियन के दूसरे हिस्सों में ज़ॉम्बी लोककथाएं बन गईं. एडवर्ड्स-ह्यूइट के अनुसार, इन कहानियों में जादूगरों के बारे में बताया जाता है, जो किसी व्यक्ति के शरीर को कंट्रोल कर सकते थे. 

क्या पढ़ाया जाता है इसमें?
लेकिन ये कोर्स केवल लोककथाओं तक सीमित नहीं है; यह यह भी कवर करता है कि कैसे जॉम्बीज़ का कॉन्सेप्ट फिल्म और टेलीविजन के क्षेत्रों में इतना लोकप्रिय हो गया. सिलेबस के पहले सप्ताह में विशेष रूप से द वॉकिंग डेड सीरीज पर फोकस किया जाता है. इस सीरीज ने कई मायनों में टेलीविजन शो और फिल्म की दुनिया में जॉम्बीज़ की एंट्री करवाई थी. अपने सेमेस्टर प्रोजेक्ट के लिए, छात्रों को एक लिस्ट में से दो जॉम्बी फिल्मों का रिव्यू करने का काम सौंपा जाता है.  

एडवर्ड्स-ह्यूइट इसे लेकर कहती हैं, “मैं चाहती हूं कि छात्र इन फिल्मों को आलोचनात्मक रूप से देखें और इस पर चर्चा करें. जॉम्बीज़ उपभोक्तावाद, आतंकवाद, या यहां तक कि वैश्विक महामारियों जैसी अलग-अलग सामाजिक चिंताओं के प्रतीक हो सकते हैं.” 

एडवर्ड्स-ह्यूइट के अनुसार, जॉम्बीज़ का कॉन्सेप्ट पहली बार 1930 के दशक में आया. इन्हें ऐसे लोगों के रूप में दिखाया गया जो मानसिक रूप से कमजोर थे और जिन्हें आसानी से कंट्रोल किया जा सकता था. बाद में 21वीं सदी में बायोहज़ार्ड और संक्रामक बीमारियों की चिंताओं को दिखाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाने लगा.