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धर्म

Guru Purnima 2023: प्रसिद्ध गुरु-शिष्य की जोड़ियां, जिन्होंने लोगों को दी जीवन जीने की सीख

गुरु-शिष्य
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एक शिक्षक या गुरु को हमेशा पहला दर्जा दिया जाता है. क्योंकि एक गुरु ही आपको केवल विषय का ज्ञान नहीं सिखाते हैं बल्कि आपको जीवन में सही रास्ता दिखाने का काम करते हैं. ऐसी कई गुरु-शिष्य जोड़ियां हैं जिन्होंने हमें जीवन जीने के तरीके सिखाए. 

1. रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द
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1. रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की गुरु-शिष्य जोड़ी से न जाने कितने लोगों ने प्रेरणा ली है. रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की मुलाकात 1881 में हुई थी. तब स्वामी विवेकानंद का नाम नरेन्द्र था. वहां उन्होंने एक गीत गाया, जिससे रामकृष्ण परमहंस काफी प्रभावित हुए थे. इसके बाद रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें दक्षिणेश्वर आने का निमंत्रण दिया. बस इसी मुलाकात ने इन दोनों जोड़ी को एक रूप दिया.  आज घर-घर में इनको जाना जाता है और इस जोड़ी से प्रेरणा ली जाती है. 

2. चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य
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2. चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य

अपने कौटिल्य की वजह से चाणक्य को जाना जाता है. उन्हें एक दार्शनिक, मार्गदर्शक और भारत के पहले अर्थशास्त्री कहा जाता है. उनके मार्गदर्शन में ही चंद्रगुप्त मौर्य इतने आगे बढ़ पाए. गुरु चाणक्य के मार्गदर्शन से ही चन्द्रगुप्त उस दौर के सबसे बड़े शासकों में से एक बने थे. 

3. द्रोणाचार्य और अर्जुन
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3. द्रोणाचार्य और अर्जुन

द्रोणाचार्य को एक बेहतरीन गुरु माना जाता है. उन्होंने सभी पांडवों, कौरवों, और जयद्रथ को विशेष रूप से "धनुर्विद्या" की शिक्षा प्रदान की थी. हालांकि, ये सब जानते हैं कि अर्जुन उनके प्रिय छात्र थे. एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब द्रोणाचार्य पांडवों को धनुर्विद्या का उपदेश दे रहे थे, उन्होंने सभी से पूछा था कि "तुम क्या देख रहे हो?" इसका जवाब सभी ने अलग-अलग दिया था. लेकिन केवल अर्जुन ने कहा, "मैं मछली की आंख देख रहा हूं.” यही कारण है कि उन्होंने उन्हें अपना प्रिय छात्र माना.

4. द्रोणाचार्य और एकलव्य
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4. द्रोणाचार्य और एकलव्य

जब भी हम द्रोणाचार्य और अर्जुन की बात होती है तो एकलव्य का नाम भी आता है. ऐसा कहा जाता है कि चूंकि एकलव्य किसी राजशाही से ताल्लुक नहीं रखते थे इसलिए वह द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण नहीं ले सके थे. लेकिन एकलव्य हमेशा से द्रोणाचार्य से शिक्षा लेना चाहते थे. ऐसे में उन्होंने गुरु द्रोणाचार्य का एक मिट्टी का प्रारूप रखा था और अपनी "धनुरविद्या" का अभ्यास किया. कहा जाता है कि वे इसमें अर्जुन से भी बेहतर थे. जब एक बार द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा मांगी, तो उन्होंने एकलव्य का अंगूठा मांग लिया था. एकलव्य ने बिना सोचे अपना अंगूठा दे दिया था. 

5. गुरु वशिष्ठ और राम
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5. गुरु वशिष्ठ और राम

राजा दशरथ के पुत्र, राम, गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के अद्वितीय भक्त माने जाते हैं. एक ओर गुरु वशिष्ठ ने बचपन में राम को ज्ञान की शिक्षा दी, वहीं, विश्वामित्र ने भी उनकी तरुणावस्था में उन्हें ज्ञान दिया. श्रीराम को हिन्दू धर्म में "मर्यादा पुरुषोत्तम" कहा जाता है. हालांकि, इसका श्रेय कई हद तक श्रीराम के गुरुओं को जाता है. जिससे उन्होंने रामराज्य की मिसाल पेश की.