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धर्म

Monks from IIT: आईआईटी से की पढ़ाई, चकाचौंध रास न आई... लाखों की सैलरी वाली नौकरी छोड़ संन्यासी बनने वाले 5 लोग

Swami Mukundananda
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स्वामी मुकुंदानंद (Swami Mukundananda): स्वामी मुकुंदानंद एक आध्यात्म गुरू और जेकेयोग (JKYog) के फाउंडर हैं. उन्होंने आईआईटी दिल्ली से अपनी डिग्री हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट कोलकाता (IIM Kolkata) से मास्टर्स ऑफ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) की पढ़ाई भी की. मुकुंदानंद अब अपने इंजीनियरिंग के ज्ञान को आध्यात्मिक शिक्षा से मिलाकर लोगों को जिन्दगी का एक नया नजरिया देते हैं. जेकेयोग में उनके कार्यक्रम लोगों को स्वास्थ्य, योग और मेडिटेशन पर फोकस करना सिखाते हैं. (Photo/Instagram)

Gaurang Das Prabhu
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गौरांग दास प्रभु (Gaurang Das Prabhu): लीडरशिप एक्सपर्ट और इस्कॉन के गवर्निंग बॉडी कमीशन के सदस्य गौरांग दास ने आईआईटी बॉम्बे से ग्रैजुएशन किया है. वह आईआईएम नागपुर की फैकल्टी का हिस्सा भी है. उन्हें स्थिरता और सामाजिक कल्याण में उनके काम के लिए जाना जाता है. गौरांग दास ने गोवर्धन इकोविलेज सहित कई पर्यावरण और शैक्षिक पहलों में अहम भूमिका निभाई है. 

Rasanath Das
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रसनाथ दास (Rasanath Das): आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र रसनाथ दास ने ग्रैजुएशन के बाद अमेरिका जाकर डेलॉइट में काम किया. इसके बाद उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में एमबीए की पढ़ाई की. आखिरकार उन्होंने कृष्ण की भक्ति में डूबने के लिए अपना कॉर्पोरेट करियर छोड़ दिया. वह अब आध्यात्मिक समुदाय में एक प्रमुख व्यक्ति हैं जो अपनी शिक्षाओं और समर्पण के लिए जाने जाते हैं. 

Swami Sundar Gopal Das
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स्वामी सुंदर गोपाल दास (Swami Sundar Gopal Das): आईआईटी दिल्ली से 2002 में ग्रैजुएशन करने वाले संदीप भट्ट भी उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं जिन्होंने चकाचौंध वाला जीवन छोड़कर आध्यात्म का रुख किया. ग्रैजुएशन में अपने बैच के गोल्ड मेडलिस्ट रहे संदीप ने 2004 में मास्टर्स डिग्री हासिल करने के बाद तीन साल तक लार्सन एंड टर्बो (Larson & Turbo) में काम किया. आखिर उन्होंने 2007 में नौकरी छोड़कर महज 28 साल की उम्र में संन्यासी बनने का फैसला किया.

Aviral jain Monk
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निसंग सागरजी महाराज (Nisang Sagarji Maharaj): आईआईटी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (IIT BHU) से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रैजुएशन करने के बाद अविरल जैन के पास वॉलमार्ट में एक आसान नौकरी थी. लेकिन वह इस नौकरी से खुश नहीं थे. इंजीनियरिंग छोड़ संन्यासी बनने वाले अन्य लोगों की तरह इनके जीवन में भी सुकून की कमी थी. इसलिए इन्होंने अपने जीवन की दिशा बदलने का फैसला किया. विशुद्ध सागरजी महाराज के मार्गदर्शन में अविरल जैन संन्यासी बन गये. उन्होंने अपनी पहचान बदल ली और मुनि श्री 108 निसंग सागरजी महाराज के नाम से जाने गए.