महाकुंभ भारत ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर लोगों को आकर्षित करता है. इसकी तैयारियां भी जोरों शोरों से चल रही हैं. क्योंकि कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा संस्कृति एवं धार्मिक मेला है. महाकुंभ को लेकर परिवहन निगम की 3000 हजार बसें गोरखपुर से प्रयागराज के लिए चलेंगी. सभी बसों का राप्ति नगर डिपो में डेंटिंग पेंटिंग का काम चल रहा है, जो 31 दिसंबर तक पूरा हो जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुस्कुराते चेहरे के साथ भगवामय बस और लग्जरियस बस जैसी सुविधा के साथ श्रद्धालु महाकुंभ तक सफर करेंगे.
3000 हजार बसें गोरखपुर से प्रयागराज के लिए चलेंगी
श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर परिवहन निगम यूपी के अलग-अलग जिलों से और गोरखपुर परिक्षेत्र से लगभग 3000 हजार बसों को चलाने का फैसला लिया है. सारी बसें गोरखपुर से होते हुए प्रयागराज तक पहुंचेंगी. गोरखपुर से जितनी भी बसें चलाई जा रही हैं, वह सारी बसें भगवामय रहेगी.
नई बसें भी मंगवा रहा उत्तर प्रदेश परिवहन निगम
उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से कई बसें गोरखपुर के राप्ती नगर डिपो पर लाई गई है. अधिकतर बसें पश्चिम की तरफ से मंगाई गईं हैं. कुछ नई बसों को मंगाने की भी व्यवस्था परिवहन निगम कर रहा है. सभी बसों के सीटों में नई सीटें लगाई जा रही हैं. ये सभी बसें गोरखपुर परिक्षेत्र के 38 स्थानों से होकर महाकुंभ में जाएंगी और आएंगी. जिनके लिए 15 प्वाइंट बनाए गए हैं. इस परिक्षेत्र में गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, बस्ती, संत कबीर नगर और सिद्धार्थनगर जिलों से आने वाले बस डिपो शामिल हैं.
श्रद्धालुओं के लिए हर जरूरी व्यवस्था
राप्ती नगर डिपो के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक अशोक कुमार सिंह ने बताया, श्रद्धालुओं के लिए सैटेलाइट कंट्रोल रूम बनाया गया है. किसी को कोई दिक्कत होगी तो एमरजेंसी नंबर पर कॉल कर सकते हैं, बसों में लिखे एमरजेंसी नंबर को नजदीकी सेंटर से कनेक्ट कर दिया जाएगा. जाम कंट्रोल करने के लिए भी अलग व्यवस्था की गई है.
क्या है महाकुंभ की मान्यता
महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होती है, जोकि 13 जनवरी 2025 को है. वहीं महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी 2024 को कुंभी की समाप्ति होती है. मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान के बाद शारीरिक अशुद्धियां दूर हो जाती हैं. हर पापों से मुक्ति मिलती है. मन शुद्ध होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. महाकुंभ को लेकर मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत पाने के लिए देव और दानवों में 12 दिन तक युद्ध चला फिर भगवान विष्णु के कहने पर गरुड़ अमृत कलश की रक्षा करने पहुंचे. असुरों ने जब गरुड़ जी से अमृत कलश छीनने की कोशिश की तो उस समय कलश से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरी.