
प्रयागराज में संगम के तट पर महाकुंभ का आयोजन हो रहा है. महाकुंभ की शुरुआत से पहले प्रयागराज में 'आज तक धर्म संसद' का आयोजन हुआ है. इस मंच के 'शक्ति पूजन' सेशन में कई साध्वियों ने शिरकत की. इसमें कामाख्या पीठ की महामंडलेश्वर साध्वी गायत्रीनंद गिरी, किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर मां पवित्रानंद गिरी, श्री सिद्ध मठ की महामंडलेश्वर साध्वी विश्वरूपा और महानिर्वाणी अखाड़ा की महामंडलेश्वर साध्वी दिव्या गिरी शामिल हुईं. महाकुंभ को लेकर इन साध्वियों ने अपने विचार रखे.
किन्नर साध्वी का दर्द-
जब किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर पवित्रानंद गिरी से सवाल किया गया कि किन्नर अखाड़े के लिए समाज और धर्म ने कैसे बांहें खोली? इसपर महामंडलेश्वर ने कहा कि हमारा समाज हमेशा शिकार बना हुआ है. समाज इतना समझदार नहीं था, जब हम लोग बाहर आए. मेरी मां भी मुझे समझ नहीं पाई कि मेरा बेटा इस रूप में पैदा हुआ है. समाज और परिवार ने हमें घर से बाहर कर दिया.
उन्होंने कहा कि हमारे समाज ने कभी हमें नहीं समझा. हम दर-दर भटकते रहे. भटकते-भटकते ऐसी स्थिति मिली कि सनातन को हमारे लिए दरवाजे खुले करने पड़े. सनातन में हमारे लिए जगह नहीं थी. लेकिन किन्नर उपदेवता में आते हैं. हमारे पुराण जानते थे, लेकिन कहीं ना कहीं एक अर्धनारी, जो साड़ी पहनकर चलेगा, उसे हीन नजर से समाज ने देखा है. उन्होंने कहा कि जो तिरस्कार था, समाज उसे भूलकर हमारे चरणों में है, क्योंकि किन्नरों का आशीर्वाद सबसे बड़ा होता है. किन्नर अखाड़ा साल 2013 में उज्जैन में स्थापित हुआ और 2016 के कुंभ में हमारे लिए सनातन का बड़ा दरवाजा खुला था. आज हम चौथा कुंभ कर रहे हैं.
साध्वियों की संख्या बढ़ रही है?
महानिर्वाणी अखाड़ा की महामंडलेश्वर साध्वी दिव्या गिरी ने कहा कि आजादी की पहली लड़ाई में साधु-संतों ने शुरू किया था. तब उसकी भूमिका थी. लेकिन अब शस्त्र की आवश्यकता नहीं है. आज शास्त्र की भूमिका है. उन्होंने कहा कि अगर आप मां के रूप में है और साध्वी के रूप में है तो भूमिका साधु-संतों से ज्यादा बढ़ जाती है.
उन्होंने कहा कि अखाड़े के अंदर आपका दायित्व तो है ही, लेकिन साध्वी हैं तो आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. चूंकि महिलाएं आपको रोल मॉडल के रूप में देख रही होती हैं, क्योंकि आपको संन्यास की भी समझ होनी चाहिए और गृहस्थ की भी समझ होनी चाहिए.
साध्वी दिव्या गिरी ने बताया कि साध्वियों की संख्या बढ़ी है. जूना अखाड़े के संन्यासियों के आंकड़े के मुताबिक 3 लाख साध्वियों का आंकड़ा था. साल 2019 में 200 महिलाओं ने संन्यास लिया था. ये आंकड़े हर साल बढ़ रहे हैं.
महिलाएं कोमल होती है?
महिला का मन कोमल और भावुक होता है. रिश्ते कैसे छोड़ें? क्या एक साध्वी के लिए ज्यादा कठिन है. इस सवाल पर श्री सिद्ध मठ की महामंडलेश्वर साध्वी विश्वरूपा ने कहा कि निश्चित रूप से है. कितना भी महिला सशक्तिकरण की बातें करें. लेकिन जो फर्क है, वो तो रहता ही है. उन्होंने कहा कि महिलाओं को ईश्वर कुछ ज्यादा ही कोमल और भावनात्मक बनाया है. विचारों का मंथन महिलाओं में ज्यादा होता है. उन्होंने कहा कि मैं ये कहना चाहूंगा कि स्त्री बहुत ताकतवर होती है. उन्होंने इसका एक उदाहरण भी दिया. उन्होंने कहा कि जब पुरुषों के सामने कोई छोटी-छोटी परेशानी होती है तो वो खुद को सुलझा लेते हैं. लेकिन जब बड़ी परेशानी आती है तो वो अपनी मां या पत्नी को बताते हैं. जब पत्नी आपका समर्थन करती है तो आप अच्छा महसूस करते हैं.
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