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जानिए इन 5 स्तंभों के बारे में जो किसी भी मुसलमान की जिंदगी का हैं जरूरी हिस्सा  

इस्लाम की धार्मिक किताब कुरान ए करीम दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है. इस किताब में इस्लाम के पांच मूलभूत सिद्धांतों का जिक्र किया गया है. इन सिद्धांतों को मानना और उनका अनुसरण करना हर मुसलमान के लिए जरूरी माना गया है. 

 ये 5 स्तंभ हैं इस्लाम का जरूरी हिस्सा ये 5 स्तंभ हैं इस्लाम का जरूरी हिस्सा
हाइलाइट्स
  • पहला सिद्धांत है शहादा

  • नमाज इस्लाम का दूसरा और सबसे जरूरी स्तंभ माना जाता है

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब कंट्रोवर्सी पर अपना फैसला सुना दिया है. मंगलवार को कोर्ट ने कहा है कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इस्लाम मजहब एकेश्वरवाद पर आधारित है. इस्लाम की धार्मिक किताब कुरान ए करीम दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है. इस किताब में इस्लाम के पांच मूलभूत सिद्धांतों का जिक्र किया गया है. इन सिद्धांतों को मानना और उनका अनुसरण करना हर मुसलमान के लिए जरूरी माना गया है. 

इस्लाम के पांच बुनियादी सिद्धांत क्या हैं?

1. शहादा

2. नमाज़ 

3. रोज़ा

4. ज़कात 

5. हज
 
तो चलिए विस्तार से जानते हैं कि इन सभी सिद्धांतों के बारे में ....

1. शहादा 

पहला सिद्धांत है शहादा. कोई भी मुसलमान शहादा का कलमा पढ़कर अपने मुसलमान होने होने गवाही देता है. इसके बोल हैं, “ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मद उर रसूल अल्लाह". पहले कलमे का मतलब है, अल्लाह एक है, अल्लाह के सिवा कोई माबूद यानि दूसरा खुदा नहीं है और पैगंबर मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं. आपको बता दें, जब भी किसी मुस्लिम परिवार में कोई बच्चा पैदा होता है तो सबसे पहले उसके कान में कलमा पढ़ा जाता है.

2. नमाज़

नमाज इस्लाम का दूसरा और सबसे जरूरी स्तंभ माना जाता है. एक मुसलमान को पांच वक्त की नमाज पढ़ना फर्ज है. ये एक तरह से प्रार्थना होती है. बता दें,  नमाज़ सुबह, दोपहर, शाम से पहले, शाम को और रात में की जाती है. इनके नाम प्रार्थना के समय के अनुसार होते हैं. फज्र (सुबह), धुहर (दोपहर), ʿअर (शाम से पहले), मगरिब (शाम), और ईशा (रात) . फज्र की नमाज़ सूर्योदय से पहले की जाती है, सूरज के अपने उच्चतम बिंदु को पार करने के बाद दोपहर में धुहर की जाती है, असर सूर्यास्त से पहले शाम की नमाज़ है, मग़रिब सूर्यास्त के बाद शाम की नमाज़ है और ईशा रात की नमाज़ है.

कहा जाता है कि जिस दिशा में सूर्यास्त होता है उसी दिशा में मुंह करके नमाज अदा करनी चाहिए, क्योंकि इस दिशा में मुसलमानों का धार्मिक स्थान काबा स्थित है.

3. रोज़ा

इस्लाम का चौथा स्तंभ रोज़ा यानि उपवास है.  रमजान इस्लामी कैलेंडर में पवित्र महीना माना गया है. रोज़ा हर दिन भोर से सूर्यास्त तक होता है. इस दौरान कुछ भी खाने या पीने पर पाबंदी होती है. हालांकि, रोज़ा रखने वाले  सुबह सहरी के वक्त खाना खाते हैं और फिर पूरे दिन कुछ भी नहीं खाते पीते और फिर शाम को इफ्तार के बाद रोजा खोलते हैं. रोज़ा रखने का मतलब केवल उपवास रखकर, भूखे-प्यासे रहना नहीं होता है, बल्कि इसका असली मतलब अपने ईमान को बनाए रखना. मन में बुरे विचार ना लाना. कुरान के मुताबिक ये एक जरिया है जिससे आप गरीबों की भूख का दर्द समझ सकें. 

4. ज़कात

इस्लाम का चौथा स्तंभ है ज़कात. इसका मतलब है दान करना.  इसके मुताबिक, जो भी मुसलमान आर्थिक रूप से संपन्न है उसे हर साल अपनी आमदनी का 2.5 प्रतिशत गरीबों को दान देना चाहिए.  हर साल अपनी आमदनी में से जो ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों में दान करते हैं उसे जकात कहा जाता है.

कुरान में  ये साफ साफ़ लिखा है कि नमाज़ कायम करो और ज़कात अदा करो. माना जाता है कि जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते हैं, उनका रोज़ा और इबादत कबूल नहीं होती है. 

हालांकि, ज़कात की कुछ शर्तें भी हैं. जैसे जकात देने वाला मुसलमान और बालिग होना चाहिए, वह नाबालिग न हो. जो ज़कात दे रहा है वह अक्लमंद हो, पागल न हो. इसके अलावा जो भी वो दान कर रहा है वह उसका मालिक हो.  वहीं, अगर किसी के पास ज्यादा पैसा नहीं है, तो उसे इसकी भरपाई वह अलग-अलग तरीकों से कर सकता है, जैसे अच्छे काम और दूसरों के प्रति अच्छा व्यवहार. 

5. हज

इस्लाम के कुल 5 स्तंभों में से हज को पांचवां स्तंभ माना गया है. इसके मुताबिक, सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों को अपने जीवन में कम से कम एक बार हज जरूर जाना चाहिए. माना जाता है कि हज के बाद तमाम पिछले गुनाह माफ हो जाते हैं. ये एक तरह का अनुष्ठान होता है, जिसमें केवल 2 सफेद चादर पहनकर मक्का की यात्रा करना होता है.  दुनिया के कुछ हिस्सों से ऐसे हाजी भी पहुंचते हैं जो हजारों मील की दूरी महीनों पैदल चलकर तय करते हैं और मक्का पहुंचते हैं.

हालांकि, व्यक्तिगत भागीदारी व्यक्ति की आस्था के आधार पर अलग-अलग हो सकती है. किसी भी दूसरे धर्म की ही तरह इस्लाम भी कुछ प्रथाओं को मानक मानता है; लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि सभी व्यक्ति जो खुद को मुसलमान मानते हैं, अनिवार्य रूप से उनका पालन करते हैं.