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Ajmer Sharif Dargah: 400 किमी से अधिक का सफर पैदल तय करके अजमेर शरीफ पहुंचे थे बादशाह Akbar, क्या थी वजह

मुगल बादशाह अकबर 437 किलोमीटर पैदल चलकर अजमेर शरीफ गए थे. अकबर ने मन्नत मांगी थी कि अगर उनकी संतान होती है तो वो पैदल चलकर दरगाह पर जाएंगे. इसके बाद उनके घर सलीम का जन्म हुआ था. मन्नत पूरी होने के बाद बादशाह अकबर ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गए.

Ajmer Sharif Dargah Ajmer Sharif Dargah

राजस्थान का अजमेर शरीफ दरगाह काफी फेमस है. इस जगह अनेक धर्मों के लोग जाते हैं और अपनी मन्नतें मांगते हैं. यह ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है. कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर 437 किलोमीटर पैदल चलकर ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर पहुंचे थे. उसके बाद वो हर साल अजेमर दरगाह पर जाने लगे थे.अकबर ने इस दरगाह में कई निर्माण भी करवाए थे. चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर अकबर क्यों पैदल अजमेर शरीफ गया था और इसके पीछे क्या कारण था?

पैदल चलकर अजमेर शरीफ गए थे अकबर-
अजमेर शरीफ भारत की सबसे फेमस सूफी दरगाहों में से एक है. मुगल बादशाह अकबर संतान की कामना लेकर पैदल अजमेर शरीफ की दरगाह पर गए थे. बताया जाता है कि अकबर की कई संतानों की असमय मौत हो गई थी.जिससे वो दुखी रहने लगे थे. फिर उनको पता चला कि अजमेर शरीफ की दरगाह पर मन्नत मांगने से सभी मुराद पूरी हो जाती है. अकबर ने मन्नत मांगी कि अगर उनका बेटा पैदा होता है तो वो पैदल चलकर ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह जाएंगे. इसके बाद अकबर के घर सलीम का जन्म हुआ. मन्नत पूरी होने के बाद बादशाह अकबर आगरा से अजमेर तक 437 किलोमीटर पैदल चलकर गए और दरगाह को खूब दान दिया.

अकबर ने दान दी थी देग-
बादशाह अकबर पहले भी अजमेर जाया करते थे. लेकिन बेटे के जन्म के बाद बादशाह का दरगाह पर जाना बढ़ गया. इस दौरान उन्होंने खूब दान दिया. साल 1568 में बादशाह ने एक देग (कड़ाही) दान दी थी. इसमें एक बार में इतना खाना पकाया जा सकता है कि हजारों लोगों की भूख मिट सकती है. इस देग में एक बार में 45 क्विंटन खाना पकाया जा सकता है. इसमें चावल, घी, चीनी, जाफरान, सूखे मेवों से जर्दा (मीठे चावल) बनाया जता है. ये देग आज भी अजमेर दरगाह शरीफ में रखी हुई है.

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कौन थे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती-
सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म एक फरवरी 1143 में अफगानिस्तान के हेरात प्रांत के चिश्ती शरीफ में हुआ था. ख्वाजा चिश्ती सुल्तान इल्तुतमिश के समय में भारत आए थे. वो अपने मानवता के उपदेशों के चलते खूब मशहूर हुए. उनको हर धर्म के लोग पसंद करते थे.

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने अजेमर को अपना ठिकाना बनाया. चिश्ती इस जगह पर अपनी जिंदगी के आखिरी वक्त तक रहे. 15 मार्च 1236 को 93 साल की उम्र में उनका इंतकाल हो गया. इस संत के सम्मान में मुगल बादशाह हुमायूं ने इस दरगाह का निर्माण करवाया था. दरगाह के आंगन में संत की कब्र मौजूद है.

बादशाह अकबर ने अजमेर शरीफ दरगाह में कई मस्जिदें बनवाईं. इस दरगाह का लंगर काफी फेमस है. ख्वाजा गरीब नवाज की डेथ एनिवर्सरी पर हर साल उर्स के तौर पर मनाया जाता है.

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