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Ayodhya Ram Mandir: राम मंदिर का दरवाजा भी होगा भव्य, जानें कैसे और कौन बना रहा है इसे

टीम ने कुल 44 दरवाजे तैयार किए हैं. ये सभी दरवाजे अपने आप में काफी अलग हैं, जिनमें अलग-अलग तरह की कलाकृतियां बनी हैं. इसमें गर्भगृह के मुख्य दरवाजे और सीता, लक्ष्मण, हनुमान और दूसरे मंदिरों की ओर जाने वाले दरवाजे भी शामिल हैं.

Ram Mandir Ram Mandir
हाइलाइट्स
  • सामने आई कई चुनौतियां   

  • लघु मॉडल से लेकर मंदिर के दरवाजे तक

राम मंदिर को लेकर तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी, 2024 को होने वाली पवित्र 'प्राण प्रतिष्ठा' में भाग लेने वाले हैं. चारों तरफ राम मंदिर की ही चर्चा हो रही है. हालांकि, इसमें सबसे बड़ा हाथ राम मंदिर बनाने वाले कारीगरों का है. तमिलनाडु के मामल्लपुरम के 20 बढ़ई-कारीगर भी इसी टीम का हिस्सा हैं, जिन्होंने राम मंदिर को पूरा करने का काम किया है. कुमारसामी रमेश के नेतृत्व में, इन कारीगरों ने पिछले छह महीने अयोध्या में बिताए हैं, और मंदिर के बल्हारशाह सागौन के दरवाजों को बनाने का काम किया है. 

चेन्नई से रखते हैं ताल्लुक 

चेन्नई से 60 किमी दक्षिण में ममल्लापुरम में एक छोटे से शेड से आने वाले, रमेश की टीम को नवंबर 2020 में विश्व हिंदू परिषद ने चुना था. टीम ने कुल 44 दरवाजे तैयार किए हैं. ये सभी दरवाजे अपने आप में काफी अलग हैं, जिनमें अलग-अलग तरह की कलाकृतियां बनी हैं. इसमें गर्भगृह के मुख्य दरवाजे और सीता, लक्ष्मण, हनुमान और दूसरे मंदिरों की ओर जाने वाले दरवाजे भी शामिल हैं.

लघु मॉडल से लेकर मंदिर के दरवाजे तक

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, शुरुआत में लकड़ी के विशेषज्ञ रमेश को नई दिल्ली में एक छोटा लकड़ी का मंदिर बनाने का काम सौंपा गया था. उनके काम से प्रभावित होकर, उन्हें राम मंदिर के लिए भव्य दरवाजे तैयार करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया. पीढ़ियों से चले आ रहे कौशल से लैस रमेश की टीम ने जून 2023 में राम मंदिर में लकड़ी का काम शुरू किया. 

सामने आई कई चुनौतियां   

हालांकि, इसमें कई चुनौतियां भी सामने आई. अयोध्या में कारीगरों को न केवल मंदिर स्थल पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था का सामना किया, बल्कि उन्हें भारी गर्मी से लेकर सर्दी का भी सामना करना पड़ा. लेकिन उनका किसी का भी हौसला नहीं गिरा. वे बताते हैं कि वे सभी सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक काम करते हुए, टीम ने चुनौतियों पर काबू पाया, अपना खाना खुद बनाया और खुद को कला के लिए  समर्पित कर दिया. 

किन शैलियों में तैयार किए हैं दरवाजे 

वेसर शैली में तैयार किए गए, जो दक्कन क्षेत्र में प्रमुख नागर और द्रविड़ शैलियों का मिश्रण है, दरवाजे में कला का मिश्रण मिलता है. दरवाजों को बेहतर बनाने के लिए टीम ने अजंता और एलोरा की गुफाओं से प्रेरणा ली और अपने काम में सटीकता, रचनात्मकता, सौंदर्यशास्त्र और शिल्प शास्त्र को मिलाया.  

कारीगरों के पूर्वज भी कर चुके पद्मनाभपुरम महल पर काम  

रमेश सहित ज्यादातर कारीगरों के पूर्वज भी पद्मनाभपुरम महल पर काम कर चुके हैं. रमेश के पिता कुमारसामी ने अपने करियर की शुरुआत बैलगाड़ियों के लिए लकड़ी की धुरी बनाने से की थी. अब, रमेश और उनकी टीम अयोध्या की सांस्कृतिक पच्चीकारी में अपना योगदान जोड़कर इस समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. ठीक ऐसे ही कई कारीगर हैं जिनके पूर्वज भी इसी काम में पारंगत थे. 

तमिलनाडु का योगदान

लेकिन तमिलनाडु का कलात्मक योगदान दरवाजे से आगे भी फैला हुआ है. तूतीकोरिन जिले के एराल के शिल्पकारों ने 650 किलोग्राम की 'वेंगलम' घंटी बनाई है. वहीं रमेश द्वारा तैयार किए गए ताबूतों में रखा 16 नदियों का पवित्र जल लोगों को राम मंदिर से जोड़ता है. मामल्लापुरम और पूरे तमिलनाडु के कारीगरों के सामूहिक प्रयास कलात्मकता, परंपरा और भक्ति के मिश्रण का उदाहरण हैं.