झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैजनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है. यह विश्व का इकलौता शिव मंदिर है, जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं. इसलिए इसे शक्तिपीठ भी कहते हैं. पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि यहां माता सती का ह्रदय कट कर गिरा था इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहते हैं. शक्तिपीठ होने के कारण महिलाएं यहां से प्रसाद के रूप में सिंदूर जरूर चढ़ाती हैं.
सावन के महीने में पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु
मान्यता है कि बाबा भोले के भक्त जब सावन में बाबा बैजनाथ मंदिर में कांवड़ लेकर आते हैं तो उन्हें शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद मिलता है. सावन के महीने में यहां लाखों श्रद्धालु भगवान भोले शंकर को जल चढ़ने के लिए पहुंचते हैं. श्रद्धालु देवघर से करीब 108 किलोमीटर दूर बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर पैदल यात्रा के बाद बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं.
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां गंगा के इसी तट से भगवान राम ने पहली बार भोलेनाथ को कांवड़ भरकर गंगा जल अर्पित किया था.
कई नाम हैं प्रचलित
यूं तो ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है. लेकिन शिवपुराण में इसकी विस्तारपूर्वक जानकारी मिलती है. इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है. इस स्थान के कई नाम प्रचलित हैं जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, हार्दपीठ और कामना लिंग. कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं.
इसलिए कहते हैं हार्दपीठ
वेदों में वर्णित है कि राजा दक्ष के महायज्ञ में शिव को नहीं बुलाए जाने पर माता सती रुष्ट हो गई थीं और अग्निकुंड में खुद को समाहित कर लिया था. इसके बाद भगवान शिव क्रोधित हो गए थे और माता सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर तांडव करने लगे थे. शिव के इस क्रोध से प्रलय आ जाता. ऐसे में भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. जहां जहां भी सती के शरीर का हिस्सा गिरा व शक्तिपीठ कहलाया. देवघर बैद्यनाथ धाम में माता का हृदय कटकर गिरा था इसलिए इसे शक्तिपीठ या हार्दपीठ भी कहते हैं.
कामना लिंग से लंकापति रावण का भी है संबंध
प्राचीन कथाओं के अनुसार लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की. रावण की तपस्या से खुश होकर भगवान ने उसे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने कहा कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है. यह सुनकर सभी देवता परेशान हो गए और ब्रह्माजी के पास गए और कहा कि अगर शिवजी रावण के साथ लंका चले गए तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा. इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव को सोच-समझकर वरदान देने के लिए कहा. इस पर शिवजी ने रावण से कहा कि यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो तो ले चलो लेकिन मेरी एक शर्त रहेगी. भगवान शिव ने रावण से कहा कि जहां भी मुझे भूमि स्पर्श हो जाएगी, मैं वही स्थापित हो जाउंगा.
चरवाहे को शिवलिंग पकड़ा दी थी
इस बात पर रावण सहमत हो गया. भगवान ने एक शिवलिंग का रूप धारण कर लिया. इसके बाद रावण शिवलिंग को लेकर जा रहा था. इसी दौरान भगवान शिव ने रावण को लघुशंका की इच्छा जगा दी. काफी समय तक बर्दाश्त करने के बाद रावण ने एक चरवाहा बैजू को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका करने लगा. इसी समय भगवान ने अपना वजन बढ़ा दिया और इससे चरवाहे ने रावण को आवाज लगाकर कहा कि वह अब इस शिवलिंग को उठाए नहीं रह सकता है. रावण लघुशंका करने में व्यस्त होने के कारण सुन नहीं पाया. इधर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया. जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया. तब रावण को भगवान की लीला समझ में आई वह अत्यंत क्रोधित हुआ. शिवलिंग पर चार लात मारकर फिर अपना अंगूठा गड़ाकर चला गया. वाहा छुपकर बैजू यह सब देख रहा था, उसे लगा बाबा जी को भक्ति करना का यही तरीका है तब से बैजू का दिनचर्या बन गया वह रोज शिवलिंग पर चार लाठी मारता फिर अंगूठे से शिवलिंग को दबा कर महादेव की भक्ति में लीन हो जाता था.
बैजू महादेव के चरणों में गिर पड़ा
एक दिन बैजू को बहुत जोर से भूख लगी,जब वह घर जा कर जैसे ही अन्न मुंह में डाला बैजू को याद आया आज तो भोले बाबा की भक्ति नहीं की बैजू अपना भोजन छोड़ लाठी लेकर दौड़ा-दौड़ा गया और शिवलिंग पर प्रहार करने लगा. तभी साक्षात महादेव प्रकट हुए. वह बोले-बैजू मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ हूं. बैजू महादेव को देख कर उनके चरणों में गिर पड़ा. उसने कहा महादेव मैंने रावण को देखा था ऐसा करते तो मुझे लगा ऐसी ही आपकी भक्ति की जाती. महादेव बैजू को गले लगाते और बोलते बैजू तुम ने दिल से मेरी भक्ति की है आज से दुनिया तुम्हे मेरा सबसे बड़ा भक्त के नाम से जानेगी, मेरे नाम से पहले तुम्हारा नाम लिया जाएगा और यह स्थान बाबा बैजनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध होगा.
मंदिरों के शीर्ष पर लगे हैं पंचशूल
यूं तो सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दिखता है लेकिन बैजनाथ धाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं. यहां प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि से दो दिनों पूर्व बाबा मंदिर, मां पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं. महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथास्थान स्थापित कर दिया जाता है. इस दौरान भोलेनाथ व माता पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है.