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दक्षिण भारत की बोम्मई गोलू परंपरा… नवरात्रि में रखें जाते हैं घरों में रंग-बिरंगे खिलौने और मूर्तियां, ऐसे होता है माता रानी का पूजन

बोम्मई गोलू की परंपरा प्राचीन समय से चल रही है. यह परंपरा इस मान्यता पर आधारित है कि नवरात्रि के नौ दिन देवी शक्ति की पूजा के लिए समर्पित होते हैं. इस दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, और मूर्तियों के माध्यम से देवी की कृपा और शक्ति का आह्वान किया जाता है.

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हाइलाइट्स
  • दक्षिण भारत की बोम्मई गोलू परंपरा

  • घरों में रंग-बिरंगे खिलौने और मूर्तियां रखी जाती हैं

नवरात्रि का त्योहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है. हर क्षेत्र में माता रानी को पूजने की परंपरा और रीति-रिवाज अलग होते हैं. जहां उत्तर भारत में नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजा और रामलीला का आयोजन होता है, तो वहीं दक्षिण भारत में इसे अनोखे तरीके से मनाया जाता है, जिसे बोम्मई गोलू या नवरात्रि गोलू के नाम से जाना जाता है. यह परंपरा तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में काफी प्रचलित है. बोम्मई गोलू में देवी की पूजा के साथ-साथ घर में मिट्टी की मूर्तियों और खिलौनों से सजाया जाता है. 

क्या है यह परंपरा?
बोम्मई गोलू एक ऐसी परंपरा जिसमें घरों में रंग-बिरंगे खिलौने और मूर्तियां रखी जाती हैं. ये खिलौने और मूर्तियां देवी-देवताओं, पौराणिक कहानियों, ऐतिहासिक घटनाओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं को  दर्शाते हैं. नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान इन मूर्तियों को एक विशेष सीढ़ीदार मंच पर सजाया जाता है.  

परंपरा की शुरुआत और महत्व
बोम्मई गोलू की परंपरा प्राचीन समय से चल रही है. यह परंपरा इस मान्यता पर आधारित है कि नवरात्रि के नौ दिन देवी शक्ति की पूजा के लिए समर्पित होते हैं. इस दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, और मूर्तियों के माध्यम से देवी की कृपा और शक्ति का आह्वान किया जाता है. गोलू में सजाई गई मूर्तियां हमें यह सिखाती है कि जीवन में हर चीज का अपना महत्व है, चाहे वह बड़ा हो या छोटा. 

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बोम्मई गोलू की तैयारी
नवरात्रि गोलू की तैयारी काफी पहले से शुरू हो जाती है. घर के लोग मिट्टी, लकड़ी और सोने-चांदी की मूर्तियां खरीदते हैं और उन्हें साफ-सफाई कर सजाने के लिए तैयार करते हैं. मूर्तियों को सजाने के लिए एक सीढ़ीदार मंच बनाया जाता है, जिसे कपड़े से ढका जाता है. सीढ़ियों की संख्या 3, 5, 7 या 9 होती है, हर सीढ़ी पर अलग-अलग प्रकार की मूर्तियों को सजाया जाता है. 

पहली सीढ़ी पर आमतौर पर देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी जाती हैं, जो पूजा का मुख्य केंद्र होती है. इसके बाद की सीढ़ियों को पौराणिक कथाओं से संबंधित मूर्ति, पशु-पक्षियों के मॉडल, और लोक कथाओं से जुड़ी कहानियों से सजाया जाता है. साथ ही, बच्चों के लिए भी विशेष खिलौने और छोटे मॉडल रखे जाते हैं. 

बोम्मई गोलू के दौरान में सजाई जाने वाली मूर्तियां
1. दशावतार की मूर्तियां- भगवान विष्णु के दस अवतारों की मूर्ति, जैसे कि मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि. 

2. दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती- तीनों देवियों की मूर्ति की नवरात्रि के दौरान पूजा होती है, जो शक्ति, धन और ज्ञान का प्रतीक हैं.

3. गणपति और कार्तिकेय-  गणेश जी और कार्तिकेय की मूर्ति भी प्रमुख रूप से सजाई जाती हैं. 

4. शादी की बारात-  सामाजिक और पारिवारिक जीवन का एक दृश्य भी रखा जाता है, जिसमें दूल्हा-दुल्हन और बारात का थीम होता है.

5. लोक नृत्य और खेल-  पारंपरिक लोक नृत्य और खेलों को दिखाने वाली मॉडल जैसे कि कथकली, भरतनाट्यम आदि भी गोलू का हिस्सा होती हैं. 

6. पशु-पक्षी और ग्रामीण जीवन-  गांव के जीवन का चित्रण, जिसमें गाय, बैल, बकरी, और अन्य पशु-पक्षियों की मॉडल भी होता है. 

गोलू के दौरान हर दिन विशेष प्रसाद जैसे सुंदरकांडम, पायसम (खीर), और अन्य पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं, साथ ही महिलाएं घर-घर जाकर एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम देती हैं और प्रसाद के रूप में मिठाई और फल देती हैं. दशहरे के दिन देवी की पूजा के साथ सभी मूर्तियों को सम्मानपूर्वक हटा दिया जाता है और उन्हें अगले वर्ष के लिए सुरक्षित रखा जाता है.