

चारधाम यात्रा (Char Dham Yatra) के शुभारंभ होने में अब कुछ ही घंटे शेष हैं. 30 अप्रैल 2025 को सुबह साढ़े 10:00 बजे यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट खुल जाएंगे. इस धार्मिक यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का पहला जत्था हरिद्वार से निकल चुका है. अब तक 20,00,000 से ज्यादा लोगों ने यात्रा के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवाया है.
बाबा बदरी विशाल और बाबा केदार के लगाए जयकारे
चारधाम यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का पहला जत्था हरिद्वार से प्रस्थान होने से पहले विधिवत तरीके से मां माया देवी की पूजा-अर्चना की गई. माया देवी मंदिर के पुजारी ने पहले जत्थे की गाड़ियों की पूजा से जुड़ी सभी औपचारिकताएं पूरी कीं. श्रद्धालुओं ने बाबा बदरी विशाल और बाबा केदार के जयकारे लगाए.
श्रद्धालुओं में उत्साह
देश के अलग-अलग राज्यों से आए श्रद्धालुओं के चेहरे पर गजब की रौनक और उत्साह दिखाई दिया. एक श्रद्धालु ने कहा कि पहली बार जा रहे हैं तो बहुत एक्साइटिंग हैं के वहां क्या होगा, कैसे होगा? एक अन्य श्रद्धालु ने बताया कि मेरे भैया की बहुत इच्छा थी के मां, पापा और दीदी और सब के साथ में एक बार चारधाम जाएं. अब जाके मनोकामना पूरी हो रही है.
शुरू हो जाएगी चारधाम यात्रा
अक्षय तृतीया के दिन यानी 30 अप्रैल को सुबह साढ़े 10:00 बजे गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलते ही चारधाम यात्रा आरंभ हो जाएगी. मां गंगा की उत्सव डोली शीतकालीन प्रवास मुगबा गांव से पूजा-अर्चना के बाद गंगोत्री धाम के लिए रवाना हो गई. इस दौरान पूरा क्षेत्र ढोलदमाओं और सेना के बैंड की धुनों से गूंज उठा.
केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा
बाबा केदार की पंचमुखी डोली पाटा पहुंच गई है. 30 अप्रैल को पंचमुखी डोली गौरीकुंड में रात्रि प्रवास करेगी और 1 मई को केदारनाथ पहुंचेगी. 2 मई को सुबह 7:00 बजे भगवान केदारनाथ मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे. आखिर में 4 मई 2025 को विधि विधान से भगवान बद्रीनाथ धाम के कपाट खोल दिए जाएंगे. इसके साथ ही पूर्ण रूप से चार धामयात्रा की शुरुआत हो जाएगी.
चारधाम यात्रा का महत्त्व
चारधाम यात्रा ना केवल धार्मिक नजरिए से अहम है बल्कि सनातन धर्म में इसका आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व भी है. ऐसी मान्यता है कि एक बार अपने जीवन में चारधाम यात्रा जरूर करनी चाहिए. यही वजह है कि अब तक 20,00,000 से ज्यादा रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं. चारधाम यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को एक अलग तरह की अनुभूति होती है, जिसका वर्णन दर्शन किए बिना बेहद मुश्किल है.