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Akshaya Tritiya 2024: क्यों अक्षय तृतीया के दिन ही खुलते हैं केदारनाथ मंदिर के कपाट...क्या है उसका महत्व, जानिए सबकुछ

शुक्रवार यानी 10 मई को श्री गंगोत्री धाम, श्री यमुनोत्री तथा श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुल रहे हैं. इसके लिए ऑनलाइन पंजीकरण पहले ही शुरू कर दिए गए थे. 10 मई को अक्षय तृतीया भी है. इस दिन लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाते हैं.

Kedarnath Temple (Photo: Wikipedia) Kedarnath Temple (Photo: Wikipedia)

केदारनाथ मंदिर, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया (Akshay Tritiya) के दिन ही खोले जाते हैं. चारधाम यात्रा (Chardham Yatra) का शुभारंभ भी अक्षय तृतीया के पावन दिन ही होता है. अक्षय तृतीया यानी वो तिथि ..जिस दिन सृष्टि में सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी. मान्यता है कि अक्षय तृतीया की तिथि पर किया गया कोई भी पुण्य काम अक्षय फल देता है. इस दिन को स्नान, ध्यान और दान के लिहाज से भी बेहद पवित्र और फलदायी माना गया है.

अक्षय तृतीया मतलब जिसका क्षय न हो. अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है. अक्षय तृतीया के दिन कोई भी नया या मांगलिक कार्य करना बहुत शुभ होता है. मान्यता है कि अक्षय तृतीया का दिन इतना शुभ होता है कि इस दिन जिस भी काम को शुरू किया जाए. उसमें सफलता मिलने की पूरी गारंटी होती है.

इस साल अक्षय तृतीया का त्योहार 10 मई यानि शुक्रवार को सुबह 4 बजकर 17 मिनट से शुरू होगा और समापन 11 मई को सुबह 02 बजकर 50 मिनट पर होगा. उदिया तिथि के चलते अक्षय तृतीया 10 मई को मनाई जाएगी.

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दान-पुण्य का खास महत्व
इस दिन लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाते हैं और फिर मां लक्ष्‍मी के साथ भगवान विष्‍णु की पूजा करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्‍मी प्रसन्‍न होती हैं और खुशहाल दांपत्‍य जीवन का आशीर्वाद देती हैं. साथ ही मां लक्ष्‍मी की कृपा से कभी धन वैभव की कमी नहीं होती और इंसान के जीवन में तरक्की के नये द्वार भी खुलते हैं.

अक्षय तृतीया के दिन पूजा पाठ के साथ-साथ दान पुण्य का भी खास महत्व होता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया दान कई गुणा ज्यादा अच्छा फल देने वाला होता है. ये दान न केवल समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करता है बल्कि इसका फल भक्तों को कई जन्मों तक मिलता है.

क्यों इतना महत्वपूर्ण है ये दिन?
इसको लेकर कई मान्यताएं हैं.पौराणिक कथाओं के मुताबिक वैशाख मास की शुक्ल तृतीया को ब्रह्म देव के पुत्र अक्षय कुमार की उत्पत्ति हुई थी,इसलिए इस तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं. सनातन धर्म में महाभारत को पांचवें वेद के रूप में माना जाता है.महर्षि वेदव्यास ने अक्षय तृतीया के दिन से ही महाभारत लिखना शुरू किया था.

महाभारत में ही श्रीमद्भागवत गीता समाहित है और अक्षय तृतीया के दिन गीता के 18वें अध्याय का पाठ करना शुभ माना जाता है. वहीं,पौराणिक कथाओं के मुताबिक अक्षय तृतीया के दिन ही स्वर्ग से पृथ्वी पर मां गंगा अवतरित हुई थीं. मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर गंगा में स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर ही पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी. इसकी खासियत ये थी कि इसमें कभी अन्न खत्म नहीं होता था.

माता अन्नपूर्णा का जन्म भी इसी दिन हुआ था इसलिए इस दिन भंडारे कर गरीबों को खाना खिलाने का विधान है. इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन से ही सतयुग और त्रेतायुग के प्रारंभ की गणना होती है और तो और उत्तराखंड की चार धाम यात्रा भी इस दिन से शुरू होती है.

कहा जाता है कि वैशाख के समान कोई महीना नहीं है...सतयुग के समान कोई युग नहीं हैं...वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है...और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है...उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई दूसरी तिथि नहीं है.