वैदिक पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ महापर्व मनाया जाता है, लेकिन इससे दो दिन पहले यानी चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत हो जाती है. छठ का पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है. यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है. इस बार 19 नवंबर को डूबते भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाएगा. आइए आपको इसका महत्व और मुहूर्त बताते हैं.
संध्या अर्घ्य का शुभ मुहूर्त
इस बार 19 नवंबर यानी आज के दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. आज के दिन सूर्यास्त की शुरुआत 05 बजकर 26 मिनट पर होगी. इस समय व्रती महिलाएं सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं.
ऐसे करते हैं पूजा
छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है. इस दिन सुबह से अर्घ्य की तैयारियां शुरू हो जाती है. पूजा के लिए लोग प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाते हैं. छठ पूजा के लिए बांस की बनी एक टोकरी ली जाती है, जिसमें पूजा के प्रसाद, फल, फूल, आदि अच्छे से सजाए जाते हैं. एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल रखे जाते हैं.
छठ माता के गाते हैं गीत
सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले लोग अपने पूरे परिवार के साथ नदी या तालाब के किनारे छठ घाट जाते हैं. छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में महिलाएं गीत भी गाती हैं. इसके बाद व्रती महिलाएं सूर्य देव की ओर मुख करके डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करती हैं. अर्घ्य देते समय सूर्य देव को दूध और जल चढ़ाया जाता है. उसके बाद लोग सारा सामान लेकर घर आ जाते है. घाट से लौटने के बाद रात्रि में छठ माता के गीत गाते हैं.
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के नियम
अर्घ्य देने के लिए एक लोटे में जल लेकर उसमें कुछ बूंदें कच्चा दूध मिलाएं. इसी पात्र में लालचन्दन, चावल, लालफूल और कुश डालकर प्रसन्न मन से सूर्य की ओर मुख करके कलश को छाती के बीचों-बीच लाकर सूर्य मंत्र का जप करते हुए जल की धारा धीरे-धीरे प्रवाहित कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर पुष्पांजलि अर्पित करना चाहिए. इस समय अपनी दृष्टि को कलश की धारा वाले किनारे पर रखेंगे तो सूर्य का प्रतिबिम्ब एक छोटे बिंदु के रूप में दिखाई देगा एवं एकाग्रमन से देखने पर सप्तरंगों का वलय नजर आएगा.
अर्घ्य के बाद सूर्यदेव को नमस्कार कर तीन परिक्रमा करें. टोकरी में फल और ठेकुवा आदि सजाकर सूर्यदेव की उपासना करें. उपासना और अर्घ्य के बाद आपकी जो भी मनोकामना है, उसे पूरी करने की प्रार्थना करें. प्रयास करें कि सूर्य को जब अर्घ्य दे रहे हों, सूर्य का रंग लाल हो. इस समय अगर अर्घ्य न दे सके तो दर्शन करके प्रार्थना करने से भी लाभ होगा.
क्यों दिया जाता है डूबते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है. ज्योतिषियों का कहना है कि ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है. इसके अलावा सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती हैं. इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है और लम्बी आयु का वरदान मिलता है. साथ ही जीवन में आर्थिक संपन्नता भी आती है.
उगते हुए भगवान भास्कर को क्यों दिया जाता है अर्घ्य
छठ पूजा के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है. इस दिन पूरा परिवार घाट पर पहुंचता है और सूर्य देवता और छठी मैया की अराधना करता है. अर्घ्य में सूर्य देवता को जल, दूध अर्पित किया जाता है. सूर्य देव संपूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करते हैं. सूर्य को जल देने के कई फायदे हैं. माना जाता है कि सूर्य को अर्घ्य देने से सौभाग्य बना रहता है. सूर्य को निडर और निर्भीक ग्रह माना जाता है. इसी आधार पर सूर्य को अर्घ्य देने वाले श्रद्धालुओं को भी यह गुण प्राप्त हो जाता है. इसके अलावा कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है. सूर्य में अर्घ्य देने से शनि की बुरी दृष्टि का प्रभाव भी कम होता है. सूर्य देवता को अर्घ्य देने का असर बुद्धि पर पड़ता है और मान-सम्मान में वृद्धि होती है.
सिंदूर की मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महिलाओं का नाक से मांग तक सिंदूर लगाने के पीछे एक कारण है. मान्यता है कि सुहागन महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए ऐसे सिंदूर लगाती हैं. मान्यता है कि जो भी महिलाएं ऐसा करती है उनकी पति की आयु लंबी होती है और वो ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं. छठ पर्व पर महिलाएं नाक से मांग तक सिंदूर इसलिए लगाती है ताकि उनके पति की लंबी आयु हो, उनका समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़े. धार्मिक मान्यता है कि जो महिलाएं सिंदूर छिपा लेती है उनका पति समाज में छुप जाता है और तरक्की नहीं कर पाता है इससे उसकी आयु भी कम हो जाती है. इस कारण छठ पूजा के दौरान महिलाएं नाक से लेकर मांग तक सिंदूर भरती हैं. महिलाएं अपने पति के प्रति प्रेम और सम्मान भी जाहिर करती हैं.
महाभारत काल से है परंपरा
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है. भगवान सूर्यदेव की कृपा से कुंती को कर्ण नाम का तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ था. कर्ण हर रोज जल में कमर तक खड़े होकर सूर्यदेव को अर्ध्य दिया करते थे. वे रोजाना सूर्यदेव की पूजा अर्चना करते थे. माना जाता है कि जल में कमर तक खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा वहीं से शुरू हुई. छठ पूजा के दौरान षष्ठी और सप्तमी तिथि को व्रती जल में कमर तक खड़े होकर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं. एक अन्य मान्यता के अनुसार जब पांडव जुए में सारा राजपाट हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया था. इस व्रत के पुण्य से उनका राजपाट दोबारा मिल गया.