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Chhath Puja 2023: आज खरना का प्रसाद ग्रहण कर शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत, जानें नियम और पूजा विधि

Chhath Puja 2023 Kharna vidhi: खरना के दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और छठी माता का प्रसाद तैयार किया जाता है. प्रसाद बनाते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस दिन गुड़ की खीर बनाने की परंपरा है. इस दिन प्रसाद सबसे पहले व्रती महिलाएं ग्रहण करती हैं.

छठ महापर्व (फाइल फोटो) छठ महापर्व (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • खरना कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है

  • इस दिन व्रती को सुबह से शाम तक निर्जला व्रत रखना होता है

लोक आस्था का महापर्व छठ 17 नवंबर 2023 से शुरू हो चुका है. आज यानी 18 नवंबर (शनिवार) को छठ पूजा का दूसरा दिन है. आज खरना है. आज के दिन व्रती सूर्योदय से सूर्यास्त तक निर्जला व्रत रखते हैं. उसके बाद शाम की पूजा करके प्रसाद ग्रहण करते हैं. फिर पूरे परिवार के सदस्य उस प्रसाद को खाते हैं. खरना के दिन उपवास रखकर तन और मन को शुद्ध और मजबूत बनाया जाता है, ताकि अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जा सके. 36 घंटे तक निर्जला उपवास के कारण यह व्रत कठिन व्रतों में से एक है. आइए जानते हैं खरना के नियम और पूजा विधि.

खरना क्या है?
छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. खरना कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है. इस दिन व्रती को सुबह से शाम तक निर्जला व्रत रखना होता है. फिर शाम में पूजा-पाठ करके खीर और पूड़ी या खीर और रोटी खाते हैं. यह खीर मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ और चावल से बनाया जाता है. इस बार खरना के दिन सूर्योदय का समय सुबह 06:46 बजे का रहेगा और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा. 

कौन हैं छठी मैया 
सूर्यदेव तो इस प्रकृति के ऊर्जा स्रोत हैं. छठी मैया देवी कात्यायनी हैं. यह सूर्यदेव की बहन हैं. नवरात्र में भी हम देवी कात्यायनी की पूजा षष्ठी को करते हैं, मतलत नवरात्र के छठे दिन. सनातन हिंदू धर्म में जन्म के छठे दिन भी देवी कात्यायनी की ही पूजा होती है. इन्हें संतान प्राप्ति के लिए भी प्रसन्न किया जाता है. संतान के चिरंजीवी, स्वस्थ और अच्छे जीवन के लिए देवी कात्यायनी को प्रसन्न किया जाता है. छठी मैया यही हैं. इसलिए, यह समझना मुश्किल नहीं. शेष, छठ में सूर्यदेव की पूजा तो घाट पर होती है, खरना पूजा पहले छठी मैया के लिए ही होती है.

खरना के दिन किसकी होती है पूजा
खरना के दिन छठ मैया की पूजा की जाती है. इसके अगले दिन सूर्यास्त के समय व्रती लोग नदी और घाटों पर पहुंच जाते हैं. जहां डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दौरान सूर्यदेव को जल और दूध से अर्घ्य देते है. साथ ही इस दिन व्रती महिलाएं छठी मैया के गीत भी गाती हैं.

खरना की पूजा विधि और​ नियम
1. प्रात:काल में स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें और दैनिक पूजा पाठ कर लें.
2. फिर पूरे दिन निर्जला व्रत रखें. अन्न और जल ग्रहण न करें.
3. दिनभर भजन-कीर्तन आदि में समय व्यतीत करें. सोने से परहेज करें. व्रत में सोना वर्जित होता है.
4. सूर्यास्त के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहन लें. फिर सूर्य देव और छठ मैया की पूजा करें.
5. मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी जलाएं. उस पर गुड़, चावल और दूध से खीर बनाएं. उसके बाद रोटी या पूड़ी बना लें. फिर उसका भोग सूर्य देव और छठ मैया को लगाएं.
6. पूजा के बाद परिवार में व्रती सबसे पहले खीर और रोटी या पूड़ी खाएं. उसके बाद परिवार के अन्य उसे खा सकते हैं.
7. छठ पर्व के दिनों में घर में प्याज और लहसुन का सेवन न करें.
8. व्रती याद रखें कि सूर्य को अर्घ्य दिए बिना किसी भी चीज का सेवन न करें.
9. प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती पानी पी सकता है. उस रात आप चंद्रास्त से पूर्व तक पानी पी सकते हैं. आज चंद्रास्त रात 10:00 बजे होगा. यह नई दिल्ली का समय है.
10. उसके बाद से 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ हो जाएगा.

खरना पूजा की सामग्री
• प्रसाद रखने के लिए बांस की दो बड़ी-बड़ी टोकरियां
• धूप या अगरबत्ती
• शकरकंदी
• व्रती के लिए नए कपड़े
• बांस या फिर पीतल का सूप
• एक लोटा (दूध और जल अर्पण करने के लिए)
• सुथनी
• गेहूं, चावल का आटा
• गुड़
• ठेकुआ
• घी का दीपक
• शहद
• 5 पत्तियां लगे हुए गन्ने
• एक थाली
• पान
• सुपारी
• चावल
• फल-जैसे नाशपाती, केला और शरीफा
• सिंदूर
• मूली, अदरक और हल्दी का हरा पौधा
• बड़ा वाला नींबू
• पानी वाला नारियल
• मिठाइयां

छठ पर्व की कथाएं
कर्ण ने शुरू की सूर्य देव की पूजा
मान्यता के अनुसार महापर्व छठ की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. इस पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा हुई थी. कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की. कथाओं के अनुसार कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. वह हर दिन घंटों तक कमर जितने पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे. उनके महान योद्धा बनने के पीछे सूर्य की कृपा थी. आज के समय में भी छठ में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है.

राम-सीता ने की सूर्य की पूजा
एक पौराणिक लोक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर लौटे तो राम राज्य की स्थापना की जा रही थी. कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन ही राम राज्य की स्थापना हो रही थी, उस दिन भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्य देव की आराधना की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर उन्होंने सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था ऐसा माना जाता है, कि तब से लेकर आज तक यही परंपरा चली आ रही है.