सूर्य की उपासना का, मां छठी का आशीर्वाद पाने का, महापर्व छठ शुरू हो चुका है. कहते हैं कि इस व्रत का जिक्र हर युग में मिलता है. इस व्रत को जिसने भी किया उसकी सारी मनोमाकमनाएं पूरी हुई हैं. इसीलिए इसे पर्व नहीं बल्कि महापर्व कहते हैं. नहाय खाय से शुरू होने वाला ये व्रत करीब चार दिन तक मनाया जाता है.
दीपावली के त्योहार के बाद से ही उत्तर भारत के साथ साथ पूरी दुनिया में छठ के महापर्व को मनाने की तैयारियां होने लगती हैं. छठ वो त्योहार है जिसमें जागृत देव सूर्य की आराधना का विधान बताया गया है. जिसमें सूर्य को अर्घ्य देने भर से सारी तकलीफें दूर हो जाती हैं.
चार दिन तक मनाए जाने वाले इस कठिन व्रत में पवित्रता, स्वच्छता और प्राकृतिक शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है.
छठ का ये व्रत नहाय खाय से शुरू होता है. व्रत के पहले दिन घर की साफ सफाई के साथ साथ छठ के प्रसाद को बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हों का इस्तेमाल किया जाता है. मान्यता है कि कठिन व्रत की शुरुआत में आज आखिरी बार नमक खाया जाता है.
हर व्रती के घर में खाना बनाने में भी थोड़े गंगाजल का इस्तेमाल होता है. साथ ही चावल, भात बनाया जाता है और सेंधा नमक से कद्दू यानी लौकी की सब्जी बनती है. यही प्रसाद घर का हर सदस्य ग्रहण करता है.
छठ व्रत का पौराणिक इतिहास बताता है कि इसे मां सीता ने अपने अखंड सौभाग्य के लिए त्रेतायुग में किया था तो महाभारत काल में द्रौपदी ने भी इस व्रत का अनुष्ठान किया था.
ये व्रत पूरी तरह से प्रकृति का संदेश देता है, इसीलिए इस व्रत में केवल वही वस्तुएं इस्तेमाल में लाई जाती हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक होती हैं.
छठ आस्था का महाव्रत है इसीलिए कहते हैं कि जो भी इंसान सच्ची श्रद्धा के साथ इस व्रत को करता है उसकी हर मनोकामना सिद्ध हो जाती है.
लेकिन इस व्रत का सबसे लोकप्रिय और व्यवहारिक पक्ष है इस व्रत पर गाए जाने वाले लोक गीत जिसकी तासीर में इस व्रत की छठा और भी निराली हो जाती है.