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आज नहाय खाय से छठ महापर्व की शुरुआत, कल बनेगा खरना का प्रसाद

मान्यता है कि खरना का प्रसाद दिव्य गुणों वाला होता है इसलिए इसे दोस्तों, पड़ोसियों और दूसरे लोगों को भी बांटा जाता है. श्रद्धा भाव से व्रतियों का आशीर्वाद लेकर लोग इस प्रसाद को खाते हैं. 

Chhath Puja Chhath Puja
हाइलाइट्स
  • कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है खरना

  • मिट्टी के चूल्हे पर ही बनता है खरना का प्रसाद

आज नहाय खाय से छठ महापर्व की शुरुआत हुई तो कल खरना की परंपरा विधि विधान के साथ निभाई जाएगी. व्रती महिलाएं कल चावल, दूध और गुड़ से खीर बनाएंगी और खीर के उसी प्रसाद को शाम को ग्रहण किया जाएगा.

नहाय खाय के अगले दिन खरना का व्रत शुरू होता है. घर-परिवार और गली मोहल्लों में भक्तिमय माहौल रहता है. छठ के गीतों से पूरा वातावरण गूंजने लगता है. छठ का व्रत तो अब पूरी दुनिया में मनाया जाता है. लेकिन उत्तर भारत में छठ की अलग ही छटा दिखाई देती है.

कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना होता है. इस दिन व्रती दिनभर उपवास करती हैं. शाम को मिट्टी के चूल्हे की पूजा कर अग्नि देव का आह्वान करती हैं. आम की लकड़ी में कपूर रखकर आग जलाती हैं. और रात में खीर खाकर 36 घंटे का कठिन व्रत रखा जाता है.

यह पर्व सूर्य की अराधना का है जिसमें गेहूं के आटे की रोटी या पूड़ी बनाई जाती है. चीनी का इस पर्व में उपयोग नहीं किया जाता है इसलिए छठ में गुड़ का ही उपयोग होता है. 

खरना के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाने का निधान है. कांसा, पीतल या फिर मिट्टी के बर्तन में गाय का दूध उबालते हैं. गाय के दूध, अरवा चावल और गुड़ से बनी खीर और रोटी का प्रसाद तैयार करते हैं.

मान्यता है कि खरना का प्रसाद दिव्य गुणों वाला होता है इसलिए इसे दोस्तों, पड़ोसियों और दूसरे लोगों को भी बांटा जाता है. श्रद्धा भाव से व्रतियों का आशीर्वाद लेकर लोग इस प्रसाद को खाते हैं. 

वेद पुराणों में भी सूर्य की उपासना के प्रमाण मिलता है. विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण में विस्तार से सूर्य की उपासना  के विधान को बताया गया है. ये पर्व पूरी तरह से प्रकृति से जुड़ा है, इसलिए इस पर्व पर शुद्धता का खास ध्यान रखा जाता है.

खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर ही बनता है. आम की लकड़ी, गोबर से पोतना, गंगा जल, बांस की टोकरी, पीलत के बर्तन. जितना मौसमी फल हो सारा फल लेते हैं.

छठ से कई पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान राम जब माता सीता से स्वयंवर करके घर लौटे थे और उनका राज्य अभिषेक किया गया था तब उन्होंने पूरे विधान के साथ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को ही पूजा की थी. मान्यता है कि तब से ही छठ की परंपरा चल पड़ी. 

जबकि दूसरी कथा द्वापर युग में भगवान कृष्ण से जुड़ती है. भगवान कृष्ण के पुत्र को दुर्वासा के शाप से कोढ़ हो गया था. बहुत प्रयास किया, लेकिन सूर्य उपासना से उनका कोढ़ ठीक हो गया.

सूर्य की साधना से शुरू होकर सूर्य की अराधना पर ही खत्म होने वाला छठ दुनिया का इकलौता त्यौहार है. जिससे धन धान्य और आरोग्यता के साथ सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं.