देवघर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर त्रिकुट पर्वत है जहां 2470 फीट की ऊंचाई पर रावण का एयरपोर्ट है. यहां एयरपोर्ट का रडार भी है जिसे देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक आते हैं.
ऐसी मान्यता है कि कैलाश से जब लंकापति रावण भगवान शिव को लेकर लंका जा रहा था तब रावण को लघुशंका के लिए देवघर में रुकना पड़ा था और भगवान शिव देवघर में ही स्थापित हो गए.
कहा जाता है कि रावण ने कैलाश पर्वत से शिव जी को लाने के लिए बड़ी तपस्या की थी. उसके बाद शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने रावण से मनचाहा वरदान मांगने को कहा. इसपर लंकापति रावण ने कहा- आप मेरे साथ लंका चलें. उसके बाद शिव जी रावण के साथ चलने को राजी तो हुए लेकिन इसके लिए रावण के सामने कुछ शर्तें रख दी.
शिवजी ने कहा कि वो रावण के साथ लंका जाने को तैयार हैं लेकिन एक शर्त है कि अगर वो बीच रास्ते में कहीं रखेंगे और उनका धरती से स्पर्श हो जाएगा तो रावण उन्हें वहां से दोबारा उठा नहीं पाएगा. कैलाश पर्वत से चलने के बाद देवघर आते आते रावण को लघुशंका लगी और यहां पर उसे शिवलिंग को रखना पड़ा. इसके बाद रावण दोबारा यहां से शिवलिंग को उठा नहीं पाया. तभी से रावण शिव जी को पूजा करने के लिए लंका से देवघर रोज आते थे.
कहा जाता है कि रावण लंका से देवघर आने जाने के लिए पुष्पक विमान का प्रयोग करते थे और पुष्पक विमान को त्रिकूट पर्वत पर उतारते थे. हालांकि आजकल एयरपोर्ट पर हवाई जहाज के संचालन के लिए रडार होता है लेकिन उस वक्त रडार नहीं होता था. ऐसा माना जाता है कि उस समय पुष्पक विमान के लिए रडार के रूप में दीपक का इस्तेमाल होता था और लंका पति रावण का 'रडार' भी त्रिकूट पर्वत पर था. ये दीपक हमेशा जलता रहता था जिसको देखकर रावण अपना पुष्पक विमान त्रिकुट पर्वत पर उतारता था.
यह दीपक त्रिकुट पर्वत पर आज भी मौजूद है. बाबा बैद्यनाथ धाम में पूजा करने के बाद श्रद्धालु रावण का एयरपोर्ट देखने के लिए त्रिकुट पर्वत आते हैं और पर्वत के ऊपर 2470 फीट की ऊंचाई पर स्थित रावण का एयरपोर्ट देखने जाते हैं. सैलानी रोपवे के माध्यम से ऊपर चढ़ते हैं और रावण के एयरपोर्ट के साथ साथ हनुमान चोटी, रावण गुफा और नारायण शिला का दर्शन करते हैं और त्रिकुट पर्वत का आनंद लेते हैं.
(शैलेन्द्र मिश्रा की रिपोर्ट)