हमारी मान्यताओं और हमारी आस्था का विस्तार ही हमें हमारी परंपराओं की डोर से बंधे हुए है. हिंदू मान्यताओं में कुछ दिन उत्सव के होते हैं. कुछ दिन व्रत के होते हैं. कुछ दिन शुभ कामों के लिए निर्धारित होते हैं, तो कुछ समय के लिए शुम कामों की मनाही होती है. देवशयनी एकादशी से लेकर देवोत्थान एकादशी तक चार महीने ऐसे होते हैं जब कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते.
इस साल 29 जून को देवशयनी एकादशी है और इसी दिन से चातुर्मास शुरू हो रहा है. लेकिन इस साल चातुर्मास चार नहीं पांच महीनों का होगा क्योंकि 19 साल बाद ऐसा संयोग है कि सावन में अधिक मास है. जिस कारण सावन 58 दिन का रहेगा.
ज्योतिषाचार्य शैलेन्द्र पांडेय जी का कहना है कि सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक- इन महीनों को साथ में चातुर्मास कहते हैं.
1. क्या होता है चातुर्मास. हिंदू धर्म में इसे लेकर क्या मान्यता है?
शैलेन्द्र पांडेय: सनातन परंपरा में शुभ-अशुभ मूहूर्त का अपना शास्त्र है और उसके पीछे तर्कशास्त्र की लंबी श्रृंखला है. कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी से श्रीहरि योग निद्रा में लीन हो जाते हैं और सृष्टि के संचालन का काम भगवान शिव के हाथों में आ जाता है. इसी वजह से चार महीनों तक बम बम भोले की गूंज सुनाई देती है. शिव के साथ इन चाह माह में भगवान कृष्ण, माता तुलसी और पितरों की पूजा का भी योग रहता है.
2. चातुर्मास में पूजा उपासन का क्या हैं नियम?
शैलेन्द्र पांडेय: हिंदू परंपराओं में शुभ मूहूर्त का बड़ा महत्व माना जाता है. हर कार्य में भगवान की भागीदारी रहे इसके लिए देवाताओं का आह्वाहन किया जाता है. लेकिन साल में 148 दिनों के चतुर्मास की मान्यताएं बिल्कुल अलग होती है. कहते हैं ये वक्त भगवान के विश्राम का होता है. लिहजा किसी भी शुभ कार्य से परहेज किया जाता है.
3. चातुर्मास का क्या है महत्व?
शैलेन्द्र पांडेय: चातुर्मास में शुभ कार्यों से परहेज का भले अपना विज्ञान हो लेकिन हिंदू मान्यताओं में ये चार महीने सबसे ज्यादा पवित्र माने गए हैं. समझ लीजिए कि ये चार महीने मन के संतुलन के लिए है. इन चार महीनों में एक भगवान शिव की उपासना के लिए है. चातुर्मास में एक महीना कृष्ण की कृपा पाने का है. और चार में से एक माह देवी की उपासना का है. और इन्हीं चार माह में कार्तिक भी आता है, जो भगवान विष्णु के जागरण के लिए है.
4. चातुर्मास में खान पान के क्या हैं नियम?
कहते हैं कर्म का मर्म हमारे मन से जुड़ता है और हमारा मन हमारे विचार और हमारे आहार पर निर्भर करता है. यही वजह है कि चातुर्मास के दिनों में खाने पीने की मान्यताएं भी बाकी दिनों से अलग होती हैं.