
धनबाद कोयलांचल के साथ-साथ दुनिया के कई देशों में वासेपुर के बने लच्छे सेवई के शौकीन हैं. इसकी खुशबू और स्वाद ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. रमजान, ईद के समय लच्छे सेवई की मांग खाड़ी के कई देशों और यूरोप में हो जाती है. यहां के कई लोग अलग-अलग देशों में रहते हैं. विदेशो में रह रहे लोग लच्छे सेवई के पैकेट मंगवाते हैं. स्थानीय दोस्त और कंपनी के बहुत सारे कर्मचारी लच्छे के बेहद शौकीन हैं. इसके लिए ईद का इंतजार करते हैं. उनके लिए वासेपुर से लच्छे को पार्सल से मंगवाया जाता है.
धनबाद में ईद की रौनक-
धनबाद में ईद की रौनक काफी है. ईद में लच्छा सेवई की बिक्री भी खूब होती है. इसके लिए कारीगर दिन-रात एक करके इसे बनाने में लगे हैं. खाड़ी देशों में वासेपुर के लच्छे सेवई की खुशबूदार महक पहुंच रही है. वासेपुर की गलियों में लजीज और खुशबूदार लच्छे बनाए जा रहे हैं, कई दुकानें लच्छों से सजी हुई भरी पड़ी हैं. वासेपुर की गलियों में कई प्रतिष्ठान हैं. जहां कारीगर दिन रात लच्छे बनाने में जुटे हैं. रमजान शुरू होने से पहले से ही लच्छा सेवई बनाने का काम शुरू हो जाता है. धनबाद ही नहीं बल्कि बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के कारीगर यहां स्वादिष्ट और खुशबूदार लच्छे बनाने के लिए पहुंचते हैं.
विदेशों में लच्छे सेवई की डिमांड-
जब्बार मस्जिद के पास दुकान लगाने वाले कहते हैं कि ईद के समय में लच्छे की डिमांड काफी बढ़ जाती है. इस डिमांड को हम ईद तक भी पूरा नहीं कर पाते हैं, 12 से 15 कारीगर बाहर से मंगाए जाते हैं, ताकि लोगों की डिमांड पूरी की जा सके. अच्छी क्वालिटी के लच्छे उपलब्ध हैं. इन दुकानों में घी, रिफाइन तेल समेत अन्य सामग्रियों से लच्छे बनाये जाते हैं. दुकानदार यह भी बताते हैं कि वासेपुर के कई लोग खाड़ी देशों में बसे हुए हैं. ईद पर जो लोग यहां नहीं पहुंच पाते हैं, उनके परिजन यहां से पोस्ट या डाक के माध्यम से उनके लिए लच्छे भिजवाते हैं. उन्होंने कहा कि जो लोग खाड़ी देश में बसे हैं, वो यहां के लच्छे सेवई मिलने से काफी खुश हो जाते हैं. यहां के लच्छे में उनके देश की खुशबू और उनकी मिट्टी की महक मिली होती है. इसी वजह से यहां के लच्छे को खाड़ी देश में रहने वाले लोग ईद पर कभी भी नहीं भूलते हैं.
लच्छे सेवई स्थानीय लेवल पर भी मशहूर-
वासेपुर के लच्छे सेवई की डिमांड काफी है. सिर्फ धनबाद ही नहीं, आसपास के कई जिलों से लोग इन दुकानों से भारी मात्रा में सेवई की खरीदारी करते हैं. ग्राहकों का कहना है कि यहां बने लच्छे काफी स्वादिष्ट और खुशबूदार होते हैं. इसलिए वो 30 से 40 किलोमीटर की दूरी तय कर लच्छे सेवई लेने के लिए यहां पहुंचते हैं.
कारीगरों की भी होती है इनकम-
इन दुकानों में काम करने वाले कारीगरों का कहना है कि वह रमजान के पहले ही अपने घरों से यहां पहुंचते हैं और इसका निर्माण शुरू कर देते हैं. एक लच्छा को बनाने में घंटों समय लगता है. इसके अलावा अलग-अलग फ्लेवर के लच्छे भी वो बनाते हैं. उनके बनाए लच्छे सेवई की मांग और उनकी बढ़ती बिक्री से कारीगर काफी उत्साहित हैं और उन्हें खुशी मिलती है कि उनके बनाए सामान को लोग पसंद कर रहे हैं. इसके अलावा उन्हें अच्छे पैसे भी मिल जाते हैं.
(धनबाद से सिथुन मोदक की रिपोर्ट)
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