scorecardresearch

मध्यप्रदेश के इस शहर में जल रही है पिछले 92 साल से ये धूनी, मीलों दूर से पैदल चलकर धूनीवाले दादाजी के दर्शन करने आते हैं भक्त

कहा जाता है कि दादाजी का असल नाम स्वामी केशवानंद जी महाराज था, लेकिन वह लगातार यहां से वहां घूमते रहते थे, वे हर दिन पवित्र धूनी के सामने ध्यानमग्न होकर बैठे रहते थे, इसीलिए दादाजी को लोग दादाजी धूनीवाले के नाम से जानने लगे. जहां उन्होंने समाधि ली, ठीक उसी स्थान पर स्मारक स्थल भी बनाया गया है.

धूनीवाले दादाजी धूनीवाले दादाजी
हाइलाइट्स
  • 1930 से आश्रम में लगातार जल रही है धूनी

  • दादाजी की महिमा की कई कथाएं हैं प्रचलित

भारत को संतों और महात्माओं के देश कहा जाता है. इस धरती पर कई महान संतों ने जन्म लिया है. इसी में एक नाम है धूनीवाले दादाजी (दादाजी धूनीवाले) का. मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में बाबा की समाधि है जहां हजारों लोग दर्शन करने आते हैं. शहर में मौजूद धूनीवाले दादाजी का मंदिर आज लोगों के लिए आस्था का मुख्य केंद्र बन चुका है. 

भारत और विदेशों में मिलाकर धूनीवाले दादाजी के कुल 27 धाम हैं. इन सभी स्थानों पर दादाजी के समय से अब तक निरंतर धूनी जल रही है. शिर्डी के साईं बाबा के स्थान की तरह ही दादाजी के भक्तों में ये सभी धाम काफी प्रसिद्ध हैं. आपको बता दें, सन् 1930 में दादाजी ने खंडवा शहर में समाधि ले ली थी. 

कैसे पड़ा धूनीवाले दादाजी नाम?

कहा जाता है कि दादाजी का असल नाम स्वामी केशवानंद जी महाराज था, लेकिन वह लगातार यहां से वहां घूमते रहते थे, वे हर दिन पवित्र धूनी के सामने ध्यानमग्न होकर बैठे रहते थे, इसीलिए दादाजी को लोग दादाजी धूनीवाले के नाम से जानने लगे. जहां उन्होंने समाधि ली, ठीक उसी स्थान पर स्मारक स्थल भी बनाया गया है. गुरु पूर्णिमा पर्व पर न केवल मध्य प्रदेश बल्कि देशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं. कहते हैं दादाजी का स्मरण करने से ही भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. 

1930 से आश्रम में लगातार जल रही है धूनी 

आपको बताते चलें कि 1930 से आश्रम में धूनि लगातार जलती आ रही है. धूनि में सभी भक्त हवन सामग्री के अलावा नारियल प्रसाद, सूखे मेवे, फल आदि सब कुछ स्वाहा करते हैं. मान्यता अनुसार, धूनीवाले दादाजी की शक्ति इसी धूनी में ही समाई हुई है इसलिए इससे निकलने वाली भभूत को लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और सिर-माथे लगाते हैं. 

दादाजी की महिमा की कई कथाएं हैं प्रचलित 

भक्तों के बीच धूनीवाले दादाजी की महिमा की कई कथाएं प्रचलित हैं. ऐसी ही एक कथा है राजस्थान के डीडवाना गांव के भंवरलाल की. एक बार वो दादाजी से मिलने आए और वो दादाजी से इतने प्रभावित हुए कि अपने आपको धूनीवाले दादाजी के चरणों में समर्पित कर दिया. कुछ समय बाद दादाजी ने उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया. उनका नाम उन्होंने हरिहरानंद रखा. धूनीवाले दादाजी के भक्त भी हरिहरानंदजी को छोटे दादाजी के नाम से पुकारने लगे .

सन् 1942 में हरिहरानंदजी ने होना देह त्याग दिया, जिसके बाद उनकी समाधि भी बड़े दादाजी की समाधि के पास स्थापित की गई.

धूनीवाले दादाजी की प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अनेक जिलों से लोग पैदल चलकर यहां उनके दर्शन करने आते हैं. भक्तों का मानना है कि अगर श्रद्धा से धूनीवाले दादाजी को याद करें तो सबको मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.