हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दिवाली मनाया जाता है. रोशनी का पर्व दिवाली न सिर्फ हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है, बल्कि यह जैन, बौद्ध और सिख धर्मों में भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं. दिवाली का पर्व 3300 वर्ष पूर्व से लगातार मनाया जाता रहा है. सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भी इस पर्व को मनाते थे.
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस दिन भगवान राम 14 साल के वनवास खत्म कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे. उस दिन पूरी अयोध्या नगरी को दीपों से सजाया गया था. तब से दिवाली का यह पर्व अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व बन गया. वहीं, पूर्वी उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में माता लक्ष्मी के बजाए इस दिन काली मां की पूजा की जाती है. भारत के कई हिस्सों में हिंदू दिवाली को नये साल की तरह देखते हैं.
जैन धर्म में भी है दिवाली की मान्यता
हिन्दू धर्म के अलावा जैन धर्म में भी दिवाली का त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी को कार्तिक अमावस्या के दिन ही मोक्ष मिला था. इसी दिन उनके पहले शिष्य गौतम गणधर को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. यही कारण है कि जैनियों में दिवाली को महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं. जैन धर्म में पूजा का तरीका अलग है पर यहां भी हिंदू धर्म की तरह ही दीप जलाकर दिवाली मनाई जाती है.
भगवान बुद्ध ने दिया था 'अप्पों दीपो भव' का उपदेश
बौद्ध धर्म में भी दिवाली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इसी दिन बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध 17 साल बाद अपने अनुयायियों के साथ गृह नगर कपिल वस्तु लौटे थे. उनके स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई गई थी. साथ ही भगवान बुद्ध ने 'अप्पों दीपो भव' का उपदेश देकर दीवाली को एक नया आयाम दिया था.
हिंदुओं की तरह ही सिख समुदाय भी दिवाली का पर्व काफी धूमधाम से मनाते हैं. इसी दिन साल 1577 में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी गई थी, जो सिखों के सबसे बड़े तीर्थों में से एक है. इसके अलावा सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह को इसी दिन कैद से रिहाई मिली थी.
मुगल दरबार में मनाया गया था जश्न-ए-चराग
इसके अलावा, ऐसा कहा जाता है कि मुगल अकबर के दौरान मुस्लिमों ने भी दिवाली मनाई थी. इसे जश्न-ए-चराग के नाम से मनाया जाता था. अकबर के समकालीन इतिहासकार अबुल फजल ने अपनी पुस्तक 'आईने अकबरी' में इसका जिक्र किया था. अली गौहर के समय में पूरे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था साथ ही लाल किले पर कई कार्यक्रम होते थे.
दिवाली मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है. दिवाली वर्षा ऋतु के बाद आती है. इस समय वातावरण में काफी ज्यादा कीड़े मकोड़े होते हैं. दिवाली पर जब घर की सफाई की जाती है, तो कीड़े-मकोड़े की संख्या कम होती है. वही, घी या सरसों के तेल का दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है.