बकरी ईद को 'कुर्बानी का त्योहार' भी कहा जाता है. दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय के बीच इसका खास महत्व है. यह पवित्र त्योहारों में से एक है. इस्लामिक महीने जुल हिज्जा के 10 वें दिन 4 दिनों के लिए और रमजान ईद के दो महीने बाद इसे मनाया जाता है. रमजान के बाद यह इस्लामी कैलेंडर में महत्वपूर्ण महीनों में से एक है.
मुस्लिम समुदाय के लोग इस त्योहार को पैगंबर इब्राहिम को सम्मानित करने के लिए मनाते हैं. पैगंबर ने अल्लाह से गहरे लगाव की वजह से उन्हें अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी दी थी. उन्होंने जो बलिदान दिया, यह अल्लाह के प्रति उनके अंतिम बलिदान की तरफ इशारा करता है.
क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी?
ऐसी मान्यता है कि पैगंबर इब्राहिम द्वारा किए गए इस महान बलिदान से पहले अल्लाह ने बीच में आकर उनके बेटे को भेड़ या बकरी के साथ बदल दिया. पैगंबर को लगा कि वह अपने बेटे की बलि दे रहे हैं, लेकिन इसके बजाय वहां एक मेमना था जिसकी उस दिन बलि दी गई. इस तरह दुनियाभर के मुसलमान इस अनुष्ठान को पूरा करने और अल्लाह के दखल का जश्न मनाने के लिए बकरे की बलि देते हैं. अल्लाह को इस बलिदान/बलि के बाद बकरे को तीन भागों में बांटा जाता है और इसे परिवार, दोस्तों और जरूरतमंदों को बांटा जाता है और खाने के लिए पकाया जाता है. बकरे के मांस से बने व्यंजन अक्सर दावत में रखे जाते हैं, जिसे पूरा परिवार एक साथ खाता है.
कब है बकरीद
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक ईद हर साल दो बार मनाई जाती है. एक ईद उल जुहा और दूसरा ईद उल फितर. ईद उल फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है. इसे रमजान के खत्म होने के बाद मनाया जाता है. वहीं ईद उल फितर के खत्म होने के करीब 70 दिनों बाद बकरीद यानी ईद उल जुहा मनाई जाती है.
माना जा रहा है कि देशभर के मुसलमान 10 जुलाई (रविवार) को बकरीद मनाएंगे. इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल सेंटर के अनुसार, भारत में ईद को सऊदी अरब में मनाने के एक दिन बाद मनाया जाता है.