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रणथंभौर के इस मंदिर में हर साल देश-विदेश से आती हैं लाखों चिट्ठियां, जानें क्या है इसकी पूरी कहानी

रणथंभौर त्रिनेत्र गणेश को लेकर यहां के लोगों में कई प्रकार की किवदंतियां प्रचलित हैं. कई लोगों का मानना है कि भगवान गणेश की इस प्रतिमा की उत्पत्ति अपने आप हुई थी. कई लोगों का मानना है कि  भगवान शिव ने जब बाल्यावस्था में गणेश जी का शीश काटा था तो वो शीश यहां आकर गिरा था. तब से ही यहां भगवान गणेश के शीश की पूजा की जाती है.

रणथंभौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर रणथंभौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर
हाइलाइट्स
  • यहां विराजित है गणेश की तीन आंखों वाली इकलौती मूर्ति 

  • कई प्रकार की किवदंतियां हैं प्रचलित

  • जमीन से अपने-आप अवतरित हुई थी प्रतिमा 

  • गणेश चतुर्थी से पहले लगता है भव्य मेला 

अरावली पर्वत मालाओं से घिरा रणथंभौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में भगवान गणेश को निमंत्रण पत्र एवं चिट्ठियां भेजी जाती है. यह राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में जिला मुख्यालय से महज 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस मंदिर में भगवान गणेश रिद्धी-सिद्धी के साथ विराजमान हैं. भगवान गणेश को आने वाले निमंत्रण पत्रों व चिट्ठियों पर भगवान गणेश का पता भी लिखा जाता है और डाकिया इन चिट्ठियां और निमंत्रण पत्रों को श्रद्धा के साथ यहां पहुंचा देता है. फिर मंदिर के पुजारी इन चिट्ठियों एवं निमंत्रण पत्रों को भगवान त्रिनेत्र गणेश को पढ़ कर सुनाते है और भगवान के चरणों में रख देते है माना जाता है की भगवान त्रिनेत्र गणेश को निमंत्रण भेजने से हर कार्य बिना किसी बाधा के पूरा हो जाता है.

यहां विराजित है गणेश की तीन आंखों वाली इकलौती मूर्ति 

कहा जाता है कि पूरे विश्व में रणथम्भौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र भगवान गणेश की प्रतिमा एक मात्र ऐसी प्रतिमा है जिस पर भगवान गणेश के तीन नेत्र है. यह प्रतिमा अनायास ही लोगों को अपनी ओर खींच लेती है. इसी के कारण यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां के लोगों का ऐसा भी मानना है कि किसी भी कार्य को करने से पहले भगवान गणेश को निमंत्रण देना आवश्यक है, जिससे कार्य अपने आप सफल होता चला जाता है. यही कारण है की हिन्दू रीति-रिवाजों और पौराणिक कथाओं व आस्था के कारण लोग कोई भी मांगलिक कार्य करने से पहले भगवान त्रिनेत्र गणेश को न्योता देना नहीं भूलते हैं. यहां हर साल देश-विदेश से करोड़ों की तादाद में चिट्ठियां और निमंत्रण पत्र आते हैं. इनके अलावा लोग यहां मनी-आर्डर भी भेजते हैं.

कई प्रकार की किवदंतियां हैं प्रचलित

रणथंभौर त्रिनेत्र गणेश को लेकर यहां के लोगों में कई प्रकार की किवदंतियां प्रचलित हैं. कई लोगों का मानना है कि भगवान गणेश की इस प्रतिमा की उत्पत्ति अपने आप हुई थी. कई लोगों का मानना है कि  भगवान शिव ने जब बाल्यावस्था में गणेश जी का शीश काटा था तो वो शीश यहां आकर गिरा था. तब से ही यहां भगवान गणेश के शीश की पूजा की जाती है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि यह मंदिर पांडवों के समय से भी पहले का है. लोगों का कहना है की जब भगवान कृष्ण का विवाह हुआ था उस समय भगवान गणेश अपना विवाह नही होने को लेकर नाराज हो गये थे. तब कृष्ण भगवान ने रणथंभौर की ही रिद्धी-सिद्धी के साथ भगवान गणेश का विवाह सम्पन्न करवाया था. 

जमीन से अपने-आप अवतरित हुई थी प्रतिमा 

इसके अलावा अगर मंदिर महंत की मानें तो उनके अनुसार जब रणथम्भौर दुर्ग पर राजा हमीर का शासन था. तब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर पर आक्रमण कर दिया. उस समय राजा हमीर कई महीनों तक किले में ही रहा था और राजा के भंडार खाली हो गये थे. तब भगवान गणेश ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिए थे और सुबह के समय राजा के सारे भंडार भरे हुए मिले थे. उसी दौरान यहां रणथंभौर की जमीन से अपने आप गणेश की प्रतिमा अवतरित हुई थी और तब से ही इसकी पूजा की जाती है.

गणेश चतुर्थी से पहले लगता है भव्य मेला 

यहां आने वाले श्रद्धालु यहां की प्राकृतिक सुंदरता को देख कर मोहित हो जाते हैं और यहां बार-बार आना चाहते हैं. हर साल यहां गणेश चतुर्थी से पहले लगने वाले मेले के दौरान ही यहां लोगों का आना शुरु हो जाता है और श्रद्धालु रात भर रणथम्भौर दुर्ग में ही विश्राम करते है. रात में होने वाले सांस्कृतिक प्रोग्राम का आनन्द लेते हैं और सुबह होने वाली भगवान गणेश की मंगला आरती के दर्शन कर के ही यहां से जाते हैं. मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कई निजी संस्थाओं के द्वारा भण्डारों की व्यवस्था की जाती है और साथ ही मेडिकल सुविधा भी मुहैया कराई जाती है. यही नहीं मेले को देखते हुए रेलवे प्रशासन के द्वारा सवाई माधोपुर से जयपुर के लिए मेला स्पेशल ट्रेन का संचालन किया जाता है. यहां आने वाले श्रद्धालु मान्यताओं के हिसाब से यहां पत्थरों के छोटे-छोटे मकान बना कर जाते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.

(सुनील जोशी की रिपोर्ट)