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Falgun Shukla Paksha: तिथि क्षय होने के बाद भी 15 दिनों का होगा फाल्गुन शुक्ल पक्ष का पखवाड़ा, रहेंगे कई बड़े तीज-त्योहार

21 फरवरी से 7 मार्च तक फाल्गुन मास का शुक्ल पक्ष रहने वाला है. स बार द्वितीया तिथि क्षय होने के बावजूद ये पखवाड़ा पूरे 15 दिनों का रहेगा. यही वजह है कि इसे काफी शुभ माना जा रहा है. इस पखवाड़ें में कई सारे त्योहार पड़ने वाले हैं.

फाल्गुन शुक्ल पक्ष का पखवाड़ा फाल्गुन शुक्ल पक्ष का पखवाड़ा

फाल्गुन मास का शुक्ल पक्ष 21 फरवरी से 7 मार्च तक रहने वाला है. इस बार द्वितीया तिथि क्षय होने के बावजूद ये पखवाड़ा पूरे 15 दिनों का रहेगा. यही वजह है कि इसे काफी शुभ माना जा रहा है. हिंदू कैलेंडर के आखिरी दिनों में यानी फाल्गुन शुक्ल पक्ष में महत्वपूर्ण व्रत-उपवास और त्यौहार होते हैं. फाल्गुन शुक्ल पक्ष में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है. आयुर्वेद सहित कई जगहों पर इस बात का जिक्र है कि इस मौसम में सभी को शीतल जल से नहाना चाहिए. यानी की पानी न तो ज्यादा गर्म हो, न ही ज्यादा ठंडा. ऐसे पानी से नहाना सेहत के लिए काफी फायदेमंद होगा. जानकार बताते हैं कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष में अनाज का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए और फलों का ज्यादा से ज्यादा सेवन करना चाहिए. शुक्ल पक्ष में वसंत ऋतु होने से रंगीन और सुंदर कपड़े पहनने चाहिए.

इस पक्ष में पड़ने वाले तीज-त्योहार
फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि पर गणेश जी की पूजा एवं पंचमी पर शिवाजी के नागेश्वर रूप की पूजा करने का महत्व बताया गया है. वहीं सप्तमी को सूर्य देव की पूजा विष्णु रूप में की जाती है. एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाता है. इसके अगले दिन गोविंद द्वादशी व्रत होता है. इस हफ्ते ही होली से ठीक आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है. इन दिनों किसी भी तरह का शुभ काम नहीं किया जाता है.

कब है होलाष्टक?
इस महीने की 27 तारीख को शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाएगा. जो की 7 मार्च को होलिका दहन के बाद ही खत्म होगा. होलाष्टक शुरू होने की साथ ही सभी मंगल कामों पर रोक लग जाती है. इन 8 दिनों में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं किए जाएंगे. इन दिनों भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा करने से किसी भी तरह का अशुभ नहीं होता है.

चंद्र देव की होती है पूजा
फाल्गुन महीने का शुक्ल पक्ष चंद्र देव की आराधना के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. दरअसल ग्रंथों के मुताबिक माना जाता है कि चंद्रमा की उत्पत्ति महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया की संतान के रूप में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को ही हुई थी. इसलिए फाल्गुन को चंद्रमा का जन्म माह माना जाता है. ज्योतिष के अनुसार चंद्र का दिन सोमवार है और उन्हें जल तत्व का देव भी कहा जाता है. चंद्रमा का जन्म फाल्गुन मास में होने के कारण इस महीने चंद्रमा की उपासना का विशेष महत्व है.