हिंदू मान्यता के मुताबिक, शुक्रवार का दिन मां संतोषी, वैभव लक्ष्मी, और शुक्र ग्रह को समर्पित है. शुक्रवार के दिन लोग अपनी कुंडली या ग्रह-नक्षत्रों के हिसाब से किसी पंडित या ज्योतिष की सलाह पर शुक्र ग्रह, मां संतोषी या वैभव लक्ष्मी का व्रत कर सकते हैं. आज हम आपको बता रहे हैं इन तीनों व्रत की अलग-अलग पूजा विधि.
मां वैभव लक्ष्मी के व्रत की पूजा विधि:
वैभव लक्ष्मी व्रत के दौरान, आप पूरे दिन फल खा सकते हैं, फलों का जूस पी सकते हैं, और पानी पी सकते हैं. रात में पूजा के बाद आप अन्न भी ग्रहण कर सकते हैं. हालांकि, जिस दिन आपका व्रत हो, उस दिन घर में प्याज़-लहसुन का भोजन न बनाएं.
वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन: वैभव लक्ष्मी व्रत में आप 11, 21 या 51 शुक्रवार तक व्रत की मन्नत करते हैं. जितने भी शुक्रवार की आपने मन्नत ली है, उतने दिन उपवास करें. अंतिम व्रत वाले शुक्रवार को मां वैभव क्ष्मी का व्रत और पूजा करें. संध्या समय में 7 या 9 कन्याएं या सुहागिनों को शुद्ध-सात्विक खीर-पूरी का भोजन कराएं. उन्हें मां वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की किताब, दक्षिणा और केले का प्रसाद देकर विदा करें. इसके बाद खुद भी भोजन करें.
मां संतोषी के व्रत की पूजा-विधि
मां संतोषी के व्रत का उद्यापन: मां संतोषी का व्रत जब भी शुरू करें, यह 16 शुक्रवार किया जाता है. 16वें शुक्रवार को व्रत का उद्यापन करना होता है. इसके लिए संध्या समय संतोषी मां की पूजा करके 8 बालकों को शुद्ध-सात्विक भोजन कराएं. दक्षिणा और केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें. इसके बाद खुद भी भोजन कर लें.
शुक्र ग्रह व्रत की पूजा विधि
यह व्रत शुक्र ग्रह की शांति के लिए किया जाता है. शुक्र ग्रह की पूजा से सौंदर्य, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है. शुक्र ग्रह के व्रत तब करने चाहिए जब शुक्र उदित हो.
शुक्र ग्रह व्रत का उद्यापन: शुक्र ग्रह के व्रत के लिए 21 या 51 शुक्रवार व्रत की मन्नत ली जाती है. आखिर व्रत वाले शुक्रवार को उद्यापन करना चाहिए. उद्यापन के लिए सोना-चांदी, चावल, मिसरी, दूध, सफेद कपड़े, सफेद घोड़ा या चंदन आदि दान करना चाहिए. इस दिन शुक्र ग्रह के मंत्र- 'ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः' का कम से कम 16000 की सख्या जाप करना चाहिए. साथ ही, शुक्र ग्रह की लकड़ी उदुम्बर से बीज मंत्र की एक माला यानी 108 बार मंत्रोच्चारण करते हुए हवन करना चाहिए. हवन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए.
जरूरी नोट: यह पूजा विधि सामान्य है, व्रत शुरू करने से पहले अपने आसपास किसी मंदिर में जाकर पंडित से पूरी जानकारी लें और तब ही व्रत शुरू करें ताकि किसी तरह की कोई गलती न हो.