नागपुर के टेकड़ी गणपति बाप्पा विघ्नहर्ता के रूप में माने जाते हैं. नागपुर शहर के सीताबर्डी स्थित गणपति का यह भव्य दिव्य मंदिर करीब 250 वर्ष पुराना बताया जाता है. कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान श्रीगणेश की मूर्ति खुद से विराजमान है. यानी 250 वर्ष पूर्व पीपल के पेड़ के नीचे यह प्रतिमा खुद प्रकट हुई थी. बाप्पा की मूर्ति आज भी पीपल के पेड़ के नीचे ही विराजमान है. बाप्पा को चांदी का मुकुट लगाया गया है.
मान्यता है कि टेकड़ी गणपति बाप्पा के दर्शन को आनेवाला हर कोई भक्त चाहे वो गरीब हो या अमीर, उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है. यहां बाप्पा के दर्शन के लिये साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है. विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के दिन हजारों की संख्या में लोग यहां बाप्पा का दर्शन करने आते हैं. यहां विराजमान गणपति को विदर्भ के अष्टविनायक में सबसे पहले स्थान का गणपति भी माना जाता है.
सीताबर्डी परिसर में स्थित इस टेकड़ी पर विराजे बाप्पा भगवान गणेश की आराधना बड़े धूमधाम से की जाती है. साल में दो बार यहां भव्य यात्रा होती है. पौष महीने में तिली चतुर्थी पर और अंगार की चतुर्थी पर यहां मेला लगता है. मंदिर में आनेवाला हर कोई बाप्पा से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की आराधना करता है .
मान्यता है कि यहां मांगी हुई मनोकामना बाप्पा पूर्ण करते हैं. इसीलिए नागपुर के इस टेकड़ी गणेश मंदिर में सिर्फ नागपुर ही नहीं, देश के अलग अलग क्षेत्र से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं .
मान्यता है कि आज से करीब 250 साल पहले भोसलेकालीन इस प्राचीन मंदिर में भोसले राजघराने के राजा महाराजा युद्ध पर जाने से पहले अथवा कोई भी शुभ कार्य करने से पहले इसी मंदिर में आते थे और फिर अपने कार्य पर जाते थे. बताया जाता है उस वक्त इस शहर में चारों तरफ पानी भरा होता था. ऐसे में राजा महाराजा नाव के सहारे इस मंदिर में दर्शन करने आते थे.
नागपुर के इस टेकड़ी गणपति मंदिर में क्या बड़े क्या छोटे क्या बुजुर्ग हर कोई अपनी मागने बाप्पा के चरणों में नतमस्तक होता है. सचिन तेंदुलकर जब भी मैच खेलने नागपुर आते थे, वो गणपति बाप्पा के दर्शन करने टेकड़ी गणपति आते थे.
इस पवित्र स्थान पर गणपति तो मौजूद हैं ही. यहां पीपल के पेड़ के रूप में भगवान विष्णु भी वास करते हैं. वैसे तो हर पूजा की शुरुआत गणपति की अराधना से होती है लेकिन नागपुर के टेकड़ी में गणपति के साथ-साथ विष्णु की भी पूजा करनी होती है. इस तरह यहां आने वाले भक्तों को एक परिक्रमा करने से दो देवताओं की पूजा का फल मिल जाता है.
मंदिर के बाहर फूलों से सजी दुकानें हैं. इस मंदिर में आने वाला हर कोई अपने लाडले बाप्पा के लिये फूलों की माला, दूर्वा और प्रसाद जरूर लेता है.