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Navratri 2023: गुड़िया बनाकर सजाया जाता है घर, दक्षिण भारत में इस अनोखे तरीके से मनाया जाता है नवरात्रि का पर्व

तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में, नवरात्रि में कई देवी-देवताओं, जानवरों, पुरुषों और बच्चों की गुड़िया को एक सीढ़ीनुमा सेट-अप पर रखा जाता है. गोलू को देखने के लिए हर शाम विवाहित महिलाओं और बच्चों, विशेषकर छोटी लड़कियों को विशेष रूप से घरों में बुलाया जाता है.

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हाइलाइट्स
  • गुड़िया बनाकर सजाया जाता है घर

  • गुड़िया के साथ मनाया जाता है नवरात्रि का पर्व 

देशभर में नवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. देवी लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती को समर्पित ये नौ रातें भक्तों के जीवन में खुशियां लेकर आती हैं. नवरात्रि पर नौ दिन जहां उत्तर भारत में लोग व्रत रखते हैं तो वहीं पश्चिम में, यह त्योहार गरबा का पर्याय है. इसी तरह दक्षिण में बोम्मई गोलू या नवरात्रि गोलू - गुड़ियों और मूर्तियों के साथ इस पर्व को मनाया जाता है. गुड़िया दक्षिण भारतीय घरों में इस उत्सव का एक अभिन्न अंग है. 

गुड़िया के साथ मनाया जाता है नवरात्रि का पर्व 

तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में, नवरात्रि में कई देवी-देवताओं, जानवरों, पुरुषों और बच्चों की गुड़िया को एक सीढ़ीनुमा सेट-अप पर रखा जाता है. तमिल में, बोम्मई गोलू या कोलू का अर्थ है 'दिव्य उपस्थिति', तेलुगु में, बोम्माला कोलुवु का अर्थ है 'खिलौनों का दरबार', और कन्नड़ में, बॉम्बे हब्बा का मतलब है 'गुड़िया महोत्सव'. 

क्या होता है गोलू?

गोलू में एक अस्थायी सीढ़ी होती है जिस पर कई पीढ़ियों से चली आ रही गुड़िया रखी जाती हैं. इसमें रामायण, पुराण और दशावतारम् के पात्रों को दर्शाया जाता है. गोलू पर्यावरण, अंतरिक्ष, पौराणिक कथाओं, वर्तमान मामलों और अन्य जैसे विशेष विषयों को भी दर्शाता है.

ये संख्या एक से 11 तक अलग-अलग हो सकती हैं. कई परिवार नौ सीढ़ियां रखते हैं, इसमें हर सीढ़ी नवरात्रि के नौ दिनों का प्रतिनिधित्व करती है. कुछ लोग तीन, पांच या सात भी रखते है. इसके बाद सीढ़ियों को सजावटी कपड़े से ढक दिया जाता है और गुड़ियों को उस पर रखा जाता है. 

कैसे मनाते हैं पर्व?

पहले चरण में कलश से सजाया जाता है. पानी से भरे जार को आम के पत्तों के मुकुट से सजाया जाता है और उसके ऊपर एक नारियल रखा जाता है. इसे देवी दुर्गा का प्रतिनिधित्व माना जाता है. कलश के दोनों ओर देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. परंपरा के अनुसार, देवी दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती की गुड़िया और मरापाची बोम्मई नामक लकड़ी की गुड़िया हमेशा व्यवस्था का हिस्सा होती हैं.

कब शुरू होती है ये प्रक्रिया?

गोलू में हर साल कम से कम एक नई गुड़िया जोड़ने का रिवाज होता है जो प्रगति और विकास का प्रतिनिधित्व करता है. अमावसई या अमावस्या के दिन जो कि नवरात्रि की पूर्व संध्या पर पड़ती है, सीढ़ियां स्थापित करके तैयारी शुरू हो जाती है जो लकड़ी या स्टील से भी बनाई जा सकती हैं. इसके बाद इसकी सजावट होती है.

इसके बाद परिवार रंगोली बनाते हैं, दीपक जलाते हैं, आरती करते हैं. गोलू को देखने के लिए हर शाम विवाहित महिलाओं और बच्चों, विशेषकर छोटी लड़कियों को विशेष रूप से घरों में बुलाया जाता है. उनसे देवी के सम्मान में भक्ति गीत भी गाने का अनुरोध किया जाता है.