
नंदगांव के नंदभावना मंदिर में इस बार भी होली का उत्सव पूरे जोश और उमंग के साथ मनाया गया. गोस्वामी समाज के लोगों ने सदियों पुरानी परंपरा को निभाते हुए होली खेली. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसमें पहले दिन नंदगांव के हुरियारे बरसाना होली खेलने जाते हैं और दूसरे दिन बरसाने के होरियारी नंदगांव होली खेलने आते हैं.
क्या है पौराणिक कथा-
इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा छुपी हुई है. जब भगवान श्री कृष्ण बरसाना होली खेलने गए तो बरसाने में उनसे होली का फाल्गुन मांगा गया. भगवान श्री कृष्ण के पास कुछ नहीं था तो उन्होंने अपने मुकुट और कलंगी राधा रानी को दे दी और कहा कि जब हमारे पास फाल्गुन होगा, तब आप मुकुट और कलंगी दे देना. तब से यह परंपरा चली आ रही है कि बरसाने की फाल्गुन लेने के लिए नंदगांव आते हैं और यहाँ होली खेलते हैं.
ढाल और डंडों की तैयारी-
इस होली के उत्सव में सबसे महत्वपूर्ण और दिलचस्प बात यह है कि जो ढाल होते हैं, जिन पर लट्ठ बरसाए जाते हैं, उन्हें बहुत पहले से तैयार किया जाता है. गोस्वामी समाज इस परंपरा को सहेजे हुए हैं और बहुत पहले से ही फाग तैयार किया जाता है. फाग का मतलब यहाँ लड्डू होता है, जिसे विशेष तरीके से तैयार किया जाता है. ढालों को अलग-अलग तेल से तैयार किया जाता है और डंडों को भी विशेष रूप से तैयार किया जाता है.
होली का बच्चों में उत्साह-
इस उत्सव में बच्चों को भी शामिल किया जाता है. छोटे-छोटे बच्चों को ग्वाल बाल के रूप में तैयार किया जाता है और उन्हें सिखाया जाता है कि ढाल से अपनी रक्षा कैसे करनी है? छोटी बच्चियों को भी सिखाया जाता है कि होली कैसे खेलनी है? यह प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है, जो नंदगांव और बरसाना दोनों जगहों पर देखने को मिलता है.
भव्यता और दिव्यता-
इस होली के उत्सव की भव्यता और दिव्यता को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है. कृष्ण जन्मभूमि मथुरा और पूरे ब्रज में यह उत्सव महीने भर चलता है. चाहे फूलों वाली होली हो, लड्डू वाली होली हो या लट्ठमार होली, हर तरह की होली में प्रेम और उत्साह का रंग देखने को मिलता है.
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