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Gudi Padwa 2022: क्यों मनाते हैं गुड़ी पड़वा का त्योहार, जानें इसकी कथा और पूजा की विधि

इन दिन के बारे में ऐसा भी माना जाता है कि त्रेता युग में इस दिन श्री राम ने बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी. इसी खुशी के मौके पर लोगों ने खूब जश्न मनाया था, रंगोली बनाई थी, विजय पताका फहराया था.

 गुड़ी पड़वा गुड़ी पड़वा
हाइलाइट्स
  • इन दिन श्री राम ने किया था बालि का वध

  • अलग-अलग प्रदेशों में अलग हैं नाम

हिंदू नववर्ष का आरंभ हर साल चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को जाता है. मराठी इसे गुड़ी पड़वा के पर्व के रूप में मनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी. कहा जाता है कि संसार में सूर्य सबसे पहले पहली बार उसी दिन निकला था.  इसीलिए गुड़ी पड़वा को संसार का पहला दिन माना जाता है. इसी दिन चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है. 

इन दिन श्री राम ने किया था बालि का वध
इन दिन के बारे में ऐसा भी माना जाता है कि त्रेता युग में इस दिन श्री राम ने बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी. इसी खुशी के मौके पर लोगों ने खूब जश्न मनाया था, रंगोली बनाई थी, विजय पताका फहराया था. इसी पताका को गुड़ी कहा जाता है. 

अलग-अलग प्रदेशों में अलग हैं नाम
महाराष्ट्र में इस त्योहार को गुड़ी पड़वा कहा जाता है, कर्नाटक में इसे युगादि, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादि नाम से मनाया जाता है. वहीं गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो के नाम से मनाते हैं. इस त्योहार पर आज भी गुड़ी लगाने की परंपरा कायम है.  

गुड़ी पड़वा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में दक्षिण भारत के राजा बालि का शासन था. जब प्रभु श्री राम माता सीता को रावण से मुक्त कराने लंका की तरफ जा रहे थे. तब दक्षिण पहुंच कर उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई. सुग्रीव बालि का भाई था. सुग्रीव ने श्रीराम को अपने साथ हुई नाइंसाफी, और बालि के कुशासन और आतंक के बारे में बताया. श्रीराम ने बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से मुक्त कराया. वो दिन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन था. तभी से इस दिन खुशियां  मनाई जाने लगीं. तब से दक्षिण भारत में गुड़ी यानी विजय पताका फहराई जाती है. 

ये है गुड़ी पड़वा की रस्में
गुड़ी बनाने के लिए एक खंभे में उल्टा पीतल का बर्तन रखा जाता है. उसके बाद इसे गहरे रंग के रेशम के लाल, पीले या केसरिया कपड़े और फूलों की माला और अशोक के पत्तों से सजाया जाता है. इस दिन लोग सूरज के उदय होने से पहले उठकर शरीर में तेल लगाकर स्नान करते हैं. घर की महिलाएं स्नान के बाद इस दौरान घर के मुख्यद्वार को आम के पत्तों और फूलों से सजाती हैं. घर के हिस्से में पताका यानी गुड़ी लगाई जाती है. फिर लोग भगवान ब्रह्मा की पूजा करते हैं और गुड़ी फहराते हैं.