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Guru Arjun Dev दया और करुणा के थे सागर, हर समुदाय को देखते थे समान भाव से, सिखों के पांचवें गुरु की जयंती पर पढ़ें उनके अनमोल विचार

Guru Arjun Dev Birth Anniversary: गुरु अर्जुन देव 1581 में सिखों के पांचवें गुरु बने. उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन भाई गुरदास की सहायता से किया. अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी. 

गुरु अर्जुन देव गुरु अर्जुन देव
हाइलाइट्स
  • गुरु अर्जुन देव का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को पंजाब के गोइंदवाल में हुआ था

  • गुरु जी के स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का कराया गया निर्माण 

सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव का पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित रहा. वह दया और करुणा के सागर थे. समाज के हर समुदाय और वर्ग को समान भाव से देखते थे. गुरु अर्जुन देव का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को पंजाब के गोइंदवाल में हुआ था. 

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का किया संपादन 
संपादन कला के गुणी गुरु अर्जुन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन भाई गुरदास की सहायता से किया था. उन्होंने रागों के आधार पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है. श्री गुरु ग्रंथ साहिब में कुल 5894 शब्द हैं, जिनमें से 2216 शब्द श्री गुरु अर्जुन देव जी के हैं. 

गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें गुरु बने
वर्ष 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें गुरु बने. उन्होंने ही अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है. कहते हैं इस गुरुद्वारे का नक्शा स्वयं अर्जुन देव जी ने ही बनाया था.

बलिदान गाथा
1605 में जब जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना तो शहजादा खुसरो ने जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी. जहांगीर जब गुस्से में आया तो वह भागकर पंजाब चला गया. खुसरो तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा. गुरु अर्जन देव जी ने उसका स्वागत किया और उसे अपने यहां पनाह दी. इस बात की जानकारी जब जहांगीर को हुई तो वह अर्जुन देव पर भड़क गया. उसने अर्जुन देव को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. उधर गुरु अर्जुन देव बाल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंपकर स्वयं लाहौर पहुंच गए. जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी को यातना देकर मारने का आदेश दिया. जहांगीर के आदेश के मुताबिक, गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सबकुछ सहा. 

भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवा पर बैठाया
अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (30 मई, सन् 1606) को उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवा पर बैठाया. उनके ऊपर गर्म रेत और तेल डाला गया.  यातना के कारण जब वे मूर्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी नदी की धारा में बहा दिया गया. गुरु अर्जुन देव जी ने 'तेरा कीआ मीठा लागे/ हरि नाम पदारथ नानक मागे' शबद का उच्चारण करते हुए अमर शहीदी प्राप्त की. उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है. 

गुरु जी के अनमोल विचार
1. जो लोग अपनी चेतना को सच्चे गुरु पर केंद्रित करते हैं, वे पूर्ण रूप से पूर्ण और प्रसिद्ध होते हैं.
2. जब अच्छे कर्मों का उदय होता है, तो संदेह की दीवार टूट जाती है.
3. उनके प्रयासों से मेरे कर्मों का भार दूर हो गया है, और अब मैं कर्म से मुक्त हूं.
4. जो पहले से ही अच्छे कर्म नहीं करने के लिए नियुक्त थे–भावनात्मक लगाव के दीपक में देख रहे हैं, वे जले हुए हैं, जैसे ज्वाला में पतंगे.
5. हे मेरे व्यापारी मित्र, तेरी सांस समाप्त हो गई है, और आपके कंधे बुढ़ापे के अत्याचारी द्वारा तौले गए हैं, हे मेरे व्यापारी मित्र, तुम में रत्ती भर भी पुण्य नहीं आया, बुराई से बंधे और जकड़े हुए, तुम साथ-साथ चल रहे हो.
6. अगर आप मन की शांति चाहते हो तो जैसे आप लोगों को कहते हो उसी प्रकार आप भी करो, अपनी कथनी पर अमल किया करो.
7. परमात्मा को संग जानकर उसे याद रखा करो, अगर आप सिर्फ धन इकट्‍ठा करने के लालच से कथा करोगे तो आपके मन को शांति कदापि प्राप्त नहीं होगी बल्कि आपके मन का लालच बढ़ता जाएगा और पहले से भी ज्यादा दुखी हो जाओगे.