हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत को बड़ा महत्व दिया गया है. इस व्रत को करने से शिव जी की कृपा हासिल होती है. ऐसा कहा गया है कि गुरु प्रदोष के दिन जो पूजा करता है और व्रत रखता है उसे कष्टों और पापों से मूक्ती तो मिलती ही है साथ ही कई धार्मिक लाभ भी मिलते हैं. इस बार प्रदोष व्रत 28 अप्रैल गुरुवार को है इसलिए इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाएगा. आज हम आपको बताएंगे कि प्रदोष व्रत की पूजा विधि क्या है और पूजा करने का शुभ मुहूर्त क्या है. बता दें कि हिंदी नववर्ष के हिसाब से प्रदोष व्रत वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है.
प्रदोष व्रत कब-कब किया जाता है
हिंदू पंचांग में प्रदोष व्रत के बारे में विस्तार से बताया गया है. पंचांग के अनुसार यह व्रत हर माह में दो बार रखा जाता है. पहला कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में. इस व्रत में भगवान शिव की पूजा करके गुरु प्रदोष व्रत कथा का पाठ या श्रवण करना लाभकारी माना गया है. इससे भगवान शिव खुश होते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है. लेकिन इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि पूजा गलत विधि से न की जाए. ऐसा करने से पूजा का लाभ नहीं मिलता है साथ ही शिव जी नाराज भी हो जाते हैं.
जानते हैं शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
गुरु प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त त्रयोदशी तिथि 28 अप्रैल रात के 12 बजकर 23 मिनट से शुरू हो जाएगा और इसका समापन 29 अप्रैल को रात 12 बजकर 26 मिनट पर होगा. बता दें कि उदया तिथि के अनुसार यह व्रत कल यानी 28 अप्रैल दिन गुरुवार को रखा जाएगा. अगर बात करें पूजा मुहूर्त की तो इस बार गुरु प्रदोष व्रत का मुहूर्त गुरुवार को शाम 6 बजकर 54 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 4 मिनट तक है. अगर आप यह व्रत करने जा रहे हैं तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि पूजा विधि क्या है. तो सबसे पहले आपको सुबह उठकर स्नान कर लेना है और खुद को गंगाजल से शुद्ध कर लेना है. इसके बाद शिव जी और मां पार्वती का ध्यान करना है. ये सब करने के बाद एक आसन लें और बैठ जाएं. पूजा की शुरुआत भगवान को फूल से जल चढ़ाने के साथ करें. अब आपको भगवान शिव को सफेद फूल, धतूरा, बेलपत्र आदि चढ़ाना है. ऐसा करने के बाद सफेद चंदन लगाएं. प्रसाद के रुप में हलवा या पुआ चढ़ाएं. अब दीपक जलाकर शिव जी के मंत्र का जप करें तथा शिव चालीसा और प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें. पुजा करने के बाद आपको दिनभर व्रत रखना है.