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Sanjhi Mata: उत्तर भारत के कुछ राज्यों में मनाया जाता है सांझी माता का उत्सव, जानिए क्या है ये परंपरा

क्या आप जानते हैं कि जिस तरह भारत के कुछ राज्यों में दुर्गा पूजा उत्सव मनाया जाता है, वैसे ही हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सांझी माता का उत्सव मनाया जाता है. जानिए इस पर्व के बारे में.

Sanjhi Mata Utsav Sanjhi Mata Utsav
हाइलाइट्स
  • आयोजित की गई सांझी माता प्रतियोगिता 

  • गांव के भाईचारे का प्रतीक सांझी उत्सव

हमारे देश में नवरात्रि का उत्सव बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नाम और अलग-अलग तरीकों से यह त्योहार मनाया जाता है. उत्तर भारत के राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां के ज्यादातर इलाकों में सांझी उत्सव मनाया जाता है. यहां मां दुर्गा को सांझी माता के रूप में पूजा जाता है. 

सांझी उत्सव में घर की महिलाएं और लड़कियां गांव-देहात में तालाब या नदी से मिट्टी लाकर घर में ही दीवार पर सांझी माता की आकृति उकेरती हैं और फिर 10 दिनों तक उनकी पूजा की जाती है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि सांझी उत्सव आसपड़ोस के सभी लोगों को आपस में जोड़ देता है. हालांकि, आधुनिक जमाने में बहुत से लोग अपनी परंपराओं को भूलते जा रहे हैं. ऐसे में, हरियाणा में बहादुरगढ़ तहसील के सांखोल गांव ने अनोखी पहल की है. 

इस गांव में बहुत से लोग मिलकर संघर्षशील जनकल्याण सेवा समिति की शुरुआत की ताकि गांव में स्वच्छता, जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर आवाज उठाई जा सके. इस समिति का उद्देश्य अपने गांव को स्वराज की ओर ले जाना है. साथ ही, यह समिति अपनी आने वाली पीढ़ी को सभी परंपराओं के बारे में सिखाने-पढ़ाने का भी काम कर रही है. 

आयोजित की गई सांझी माता प्रतियोगिता 
इस समिति के सदस्य और पेशे से एक टीचर, मनीष चाहार ने बताया कि सांझी माता की इस विरासत को आगे ले जाने के लिए वे लगातार तीन सालों से अपने गांव में सांझी प्रतियोगिता आयोजित कर रहे हैं. इस साल लगभग 20 गांवों की 80 महिलाओं और लड़कियों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया. प्रतियोगिता के लिए पहला इनाम- 11000 रुपए, दूसरा- 7100 रुपए और तीसरा इनाम- 5100 रुपए थे.

मनीष ने इस पर्व के बारे में GNT Digital को बताया कि गांव-देहात में सांझी माता की तैयारियां 10-15 दिन पहले से शुरू हो जाती है. गांव की महिलाएं, और लड़कियां मिलकर तालाब से मिट्टी लेकर आती हैं. इस मिट्टी को तैयार करके इससे चांद-सितारे और सांझी माता के अलग-अलग अंग बनाए जाते हैं. फिर नवरात्रि प्रतिपदा से पहले पितृपक्ष की अमावस्या को घर की एक दीवार पर गोबर से लिपाई की जाती है और इस दीवार पर सांझी माता बनाई जाती हैं. 

मां की इस आकृति में महिलाएं अलग-अलग रंग भरती हैं. सांझी माता छोटे से बड़े आकार में बनाई जाती हैं और बहुत से लोग सांझी माता के साथ-साथ और भी चीजें बनाते हैं जैसे मवेशी, पेड़-पौधे, खेल-खिलौने आदि बनाते हैं. 10 दिनों तक सांझी माता की पूजा की जाती है और दशमी को मां को विदाई दी जाती है. 

गांव के भाईचारे का प्रतीक सांझी उत्सव
मनीष बताते हैं कि मां के इस रूप को सांझी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह गांव-देहात का सांझा त्योहार है. इसे गांव के सभी घर-परिवार मिलकर मनाते हैं. हर दिन आसपड़ोस की सभी महिलाएं मिलकर सांझी माता की आरती करती हैं. हर दिन अलग-अलग घर में मां का प्रसाद बनता है और बांटा जाता है. इससे गांव में भाईचारे और सहयोग की भावना को भी बढ़ावा मिलता है.

मनीष कहते हैं नवरात्रि के सातवें या आठवें दिन सांझी माता के साथ उनके भाई के छोटी सी आकृति बनाई जाती है. इसका मतलब होता है कि उनके भाई अब दसवें दिन अपनी बहन, सांझी माता को ले जाएंगे. दसवें दिन दीवार से सांझी माता को उतारकर एक मटके में रखा जाता है. इस मटके में छेद किए जाते हैं और मटके को तालाब में प्रवाहित किया जाता है. इस तरह मां अपने धाम लौट जाती हैं. कहते हैं कि जो सच्चे मन से मां की मनाता है उसका घर धन-धान्य से भर जाता है.

इको-फ्रेंडली त्योहार 
सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह त्योहार पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है. गांव के तालाब की मिट्टी से सांझी बनाई जाती है और दसवें दिन यह तालाब में ही लौट जाती है. सांझी बनाने में ऐसी किसी चीज का इस्तेमाल नहीं होता है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए. सांझी माता की आकृति बनाने के लिए गोबर और मिट्टी का इस्तेमाल होता है. इसे सजाने के लिए भी पर्यावरण के अनुकूल रंग इस्तेमाल होते हैं. ऐसे में यह त्योहार पीओपी से बनी दुर्गा मां की मुर्तियां लाकर प्रवाहित करने से बेहतर है.