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Hatkoti Temple: जानिए हाटकोटी मंदिर के बारे में, जहां Preity Zinta ने कराया अपने बच्चों का मुंडन

Hateshwari Mata Temple: हिमाचल प्रदेश में शिमला से 130 किलोमीटर और रोहड़ू से 14 किलोमीटर दूर हाटेश्वरी माता का मंदिर है. इस मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में किया गया था. यह मंदिर पाषाण शैली में बना है. इस मंदिर में 1.2 मीटर ऊंची हाटेश्वरी माता की मूर्ति है.

हाटेश्वरी माता के मंदिर का महत्व और इतिहास जानिए (Photo/Instagram) हाटेश्वरी माता के मंदिर का महत्व और इतिहास जानिए (Photo/Instagram)

बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रीति जिंटा ने अपने जुड़वां बच्चों का शिमला के दुर्गा माता मंदिर हाटकोटी में मुंडन कराया. इस दौरान उनके पति जिन गुडईनफ भी मौजूद रहे. हाटकोटी हिमाचल प्रदेश के पब्बर नदी के किनारे बसा एक प्राचीन गांव है. इस गांव में हाटेश्वरी माता का मंदिर है. ये मंदिर काफी फेमस है और इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. चलिए आपको इस मंदिर के बारे में बताते हैं.

हाटेश्वरी माता की मूर्ति-
मंदिर के गर्भगृह में हाटेश्वरी माता की मूर्ति है, जो महिषासुर का वध कर रही हैं. मूर्ति की ऊंचाई 1.2 मीटर है. ये मूर्ति 7वीं शताब्दी की बनी हुई है. मूर्ति के 8 हाथ हैं. माता के बाएं हाथ में महिषासुर का सिर है. बताया जाता है कि माता का दाहिना पैर भूमिगत है. माता के एक हाथ में चक्र और बाएं हाथों में से एक में रक्तबीज है. गर्भगृह की मूर्ति के दोनों तरफ 7वीं और 8वीं शताब्दी के अघोषित अभिलेख हैं. सिंहासन के पीछे आर्च पर नवदुर्गा हैं, जिसके नीचे वीणाधारी शिव और इंद्र की अगुवाई में दूसरे भगवान हैं. दोनों तरफ हयग्रीव घोड़ा और हाथी ऐरावत हैं. इसके अलावा गर्भगृह में देवी के बगल में परशुराम का एक तांबे का कलश रखा गया है.

मंदिर में कई और मूर्तियां-
सिंहासन के बाईं और दाईं तरप गंगा और यमुना को चित्रित किया गया है. इस मंदिर में देवी की एक पत्थर की मूर्ति को वज्र धारण करते हुए दिखाया गया है. मूर्ति के होठों पर तांबा और नेत्रों पर चांदी जड़ी हुई है. 
इस मंदिर में एक शिवलिंग है, जिसके चारों तरफ शिव मंदिर है. इसकी छत पर देवी-देवताओं की मूर्ति उकेरी गई है. सभी मूर्तियों को एक नक्काशीदार फ्रेम में रखा गया है.

हाटकोटी मंदिर का इतिहास-
हाटकोटी मंदिर शिमला से करीब 130 किलोमीटर और रोहड़ू से 14 किलोमीटर दूर है. माना जाता है कि हाटेश्वरी मंदिर 9वीं-10वीं शताब्दी बनाया गया था. इससे पहले भी यहां मंदिर के अवशेष मिले थे. हाटकोटी गांव 5 वर्ग किलोमीटर में फैला है. आज भी गांव में कई जगहों पर मंदिर हैं, जिसकी नक्काशी और वास्तुकला 6वीं से 9वीं शताब्दी के बीच की है.
मंदिर पिरामिडनुमा बना है. इसमें संगमरमर की अमलका और एक सुनहरे रंग का कलश है. असली कलश मंदिर परिसर के इंट्री गेट पर रखा गया है. मंदिर के चारों तरफ लकड़ी और पत्थर की दीवार बनाई गई है.

पांडवों से जुड़ा है मंदिर-
इस मंदिर की कहानी महाभारत काल के पांडवों से जुड़ी है. हाटेश्वरी माता मंदिर परिसर में 5 छोटे मंदिर हैं. इन छोटे मंदिरों में शिव की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि इन मंदिरों को पांडवों ने बनाया था. इसे पांडवों का खिलौना या 5 पांडव भाइयों के खिलौनों का घर कहते हैं. इन मंदिरों के बाहर गरुड़ पर विष्णु और लक्ष्णी, दुर्गा और गणेश की प्रतिमाएं बनी हुई हैं.
शिव मंदिर और हाटेश्वरी मंदिर के बीच भंडार है. इसमें फेस्टिवल के दौरान इस्तेमाल होने वाली चीजें हैं. इसके अलावा भक्तों के इकट्ठा होने के लिए एक सुंदर बैठक है.

मंदिर में तांबे के बड़े बर्तन की कहानी-
हाटेश्वरी माता के गर्भगृह के इंट्री गेट के पास एक विशाल तांबे का बर्तन है, जिसे जंजीर से बांधा गया है. इसको लेकर एक कहानी फेमस है. बताया जाता है कि एक पुजारी जब मंदिर परिसर में सो रहा था तो गड़गड़ाहट की आवाज से उनकी नींद खुल गई. बाहर मूसलाधार बारिश हो रही ती. जब वो बाहर निकला और देखा तो नदी में दो बड़े तांबे के बर्तन बह रहे थे. पुजारी ने बर्तनों को निकाला और उसे देवी को अर्पित कर दिया. बताया जाता है कि जब अगली बार बारिश हुई तो एक बर्तन नदी में बह गया. इसके बाद दूसरे बर्तन को जंजीर से बांध दिया गया. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि अगर फसल बोते समय वो खोए बर्तन की तलाश करते हैं तो फसल अच्छी होती है.

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