बिहार के सहरसा जिले के बनगांव में एक अनोखी परंपरा चलती आ रही है. ये पिछले 133 वर्षों से लगातार बिना रुके, बिना किसी बाधा के हर रविवार चलती आ रही है. ये परंपरा है धर्मसभा की. धर्मसभा में विद्वान और आमजन सभी जमा होते हैं. इस बीच सन् 1984 की बाढ़ हो या फिर 2008 की कुसहा त्रासदी की भयानक विभीषिका, ये धर्मसभा एक बार भी नहीं रुकी है.
इस गांव के अधिकतर लोग राज्य, देश सहित विदेश में उच्च शिक्षा में कार्यरत हैं. शिक्षा के क्षेत्र में शिखर पर परचम लहराने वाले इस गांव में विगत 133 साल से कोई बड़ी घटना नहीं घटी है. इसलिए भी इस गांव को लोग कोसी का काशी कहते हैं.
क्या है धर्मसभा की कहानी?
इस धर्मसभा की कहानी की बात करें, तो 133 सालों पहले इस सर्वोपकार सनातन धर्मसभा की स्थापना की गई थी. उसके पीछे प्रेरणा मिथिलांचल के एक प्रसिद्ध संत कवि लक्ष्मीनाथ गोस्वामी जी की थी. 1891 ईसवी में इसी गांव के एक सपूत जिन्हें संत बबुआ खां के नाम से जाना जाता है, उन्होंने ही उनके प्रेरणा में आकर इसकी स्थापना की थी. इसका उद्देश्य था कि धर्म, नीति,और आचार की शिक्षा धर्म ग्रंथो के आधार पर लोगों को दी जाए ताकि समाज में सामाजिक समरसता के संग आपसी भेदभाव मिटाया जा सके और लोग अपनी भौतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए उन सब मार्गों का अवलोकन कर आगे बढ़ सकें.
इस सभा में एक ब्यास जरूर होते हैं, जो संत लक्ष्मीनाथ गोसाई को सभापति मानते हुए धर्मसभा की करवाई शुरू करते हैं. उप सभापति के रूप में संत बबुआ खां जिन्होंने इस धर्मसभा की स्थापना की थी उस परिवार के कोई न कोई एक वंशज जरूर होते हैं. ये इस धर्मसभा में उपसभापति के रूप में मौजूद रहते हैं.
होती है धर्म की चर्चा
धर्मसभा में बैठे ब्यास जी की मानें, तो यहां आसपास के जितने भी विद्वान हैं इस धर्मसभा में उन लोगों का जमावड़ा होता है. यहां मुख्य रूप से धर्म की चर्चा और व्याख्या होती है. उसमें चारों वेद, 18 पुराण, आठों धर्मशास्त्र, उपनिषद इन सब पर चर्चा होती है. इलाके के जितने भी संस्कृत के विद्वान है वो सभी आते है और धर्मसभा में भाग लेकर अपना अपना व्याख्यान देते हैं. वे कहते हैं, “खास बात ये है कि हमारे गांव में अब तक कोई बड़ी घटना नहीं घटी. थाना पुलिस की जरूरत नहीं पड़ी. हमलोग आपस में बैठकर धर्म से युक्त जो भी बात है, या धर्मपूर्वक न्यायपूर्ण बैठकर समाधान कर लेते हैं. यहां शासन प्रशासन की जरूरत नहीं पड़ती है.”
हर साल इसका वार्षिकोत्सव मनाया जाता है जिसमें यह निर्णय लिया जाता है कि इस साल इस धर्मसभा के ब्यास कौन होंगे. निर्णय के उपरांत या तो पूर्व वाले ही ब्यास रहते हैं या फिर उसे बदलकर धर्मसभा की करवाई आगे बढ़ाई जाती है.
133 साल से रखा जा रहा है रिकॉर्ड
इस धर्मसभा को स्थापित करने वाले संत बबुआ खां के वंशज और इस धर्मसभा के उपसभापति पीतांबर खां की मानें तो प्रत्येक रविवार को इस धर्मसभा में होने वाली कार्रवाई को एक सफेद पन्ने में लाल स्याही से लिखा जाता है. इसमें ब्यास जी का नाम और जो इस धर्मसभा में जो भी लोग प्रसाद चढ़ाते हैं उनका नाम लिखा जाता है. इसमें आज भी 133 वर्षों का रिकॉर्ड सुरक्षित है.
ये परमहंस की धर्मसभा है
ग्रामीण पंडित सत्यनारायण झा की मानें तो ये परमहंस की धर्मसभा है. इसमें महा परमहंस सब शामिल होते हैं. ऋषि, गंधर्व, यक्ष सब का समावेश इस सर्वोपकारणी सनातन धर्मसभा में हैं. ब्रह्मा, विष्णु महेश का रूप धारण करके शामिल होते हैं. इसमें हर किसी के बैठने का आसन अलग होता है. बड़े बड़े ऋषि मुनि इस सभा में शामिल हुए हैं, जिसमें गंधर्व, यक्ष रावण सभी का समावेश है.
(धीरज कुमार सिंह की रिपोर्ट)