हिंदू शादियों में सिंदूर और मंगलसूत्र को सुहाग की निशानी माना जाता है. ये दिखाता है कि आप शादीशुदा हैं. शादी का ये पवित्र धागा, मंगलसूत्र सुर्खियों में आ गया है. मंगलवार को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री पर पलटवार किया है. रैली में प्रियंका ने कहा कि मेरी मां का मंगलसूत्र इस देश को कुर्बान हुआ है. मेरी दादी ने जब जंग हुई थी, तब अपना सोना देश को दिया था. हाल ही में पीएम मोदी ने एक रैली में आरोप लगाया था कि कांग्रेस और इंडी गठबंधन की नजर लोगों की संपत्ति और मंगलसूत्र पर है. इसी का विरोध करते हुए प्रियंका गांधी ने अपनी बात कही है.
इसके बाद से मंगलसूत्र इसबार लोकसभी चुनाव में बहस का मुद्दा बन गया. हालांकि, मंगलसूत्र शुरू से ही सुहाग की निशानी नहीं रहा है. इसका कॉन्सेप्ट धीरे-धीरे समाज में आया और बदलता गया.
कैसे आया मंगलसूत्र का कॉन्सेप्ट?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडियन ज्वेलरी: द डांस ऑफ द पीकॉक' के लेखक बालाकृष्णन और मीरा सुशील कुमार के अनुसार, प्राचीन भारत में आभूषण शादी में शुभ प्रतीक के रूप में माने जाते थे. मनुस्मृति में दुल्हन के आभूषणों को 'स्त्रीधन' के रूप में बताया गया है. ये दुल्हन को दी गई संपत्ति होती है.
आभूषणों से सजाने की परंपरा सदियों पुरानी
वहीं, भारतीय आभूषणों की इतिहासकार, डॉ. उषा बालकृष्णन, मंगल सूत्र के ऐतिहासिक पक्ष को बताती हैं. आम धारणा से अलग, हीरे और पेंडेंट से सजे आधुनिक मंगलसूत्र कभी भी हिंदू संस्कृति का हिस्सा नहीं रहे हैं. ये केवल एक पवित्र धागा होता था. हालांकि, दुल्हनों को आभूषणों से सजाने की परंपरा सदियों पुरानी है. लेकिन शादियों में मंगलसूत्र का कॉन्सेप्ट आधुनिक है.
पहले था ये केवल पवित्र धागा
पहले ये केवल एक पवित्र धागा था, फिर आगे चलकर ये आधुनिक मंगलसूत्र में बदला. हालांकि, ये एक धार्मिक विकास नहीं था बल्कि समाज और संस्कृति जैसे-जैसे बदली वैसे-वैसे इसका कॉन्सेप्ट भी बदल गया. पारंपरिक रूप से छात्र जीवन में अपनी दीक्षा के हिस्से के रूप में पुरुषों और महिलाओं दोनों को एक पवित्र धागा पहनाया जाता था. इसी से महिला की वैवाहिक स्थिति को बताने के लिए ये पवित्र धागा मंगलसूत्र में बदल गया. विभिन्न समुदायों और जातियों में मंगल सूत्र अलग-अलग तरह का होता है. इनका डिजाइन उनकी सांस्कृतिक विरासत और मान्यताओं के हिसाब से बदलता गया.
मंगलसूत्र के कई नाम हैं
पूरे भारत में अलग-अलग समुदायों ने इस मंगलसूत्र को अपनाया है. लेकिन सभी के अपने तौर तरीके हैं. जैसे तमिलनाडु और केरल में, मंगलसूत्र को 'ताली' के नाम से जाना जाता है. जो ताड़ के पेड़ की एक प्रजाति या ताड़ के पेड़ों के झुंड के बारे में बताता है. इसको लेकर उषा बालकृष्णन लिखती हैं, “हालांकि इस शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई ये कोई नहीं जानता, लेकिन आज भी गोंड, सावरस और मुंडा जनजातियों के बीच, दूल्हा दुल्हन के गले में ताड़ के पत्ते के साथ एक धागा बांधा जाता है."
मंगल सूत्र बांधने की प्रथा हिंदुओं के अलावा दूसरे धार्मिक समूहों में भी फैल गई है. उदाहरण के लिए, केरल में सीरियाई ईसाई मंगलसूत्र पहनते हैं, लेकिन उस पर एक क्रॉस होता है. केवल मंगलसूत्र ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में बिच्छवा, बंगाल में शंख और मूंगा चूड़ियां भी बताती हैं कि महिला विवाहित है.