
Holashtak Me Kya Karein Kya Na Karein: हिंदू धर्म में होली (Holi) का विशेष महत्व है. इस दिन गरीब हों या अमीर, सभी लोग एक होकर इस रंगों के त्योहार को मनाते हैं. इस पर्व को हर साल फाल्गुन महीने में मनाया जाता है. होली से आठ दिन पहले होलाष्टक (Holashtak) शुरू होता है और इसका समापन होलिका दहन (Holika Dahan) के दिन होता है. होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह करने की मनाही होती है. आइए जानते हैं कब से होलाष्टक शुरू हो रहा है और इस दिन क्या करें व क्या नहीं?
कब है होली
वैदिक पंचांग के मुताबिक होली हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. इस साल फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगा. उदयातिथि के कारण रंगों की होली 14 मार्च 2025 को है. होली से एक दिन पहले यानी 13 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा. होलिका दहन के लिए का शुभ मुहूर्त 13 मार्च 2025 को रात 10:45 बजे से लेकर रात 1:30 बजे तक है.
कब से शुरू होगा होलाष्टक
इस साल होलाष्टक 7 मार्च से शुरू होगा और इसका समापन होलिका दहन दहन के साथ 13 मार्च 2025 को होगा. होलाष्टक यूपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में मनाया जाता है. होलाष्टक की परंपरा के मुताबिक इस दिन यानी फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन होलिका दहन के लिए स्थान का चयन किया जाता है.
क्यों नहीं करने चाहिए होलाष्टक के समय मांगलिक कार्य
धार्मिक मान्यता है कि जो लोग होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करते हैं, उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है. इस दौरान किए गए मांगलिक कार्य सफल नहीं होते हैं. होलष्टक के दौरान विवाह जैसा मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. इस समय निर्मित किए गए मकान सुख नहीं देते, इसलिए गृह निर्माण भी वर्जित होता है. इस समय नया व्यवसाय भी शुरू नहीं करना चाहिए. होलाष्टक के दौरान सोना-चांदी, वाहन आदि की खरीदारी करने की मनाही होती है. होलाष्टक में जप और तप करना शुभ माना जाता है.
होलाष्टक में इन संस्कारों को करने पर रहती है मनाही
1. विवाह: शादी के बंधन में बंधना.
2. चूड़ाकर्म: मुंडन.
3. गर्भाधानः किसी स्त्री का गर्भ धारण करना.
4. पुंसवनः गर्भ धारण करने के तीन महीने के बाद किया जाने वाला संस्कार.
5. सीमंतोन्नयनः गर्भ के चौथे, छठे व आठवें महीने में होने वाला संस्कार.
6. जातकर्म: बच्चे के स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए शहद और घी चटाना और वैदिक मंत्रों का उच्चारण करना.
7. नामकरणः बच्चे का नाम रखना.
8. निष्क्रमणः यह संस्कार बच्चे के जन्म के चौथे महीने में किया जाता है.
9. अन्नप्राशनः बच्चे के दांत निकलने के समय किया जाने वाला संस्कार.
10. विद्यारंभः शिक्षा की शुरुआत.
11. कर्णवेधः कान को छेदना.
12. यज्ञोपवीतः गुरु के पास ले जाना या जनेऊ संस्कार.
13. वेदारंभः वेदों का ज्ञान देना.
14. केशांतः विद्यारम्भ से पहले बाल मुंडन.
15. समावर्तनः शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति का समाज में लौटना समावर्तन है.
16. अन्त्येष्टिः अग्नि परिग्रह संस्कार.
होलाष्टक के दौरान क्या करें
1. होलाष्टक के दौरान जप और तप करना शुभ माना जाता है.
2. हनुमान चालीसा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें.
3. गरीबों को दान करें. भोजन कराएं.
4. पितृ तर्पण कर सकते हैं.
5. ग्रह शांति पूजा कर सकते हैं.
होलाष्टक में क्यों रहते हैं मांगलिक कार्य बंद
हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु को शत्रु मानता था. उसके पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे. हिरण्यकशिपु नहीं चाहता था कि उसका पुत्र विष्णु की पूजा करे. उसके बार-बार मना करने और यातनाएं देने के बाद भी प्रहलाद की भक्ति भगवान विष्णु के प्रति कम नहीं होती थी. इसका कारण हिरण्यकशिपु अपने पुत्र को मारना चाहता था. प्रहलाद को मारने के लिए उसने कई उपाय किए लेकिन सफल नहीं हुआ. इसके बाद हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने अपने भाई से कहा कि वरदान के मुताबिक मैं अग्नि से जल नहीं सकती हूं.
मैं प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती हूं. इससे प्रहलाद जलकर मर जाएगा. होलिका इसके बाद प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में आठ दिन के लिए बैठ गई. होलिका को वरदान होने के कारण वह सात दिनों तक नहीं जली लेकिन आठवें दिन वह अग्नि सहन नहीं कर पाई और जलकर उसमें भस्म हो गई. भक्त प्रहलाद को भगवान विष्णु के आशीर्वाद से कुछ भी नहीं हुआ. होलिका के जलने के बाद अग्नि देव शांत हो गए और भक्त प्रहलद सुरक्षित निकल आए. इन आठ दिनों में भक्त प्रहलाद ने अग्नि का ताप और पीड़ा सही, जिस कारण यह आठ दिन होलाष्टक कहा जाने लगा, इसलिए इन आठ दिनों कोई भी मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है. होलाष्टक के विषय में कई धार्मिक मान्यताएं हैं. कहते हैं कि होलाष्टक में ही शिवजी ने कामदेव को भस्म किया था. इस अवधि में हर दिन अलग-अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं. इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं.