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Holi 2024: कब और कहां से शुरू हुई होली मनाने की प्रथा, जानिए होली के शुरुआत की कहानी

पुराणों की मानें तो ऐरच जो कभी हिरणाकश्यप की राजधानी हुआ करती थी. यहां पर होलिका भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थी. जिसमें होलिका जल गई थी लेकिन प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ. कहा जाता है तभी से होली के पर्व की शुरुआत हुई थी.

Holi Celebration 2024 Holi Celebration 2024

होली के त्योहार को पूरा देश हर्षोल्लास से मनाता है. लेकिन क्या कोई जानता है कि इस त्योहार की शुरुआत कहां से हुई थी. अगर नहीं जानते हैं तो हम आपको बताते हैं. इस त्योहार की शुरुआत बुन्देलखंड में झांसी के एरच से हुई है. और पूरे देश मे मनाई जाने वाली होली की मूर्ति की पूजा भी यहीं होती है. इसके बाद देश भर में होली मनाई जाती है. पुराणों की मानें तो ऐरच जो कभी हिरणाकश्यप की राजधानी हुआ करती थी. यहां पर होलिका भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थी. जिसमें होलिका जल गई थी लेकिन प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ. कहा जाता है तभी से होली के पर्व की शुरुआत हुई थी.

जानिए होली के शुरुआत की कहानी
एरच झांसी मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. एरच वही इलाका है जहां से होली की शुरुआत हुई थी. शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक वर्तमान में झांसी जिले का एरच कस्बा सतयुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था. यह एरिकच्छ दैत्यराज हिरणाकश्यप की राजधानी थी. हिरणाकश्यप को यह वरदान प्राप्त था कि वह न तो दिन में मरेगा और न ही रात में, न तो उसे इंसान मार पायेगा और न ही जानवर. इसी वरदान को प्राप्त करने के बाद खुद को अमर समझने वाला हिरणाकश्यप निरंकुश हो गया, लेकिन इस राक्षसराज के घर जन्म हुआ प्रहलाद का. भक्त प्रहलाद की नारायण भक्ति से परेशान होकर हिरणाकश्यप ने उसे मरवाने के कई प्रयास किए. फिर भी प्रहलाद बच गया. आखिरकार हिरणाकश्यप ने प्रहलाद को डिकोली पर्वत से नीचे फिकवा दिया. डिकोली पर्वत और जिस स्थान पर प्रहलाद गिरा वह आज भी मौजूद है. इसका जिक्र श्रीमद्भागवत पुराण में मिलता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरणाकश्यप की बहन होलिका ने प्रहलाद को मारने की ठानी.

ऐरच से हुई थी होली की शुरुआत
कथा के अनुसार होलिका के पास एक ऐसी चुनरी थी, जिसे पहनने पर वह आग में बैठ सकती थी. होलिका वही चुनरी ओढ़ प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान की माया का असर ये हुआ कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर प्रहलाद पर आ गई. इस तरह प्रहलाद फिर बच गया और होलिका जल गई. इसके तुंरत बाद विष्णु भगवान ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया और गौधुली बेला यानी न दिन न रात में अपने नाखूनों से डिकौली स्थित मंदिर की दहलीज पर हिरणाकश्यप का वध कर दिया. होली की शुरुआत ऐरच नगरी से हुई थी ओर यही पर होली का तैवहार सबसे पहले मनाया जाता है उसके बाद होली पूरे देश में मनाई जाती है.

-अमित श्रीवास्तव की रिपोर्ट