
होली की धूम पूरे देश में है. इस बार 14 मार्च को होली है. सनातनी संस्कृति में होली तन मन ही नहीं आत्मा को भी शुद्ध करने वाला पर्व है. कृष्ण की नगरी गोकुल में छड़ी मार होली का उत्सव मनाया जा रहा है. इसमें भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप में भक्तों का प्रेम और उत्साह देखने को मिल रहा है. यह होली का त्योहार न केवल रंगों का उत्सव है, बल्कि भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक संस्कृति का प्रतीक भी है.
40 दिनों तक चलने वाले फागोत्सव का चरम
गोकुल में नंदभवन मंदिर से मुरलीधर घाट तक भगवान की पालकी शोभायात्रा निकाली जा रही है. इस पालकी को एक बगीचे के रूप में सजाया गया है, जिसमें भगवान बालकृष्ण विराजमान होकर भक्तों के साथ होली खेलते हैं. गोकुल में 40 दिनों तक चलने वाले फागोत्सव का उत्साह रंग भरी एकादशी के साथ अपने चरम पर पहुंच जाता है. इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप में भक्तों का प्रेम और उत्साह देखने को मिलता है.
छड़ी मार होली की परंपरा
छड़ी मार होली के पीछे एक दिलचस्प कथा है. कान्हा अपनी अठखेलियों से गोपियों को तंग करते थे, इसलिए गोपियां कान्हा को सबक सिखाने के लिए उनके पीछे छड़ी लेकर भागा करती थीं. इसी परंपरा की वजह से आज गोकुल में छड़ी मार होली खेली जाती है, जिसमें लठ की जगह छड़ी का इस्तेमाल अपने आराध्य कृष्ण के प्रति प्रेम और भाव का प्रतीक माना गया है.
भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप में होली का आनंद
गोकुल के मुरलीधर घाट पर भगवान श्रीकृष्ण की पालकी पहुंच गई है और उसे बगीचे में विराजमान करने की तैयारी की जा रही है. भगवान श्रीकृष्ण बलराम के स्वरूप अपने सखाओं के साथ यहां होली खेलने के लिए पहुंच गए हैं. भक्तों का उत्साह और प्रेम भगवान के प्रति अद्वितीय है. गोकुल में छड़ी मार होली का अद्भुत और अलौकिक रूप देखने को मिल रहा है. यहां के लोग श्रीकृष्ण की सेवा बाल रूप में करते हैं और भगवान के प्रति उनका समर्पण और प्रेम अद्वितीय है. ठाकुर जी को गुलाल और टेसू के फूल का रंग लगाया जाएगा और फिर भक्तों पर लुटाया जाएगा.