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Holi History: सबसे पहले किसने और कहां खेली थी होली, देवी-देवताओं को क्यों सबसे पहले अर्पित करते हैं रंग, जानिए इस पर्व की हिस्ट्री 

Holi 2025 History: होली का त्योहार हर साल फाल्गुन मास में मनाया जाता है. यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. यह त्योहार दो दिन मनाया जाता है. पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगों वाली होली खेली जाती है. आइए जानते हैं सबसे पहले किसने और कहां होली खेली थी.

Holi History (File Photo: PTI) Holi History (File Photo: PTI)
हाइलाइट्स
  • धरती से पहले देवलोक में खेली गई थी होली

  • बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है होली का पर्व

Holi Festival of Colors: हिंदू धर्म में रंगों का त्योहार होली (Holi) का विशेष महत्व है. इस पर्व के आने का लोग पूरे साल इंतजार करते हैं. इस दिन क्या अमीर और क्या गरीब, सभी लोग मिलजुल कर एक-दूसरे को रंग, अबीर और गुलाल लगाते हैं. इस दिन घर में अच्छे-अच्छे पकवान बनते हैं.

होली का पर्व हर साल फाल्गुन मास में मनाया जाता है. इस साल होली 14 मार्च को मनाई जाएगी. इससे एक दिन पहले यानी 13 मार्च को होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाएगा. होली बहुत ही प्राचीन पर्व है. कई पौराणिक कथा-कहानियों में होली का उल्लेख किया गया है. क्या आप जानते हैं किसने और कहां सबसे पहले होली खेली थी. यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं.  

होली को लेकर क्या-क्या हैं मान्यताएं 
होली से जुड़ी वैसे तो कई पौराणिक कथा और कहानियां हैं लेकिन एक कथा के मुताबिक धरती से पहले होली देवलोक में खेली गई थी. हरियर पुराण की कथा के मुताबिक सबसे पहले भोलेनाथ ने खेली थी. दरअसल, शंकर भगवान जब कैलाश पर्वत पर अपनी समाधि में लीन थे, उस समय तारकासुर ने तांडव मचा रखा था. इससे देवी-देवता सब परेशान थे.

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तरकासुर शिव भक्त था लेकिन उसका वध करना जरूरी थी. भोलेनाथ को समाधि से जगाने का कार्यभार प्रेम के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति को दिया गया. दोनों ने भोलेनाथ को समाधि से जगाने के लिए मनमोहक नृत्य करना शुरू कर दिया. इससे शंकर भगवान की समाधि भंग हो गई. इस पर भोलेनाथ काफी क्रोधित हो गए, उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया. इस पर रति विलाफ करने लगीं. भोलेनाथ से अपने पति को जीवित करने के लिए याचना करने लगी. इस पर शंकर भगवान को दया आ गई और उन्होंने कामदेव को जिंदा कर दिया. 

ब्रह्म भोज का किया आयोजन 
इसकी खुशी में रति और कामदेव ने ब्रह्म भोज का आयोजन किया. इसमें भोलेनाथ सहित अन्य देवी-देवाताओं ने हिस्सा लिया. रति ने चंदन का टीका लगाकर खुशी व्यक्त किया. इस दिन फाल्गुन पूर्णिमा था. होली को लेकर हरिहर पुराण में एक दूसरी कथा का भी जिक्र है. उस कथा के मुताबिक ब्रह्म भोज में भोलेनाथ ने डमरू और विष्णु जी ने बांसरी बजाई थी.

माता पार्वती और देवी सरस्वती ने वीणा बजाकर गीत गाए थे. धार्मिक मान्यता के मुताबिक उसी समय से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन को गीत, संगीत और रंगों के साथ होली का पर्व मनाया जाने लगा. इसी के चलते होली के दिन सबसे पहले देवी-देवताओं को रंग, अबीर और गुलाल अर्पित किया जाता है. होलिका दहन की राख या भस्म से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है.

क्यों किया जाता है होलिका दहन
होलिका दहन को लेकर हिंदू धर्म में कई कथाएं प्रचलित हैं. इसमें सबसे प्रचलित कथा विष्णु भगवान के भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका से जुड़ी है. पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद, विष्णु भगवान का परम भक्त था. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था. हिरण्यकश्यप के मना करने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति में रमे रहते थे. इस पर हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने पुत्र को मारने की कोशिश लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद का कुछ भी नहीं हुआ. 

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती. उसने अपने भाई से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठेगी और इस तरह प्रह्लाद की जलकर मौत हो जाएगी. होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता पर बैठी लेकिन प्रहलाद की भक्ति की जीत हुई. भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को हल्की सी आंच भी नहीं आई वहीं, होलिका जलकर भस्म हो गई. तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है. होलिका दहन के अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है. बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होली का पर्व मनाया जाता है.