पश्चिम बंगाल में हर साल दुर्गापूजा का आयोजन धूमधाम से किया जाता है. जगह-जगह पूजा पंडाल बनाए जाते हैं. हम आपको एक ऐसे ही पूजा पंडाल के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. जी हां, हम बात कर रहे हैं. हुगली के डानकुनी में बनाए गए एक दुर्गा पूजा पंडाल की. यह पूजा पंडाल पूरी तरह से महिलाओं के मेकअप सामग्री से बनाया गया है.
दिखाई गई है महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी
इस पंडाल के माध्यम से महिला सशक्तिकरण का संदेश दिया जा रहा है. पंडाल का थीम 'हम सभी महिलाएं और हमारे लिए हर मंजिल मुमकिन' भी अनोखा है. महिलाएं अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जो कामकाज करती हैं, उसे चित्र प्रदर्शनी के माध्यम से इस मंडप में बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है.
चूड़ी, सिंदूर का डिब्बा, बिंदिया से बनाया गया है पंडाल
हुगली के सप्तऋषि सार्वजनिक दुर्गा पूजा कमेटी इस वर्ष अपने 31वीं वर्षगांठ को कुछ अलग अंदाज में मना रही है. महिला सशक्तिकरण पर जोर देने के लिए इस पूजा कमेटी ने इस तरह के थीम के ऊपर पूजा पंडाल बनाया है. पूजा पंडाल का निर्माण चूड़ी, शाखा, पोला, सिंदूर का डिब्बा, बिंदिया से बनाया गया है. इसके अलावा इस पूजा पंडाल में महिलाएं जो अपने दैनिक जीवन में कामकाज करती हैं उसे भी सुंदर कलाकारी से दिखाया गया है. इस पूजा पंडाल का आयोजन पूरी तरह से महिलाओं ने मिलकर किया है.
पुरुषों की तुलना में किसी तरह से कम नहीं महिलाएं
पूजा कमेटी की महिला जनरल सेक्रेटरी सौमिता मुखर्जी ने बताया कि आज महिलाएं देश और समाज के हर क्षेत्र में अपना सक्रिय योगदान दे रहीं हैं. पुरुषों की तुलना में वह किसी तरह से काम नहीं हैं इसलिए महिला सशक्तिकरण पर जोर देने के लिए पूजा कमेटी की ओर से इस वर्ष के पूजा के लिए इस तरह के अभिनव थीम के ऊपर पूजा पंडाल बनाया गया है. इस पूजा पंडाल में महिलाएं जो अपने दैनिक जीवन में कामकाज करती हैं, उसे भी सुंदर कलाकारी से दिखाया गया है.
इस तरह की थीम पर पंडाल बनाया जाना है गर्व की बात
डानकुनी नगरपालिका की चेयरमैन हसीना शबनम ने बताया कि साल 2011 में ममता बनर्जी ने जब से बंगाल की बागडोर संभाली, उन्होंने औरों से दो कदम आगे बढ़कर महिला सशक्तिकरण की दिशा में जोड़ दिया. उनके इलाके में महिलाओं को देश और समाज की तरक्की में और अधिक योगदान करने और उन्हें आगे ले जाने के लिए इस तरह से अभिनव थीम से पंडाल बनाया जाना यह काफी गर्व और फक्र की बात है.
(भोलानाथ साहा की रिपोर्ट)