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Lord Ganesha: भगवान गणेश का कैसे नाम पड़ा सिद्धिविनायक, गणपति के आठ स्वरूपों में क्यों कहा जाता है इसे सबसे ज्यादा मंगलकारी, यहां जानिए सबकुछ 

इंदौर के खजराना गणपति धाम में वैसे तो सालों भर भक्तों का तांता लगे रहता है लेकिन नववर्ष में भक्त अपनी मनोकामनाओं के संग गणपति के इस धाम में पधारते हैं. यहां एक तरफ रिद्धि और दूसरी तरफ सिद्धि और बीच में गणपति विराजते हैं. आइए खजराना गणपति धाम की महिमा जानते हैं.

Lord Ganesha Lord Ganesha
हाइलाइट्स
  • खजराना गणपति धाम में भगवान सिद्धिविनायक की सूंड मुड़ी हुई है दायीं तरफ

  • जहां भी दायीं ओर सूंड़ वाली भगवान गणेश की मूर्ति होती है वह कहलाता है सिद्धपीठ 

न्यू ईयर 2025 का आगाज हो चुका है. अधिकांश लोगों ने पहले दिन की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा-अर्चना से की. धार्मिक मान्यता है कि गणपति बप्पा की आराधना करने से भक्त को सभी कामों में सफलता मिलती है. आज हम आपको बाप्पा के एक ऐसे रूप के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे गणेश जी के आठ स्वरूपों में सबसे ज्यादा मंगलकारी माना जाता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बप्पा के सिद्धिविनायक स्वरूप की. 

हर संकट और बाधा को कर सकते हैं नष्ट 
सिद्धिविनायक के दर्शनों के लिए भक्तों का हुजूम महज गणेशोत्सव पर ही नहीं बल्कि नए साल पर भी उमड़ता है. भक्तों की विनायक के इस स्वरूप के प्रति आस्था अडिग है. गणेश जी के मुख्य रूप से आठ स्वरूप माने जाते हैं इन स्वरूपों में जीवन की हर समस्या का समाधान मौजूद रहता है. अष्टविनायक स्वरूप में  सिद्धिविनायक सबसे ज्यादा मंगलकारी माने जाते हैं. सिद्धटेक नामक पर्वत पर इनका प्राकट्य होने के कारण इनको सिद्धिविनायक कहा जाता है. यह भी माना जाता है कि इनकी सूंढ सिद्दि की ओर है, अतः ये सिद्धि विनायक हैं. मात्र सिद्धिविनायक की उपासना से हर संकट और बाधा को नष्ट किया जा सकता है. 

सूंड मुड़ी होती है इस ओर
सिद्धिविनायक रूप में भगवान की सबसे बड़ी विशेषता है बाप्पा की सूंड. आमतौर पर गणपति की सूंड बायी तरफ मुड़ी होती है लेकिन भगवान सिद्धिविनायक की सूंड दायीं तरफ मुड़ी होने से उन्हें नवसाचा गणपति यानी मन्नत पूरी करने वाले गणपति कहा जाता है. मान्यता है कि जहां कहीं भी दायीं ओर सूंड़ वाली भगवान गणेश की मूर्ति होती है, वह सिद्धपीठ कहलाता है. 

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विष्णु भगवान ने की थी उपासना 
माना जाता है कि सृष्टि के निर्माण के पूर्व सिद्धटेक पर्वत पर विष्णु भगवान ने इनकी उपासना की थी. इनकी उपासना के बाद ही ब्रह्म देव सृष्टि की रचना बिना बाधा के कर पाए. सिद्धि विनायक का स्वरूप चतुर्भुजी है. इनके ऊपर के हाथों में कमल और अंकुश है, नीचे के एक हाथ में मोतियों की माला और एक हाथ में मोदक का कटोरा है. इनके साथ इनकी पत्नियां रिद्धि-सिद्धि भी हैं. मस्तक पर त्रिनेत्र और गले में सर्प का हार है. बाप्पा की ये प्रतिमा काले पत्थर से बनी है. उनका विग्रह चतुर्भुजी है. गणपति के दोनों ओर उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मौजूद हैं, जो धन, ऐश्वर्य, सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक हैं. भगवान गणेश के इस स्वरूप की उपासना विशिष्ट महत्व रखती है

खजराना गणपति
इंदौर के खजराना गणपति धाम में वैसे तो सालों भर ही रौनक रहती है लेकिन नववर्ष में भक्त अपनी मनोकामनाओं के संग गणपति के इस धाम में पधारते हैं. इस दरबार में अद्भुत है बाप्पा की मोहनी छवि. यहां एक तरफ रिद्धि और दूसरी तरफ सिद्धि और बीच में गणपति विराजते हैं. ये दृश्य ऐसा है की एक पल के लिए भी पलक झपकाने को जी नहीं करता. ऐसा प्रतीत होता है कि बाप्पा के दर्शन मात्र से ही हर मनोकामना पूरी हो जाएगी. ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि इस धाम में स्वयं स्वयंभू भगवान गणेश विराजते हैं. तभी तो अरमानों की झोली फैलाए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं. अपनी झोलियां बाप्पा के आशीर्वाद से भर कर ले जाते हैं. 

भक्त हर मुराद होती है पूरी 
खजराना गणपति एक ऐसा पावन स्थान हैं जहां गणेश भगवान विराजते हैं. भक्तों की आस्था का ये वो पावन स्थान है, जहां चप्पे-चप्पे पर भगवान के चमत्कार मौजूद हैं. फिर चाहे संतान की कामना हो या हो धन की ख्वाहिश, चाहे नौकरी की जरूरत हो या फिर आप चाहते हों विद्या और बुद्धि का वरदान. खजराना गणपति धाम में सारे काम बन जाते हैं. यह एक विश्व प्रसिद्ध गणेश मंदिर है. खजराना गणेश से जुड़ी मान्यता है कि यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. मन्नत पूरी होने पर भक्त, यहां पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और भगवान गणेश को मोदक का भोग लगाते हैं. 

जुड़ी है एक कहानी 
खजराना गणपति स्थान से जुड़ी एक कहानी भी है. लोगों की मान्यता है कि भगवान गणेश ने मंदिर निर्माण के लिए स्थानीय पंडित को स्वप्न दिखाया था. सपने के बारे में पंडित ने सभी को बताया. इसके बाद रानी अहिल्या बाई होलकर ने जब इस स्वप्न के बारे में सुना तो उन्होंने इसे बेहद गंभीरता से लिया. स्वप्न के अनुसार उस जगह खुदाई करवाई गई तो ठीक वैसी ही भगवान गणेश की प्रतिमा खुदाई में प्राप्त हुई. इसके बाद यहां मंदिर निर्माण करवाया गया. आज भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होने से इस मंदिर को विश्व स्तर की ख्याति प्राप्त हो चुकी है.

खजराना गणपति धाम की महिमा 
खजराना गणेश मंदिर का निर्माण सन् 1735 में हुआ था. मान्यताओं के अनुसार श्रद्धालु इस मंदिर की तीन परिक्रमा लगाते हैं. मन्नत पूरी करने के लिए भक्त मंदिर की दीवार पर धागा बांधते हैं. मन्नत पूरी होने के बाद भक्त यहां पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं. खजराना गणेश मंदिर में भक्तों की सबसे अधिक भीड़ बुधवार को होती है. बुधवार को भगवान गणेश की पूजा करने के लिए भक्त दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं. इस दिन यहां विशेष आरती आयोजित की जाती है. भगवान गणेश की पूजा-अर्चना हर शुभ कार्य करने से पहले की जाती है क्योंकि शुभता के दाता श्री गणेश हैं. बिना उनकी कृपा के कोई भी शुभ कार्य नहीं हो सकता और इसलिए गणपति के खजराना धाम में आने से, उनके दर्शन करने से जीवन में शुभता का श्रीगणेश हो जाता है.